कश्मकश में है जिंदगी
उधार की दुकानदारी है
मौज में है माझी दूजा
कश्ती अपनी डोली है
हर साँस पर हक उसका
शरीर तो किरायेदारी है
सुनी नहीं तूने आवाज़ मेरी
शब्द की भी पलटवारी है
रिश्तो की मीठी सी दुनिया
सूद-ओ-जियाँ से न रिश्तेदारी है
इत्र सा महकता मेरा इश्क़
"मीता" तू मेरी जिम्मेदारी है
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कहाँ गये वो दिन सजते जहाँ रिश्तो के मेले
न खिलखिलाहटे, सूना आँगन,जमे काई है
दीमक भी खा गयी घर की चारदिवारियाँ
रिश्तों में हुई रुसवाई,तीरगी ले अंगड़ाई है
खो गयी वो बचपन की अधूरी कहानियां
पाँव पसारे धूल ने, सन्नाटे ने जड़ें जमायी है
जमाना खुदगर्ज बना है, तन्हां सफर है
माँगे से प्यार न मिले बड़ी जग हंसाई है
गुलजार थी जहाँ शामो-सहर तेरी यादें'मीता'
अनसुलझी हमारी कहानी काँटो में समायी है
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उस जमाने को छोड़ आये पीछे जहाँ गाते थे इश्क़ ए तराने
कहीं किसी रोज़ मिलो तो तुम्हे सुनाये दुखड़े अपने पुराने
तुम तो कह चले गये बीती बातों को भुला दो नये गीत गाओ
कहीं किसी रोज़ मिलो तो तुम्हे बताये रिसते जख्मो के फ़साने
उस रोज़ गर तुम इक हाँ भर कह देते तो क्यों हम बिछड़ते
कहीं किसी रोज़ मिलो तो तुम्हे दिखाये टूटे दिल के अफसाने
कोई तो होगा जिसे तुमने अपना बनाया होगा गले लगाया होगा
कहीं किसी रोज़ मिलो दिखाये फ़टी तस्वीर के अपने अधूरे सपने
फरियाद उस खुदा से "मीता "जहाँ रहो तुम मुस्कुराते रहो
कहीं किसी रोज़ मिलो बताये बांधे हमने कितने मन्नत के धागे।।
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बिखर जाऊँ मैं तुझमे
समेट ले अपनी बांहो में
उनींदी सी दिल की आरजू
फ़ना हो जाऊँ तेरे इश्क़ में।।
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तू नहीं है पास मेरे फिर भी दिल के आस पास ही है
मैं तुम और शाम सुहानी याद कर अधूरा सा लगता है
गुलमोहर के नीचे बैठ ज़ब तुम 'तेरी उम्मीद' गाना गाती थी
आज भी वही धुन सुन सुन दिल को तेरा इंतज़ार रहता है
तेरी साँसो की डोर बंधी है मुझ संग, बस तू ही नहीं है
आज भी हर धड़कन की धक धक दिल महसूस करता है
वो कौन दीवाने थे जो अपने प्यार के बिन जिंदा रह गये
मेरा तो तुझ बिन जिंदा रहना भी मरने समान लगता है
तेरी निशानी अंगूठी मेरी ऊँगली में आज भी चमकती है
किसी भी रूप में आ"मीता"दिल यहाँ वहाँ तुझे ढूंढता रहता है-
बिछड़ कर मुझ से तुम क्या पाओगे
होठो पे हंसी आँखों से मोती बहाओगे
ये रूठ जाने की आदत छोड़ दे सनम
हम रूठ गये तो मना न तुम पाओगे
दिल ए जज़्बात उमड़ रहे चाहत के
नज़र न फेर मिलन को तरस जाओगे
किस्मत से मिलता सच्चा प्यार ए दिलदार
न लगा बंदिशे खुद ही तड़प जाओगे
अब दिल नहीं रूह का सौदा है ये
अंजाम ए इश्क़ सोच बैचैन हो जाओगे
अभी तो इश्क़ ए आगाज़ है "मीता "
तुम यूँ ही तो मुझे न भुला पाओगे।।-
देखा था उसे सड़क पार करते हुए
हल्के से मुस्कुराता कनखियों से देखता
वो आवारों की तरह चल रहा था---
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ज़ब से क़ैद है निगाहो मे हुस्न ओ जमाल यार मेरा
निगाहों का मिज़ाज़ रंगिनियों मे डूबा जा रहा है
कश्मकश में है दिल, फ़िज़ायें भी रुख मोड़ गयी
कैसे करूँ इज़हार मेरा चाँद उदास नज़र आ रहा है-
चले गये तुम मुझे छोड़ कर
क्या तुम याद मुझे करते हो
दिल लगाया निभाना न था क्यों
हर बारिश में तुम याद आते हो
वो पार्क में बैठ बाते करना
हाथो का कंपकपाता स्पर्श
बिछड़ते वक़्त गले लगाना क्यों
हर बारिश में तुम याद आते हो
सुध बुध खोती जा रही यारां
मिलने की तड़प बढ़ती जा रही
तुम आओ तो करार आये क्यों
हर बारिश में तुम याद आते हो।।-
दिल ए मुन्तजिर है तेरी रूबायीं का
लिख कलाम दिल ए तन्हाई का
तुझे नज़र न लगे किसी की
लिख शेर निगाहों के जाम का
मुस्कान जो तुझे देख खिलतीं है
लिख ग़ज़ल लब ए जुम्बिश का
तृष्णा जो तुझसे मिल होती है
लिख कोई लफ़्ज़ इकरार का
तेरी खूबसूरती का हूँ मैं कायल
लिख अफसाना मोहब्बत का
प्रेम से बिता ये प्यारे पल "मीता "
करूँ इज़हार तड़पते इश्क़ का।।
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