अच्छा ही है तू खुद मुझसे दूर चला गया
तुझे खोने का डर खुद ब खुद चला गया
मोहब्बत निभाना सबके बस की बात नहीं
तुझ संग उम्र भर निभाने का वादा गुम गया
कभी शक ना करना मेरी इश्क ए वफा पर
इश्क की दूरियों से वफा का महल ढह गया
प्रीत थी मेरी सच्ची तुझे क्यों रास ना आयी
गुमराह हुआ क्यों दुनियावी बातों में बह गया
कभी पीछे मुड़ो तो हम वहीं राह में खड़े मिलेंगे
इश्क ए राहों पर चलना क्यों नामुमकिन हो गया-
आज फिर वो पहले सी बरसात आयी
मुझे तो यारा आज तेरी बहुत याद आयी
मेरी पहली प्रेम कविता जो तुझे सुनाई
भीनी सी फुहार फिर मदहोश करने आयी
याद आया तेरा कसमसाना वो शर्माना
तेरा बांहो मे समाना वो तस्वीर उभर आयी
तू होती तो हाल मेरा पूछती आँसू पोंछती
मेरे लबों से तेरी खुशबु फिर तैरती आयी
हवा का झोंका ऑ तेरा आँचल मे सिमटना
हाय फिर वो बरसती रात सुहानी याद आयी-
कसक ये कैसी न जाने ये दिल ए संगदिल
अधूरा सा प्यार तेरा करे घायल मेरा दिल
बिछड़ना तुझसे तय था फिर भी चाहा तुझे
चाहत हुई नाकाबिल क्यों टूटा मेरा दिल
खोया रहा तुझमे हरपल, तमाशा बन गया
खुद ही लाचार बना तोड़ा खुद का ही दिल
मेरी मन बगिया मे खिला तेरे नाम का फूल
माली ने ही बाग उजाड़ा हाय हुआ मैं बे -दिल
पिया अधूरे इश्क़ का जाम मैंने नशा बाकी है
टूटे प्याले सा इश्क़ मेरा "मीता "टूटा मेरा दिल-
सूरज की पहली किरण
समा लो निज तन मन
चेतन हो जाये अंतर्मन
तन भी हो जाये जगमग-
एक अदृश्य धागा है तेरे मेरे बीच में
बाँध रखा जिसने हमें एक डोर में
इश्क़े पुष्पों से सुवासित खिल रहा
गुंथा हुआ है माला में एक डोर में
मेरे हृदय की दहलीज पर टंगा है
तेरी मन्नत का धागा एक डोर में
हाथ थामना ये ख्वाहिश है दिल की
भावनायें बह रही बंधी एक डोर में
उम्मीदों की सीढ़ी पर खड़ी हूँ'मीता'
पकड़ना इश्क़ बाँध कर एक डोर में ।।-
कितनी तिकड़म लगायी तुझे मनाने मे तू ऐसा रूठा
मेरे घर आना तेरा किसी तक़रीब से कम नहीं दोस्त-
मैं हाथ कि नस नहीं काटूंगा
गर तू मेरी हो जाये
पहाड़ो पर घर बसाउँगा
बस किसी कि नज़र न लग जाये
ग़ज़ल लिखी तुझे न भायी
शेर पड़ा तो तू मुस्कुराई
उर्दू जबान नहीं आती मुझे
सीखने में बरसो न लग जाये
तूने कहा था मिलने आएगी
सुन तेरे पांव की पदचाप
उम्मीद की किरण चमकी
मुझे अपनी धड़कन बना लो यार
जूनून की हद तक चाहा तुझे
सातों जन्म तू मेरी रहेगी
जमाना मिसाल देगा इश्क़ की
बस तू दुनिया दस्तूरों से न डर जाये।।-
जुस्तजू थी तेरी मगर तू करीब न था
तुझे समझा अपना तू रकीब का था
टूटने की आवाज हुई आसमां को ताका
महबूब की आँखो में अश्कों का सैलाब था
तूने पत्थर को ठोकर मारी दिल मेरा टूटा
गैर की बाँहों में देख उमड़ा तूफान सा था
सुन मेरी मोहब्बत के छपने लगे इश्तिहार
सीना चीर देख मेरा लिखा तेरा नाम था
तू मेरा नहीं तो और किसी का नहीं होगा
शिकायत तो बहुत है मगर तू मेरा नूर था
तेरा जिक्र करते करते'मीता'मैं थकता नहीं
इल्तिज़ा सुन कयामत तक रहना मेरे पास था-
तेरा इश्क़ बेदर्दी बालम बहुत सताता है
ख्वाबों में भी आ जालिम बहुत जलाता है
बिन देखे सनम तुझे करार कहाँ आता है
आंखों से तेरे प्यार का सावन बरसता है-
रोज सुबह एक नई गजल लिखते हैं
हर गजल में सनम तुझे लिखते हैं
सुकूँ जो तुझसे मिलकर आता है
गले लग कर तेरे इश्क लिखते हैं
तेरी हाँ हो मोहब्बत की हद पार कर दूं
आ अपनी मोहब्बत चांद पर लिखते हैं
सांस की हर लय तेरा नाम जपती है
कुछ मेरी कुछ तुम्हारी कहानी लिखते हैं
न वादा किया ना ही कसमें खाई"मीता"
ता जिंदगी साथ रहेंगे वसीयत लिखते हैं-