मेरे दोस्तों मेरा आपसे आग्रह है। कि आप फनी वीडियो सेयर करने की जगह...
1.मौजूदा सरकार की नाकामियों,
2.गरीबों पर होता अत्याचार,
3.लोगों द्वारा फैलाया जा रहा मजहबी जहर, और देश की असलियत को अपने स्वविवेक से देश की भोली एवं न समझ जनता तक पहुंचाएं अगर आप ऐसा करते हैं तो हम भारत को मोजूदा तानाशाह राज से बचाकर वास्तविक लोकतांत्रिक देश बनाने में सक्षम होंगे।
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लोकतंत्र की हत्या
कहने को यहाँ जनता द्वारा जनता के लिए शासन है
पर सच तो ये है भारत में लोकतंत्र मात्र आश्वाशन है
मन के काले द्वेष को नेता, तन के श्वेत वस्त्र से ढकते
मतदान के मैदान में मूल अधिकारों पर ही भाषण है
राजनीतिक दलों के अदल-बदल से किसे क्या लाभ
अपराधी स्वतन्त्र है और गरीब के लिए दंड शासन है
बालश्रम से बचपन छिनता भूखे पेट जब बच्चा सोता
गलियों से वह कूड़ा उठाता,उसके घर में नहीं राशन है
बेरोजगारी ,अशिक्षा, निर्धनता से वर्षों से जूझते जन
सत्ता में बाहुबली आसीन और ज्ञानी का निष्कासन है
सांप्रदायिकता,क्षेत्रवाद के प्रति विशेष अनुराग सबका
क्या राष्टृ के निर्माण में आगे आना कोई दुः शासन है?-
लोकतंत्र को खतरा है, लोकतंत्र को खतरा है
नेता जी लोकतंत्र को नहीं इस देश को तुमसे खतरा है।
नेतागिरी से तुम्हारी एक एक जनता को तुमसे खतरा है
आज सरहद में लड़ रहे हर उस जवान को तुमसे खतरा है।
तुम्हारे फैलाये ज़हर से हिन्दू, मुस्लिम को खतरा है
राम, रहीम के मुद्दे से इस पुरे देश को तुमसे खतरा है।
चुनाव के इस मौसम में प्रभु राम को तुमसे खतरा है
प्रभु राम चिंतन कर रहे, मेरे इस कुटिया को भी तुमसे खतरा है।
लोकतंत्र को खतरा है, लोकतंत्र को खतरा है
नेता जी लोकतंत्र को नहीं इस देश को तुमसे खतरा है।-
।जिस वक़्त लोकतंत्र की आवाज को दबा दिया जाएगा ओर जनता की आत्मा को मार दिया जाएगा उस वक़्त सत्ता का वर्चस्व ही सबसे बड़ा शासन होगा ओर उस शासक को जनता से कोई मोह नहीं होगा केवल सत्ता का नशा ही उसका असली मोह होगा।
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ऐ मेरे सत्ता के शासक मेरे रखवाले, तुम ख़ामोश यहां पर क्यों हो,
जनता मांग रही है अब अपना हक, तुम ख़ामोश यहां पर क्यों हो।
हे न्यायमूर्ति, हे न्याय प्रिय, आज लोकतंत्र यहां पर हुआ विलुप्त,
संकट में है सबके प्राण यहां, तुम अब तक ख़ामोश यहां पर क्यों हो।।
मंदिर मस्ज़िद का खेल खेलकर, तुम आपस में लोगों को बांट रहे हो,
जाति वाद, धर्म का नारा देकर, लोगों को तुम आपस में छांट रहे हो।
नव चेतना,नव जागृति नही, और ना ही हो रहा है नव निर्माण यहां,
अपनी विषैली, कटु, विषाक्त शब्दों से हर उम्मीदों को तुम कांट रहे हो।।
मूक बने है यहां पर सब दर्शक, बन गई है ये तो अन्धों की नगरी,
पोथी में दबकर रह गया संविधान, चल रहे सब अपनी अपनी डगरी।
नही है कोई महफूज यहां पर, अपने ही अपनों कर करते चीरहरण,
चीत्कार की है बस आवाज़ यहां, विलुप्त हुआ अब गीत और कजरी।।-
अक्सर जो दिखता है ...!
वास्तव में वो होता नहीं साहब...!!
और कभी- कभी जो दिखता है ...!
वो हकीकत भी फसाना होता है साहब...!!
(सब नजरों का हेरफेर है!)-
पुराना भारत है रो रहा,
तरस क्यूँ नही खाते वतन पर।
बेरोजगारी अब मुद्दा नही रही,
सियासतदान सियासत कर रहे धर्म पर।
धार्मिक - भाईचारा अब नही रहा,
होड़ लगी इनमे इल्जाम लगाना एक दूसरे पर।
इंसानियत की तलाश में मुस्कुराहटें गुम हो रही,
अब जो खुद ही लड़ रहे धर्म के नाम पर।
अलग-अलग धर्म तो अपनी ताकत रही,
अब तो तलवारे निकल रही म्यान से धर्म के नाम पर।
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"लोकतंत्र" केवल मतदान करना नहीं हैं।
"हम भारत के लोग..........
देश से जुड़े सार्वजनिक संस्थान,
सार्वजनिक उपक्रम, सरकारी संपत्ति,
रेलवे,एयरइंडिया, LIC, BPCL, BSNL
ये सब आपकी हमारी सार्वजनिक संपत्ति हैं,
जिसका एक के बाद एक निजीकरण हो रहा।
ये सब भी इस "लोकतंत्र" का हिस्सा हैं।।
आगे आप समझदार है🙏🙏
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