नेहा उदय भान गुप्ता😍🏹   (नेहा उदय भान गुप्ता😍🏹)
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Joined 10 June 2020


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Joined 10 June 2020

जिन्दगी भी न जाने किस मोड पर ले आई, दिखता नहीं यहाँ कोई सहारा,
बीच भंवर में पड़ी है नैय्या मेरी, जैसे मिलता ही नहीं अब तो कोई किनारा।
कबसे है तलाश मुझे मंज़िल की, उसकी खातिर न जाने क्या क्या खोया है,
जी भरकर रो भी नहीं सकते, और तो और हँसना भी हुआ गुनाह हमारा।

जहाँ से आए थे वर्षों पहले, आज भी रह गई वही शख्शियत हमारा,
असफलता का दाग लिए माथे पर, पूरी दुनिया ने कहा मुझको नकारा।
और बहुत दर्द रखे सीने में, क्या क्या तुमको आज सुनाऊँ, .....बस इतना समझो
जी भरकर रो भी नहीं सकते, और तो और हँसना भी हुआ गुनाह हमारा।

सांसे भी अब तो रुक रुक कर चलती , जैसे मौत ने है मुझको पुकारा,
नहीं कर सकती तू जीवन में, क्या छोटा क्या बड़ा, सबने मुझे ललकारा।
है सितम ये मेरे जीवन के, अब तो आँखों से जैसे अंगारे बहते है,
जी भरकर रो भी नहीं सकते, और तो और हँसना भी हुआ गुनाह हमारा।

जीत नहीं मिलेगी जब तक जीवन में, नहीं किसी ने है मुझको स्वीकारा,
गिर गई सबकी नजरों से मैं, औरों संग मैंने भी है ख़ुद को धिक्कारा।
कहे ’जीत की नेह’ अब बहुत हुआ राघव, तेरी बनाई दुनियाँ में जीना.... जहाँ
जी भरकर रो भी नहीं सकते, और तो और हँसना भी हुआ गुनाह हमारा।

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पापा से है मैंने क्या क्या सीखा, मेरे शब्द कभी बयां नहीं कर सकते,
बस समझ लो आप, मेरे रोम रोम में बस उनके ही संस्कार भरे है।

पापा से मैंने जाना, हर हालातों का है डटकर तुमको सामना करना,
न जीत की खुशी न हार ग़म, पापा किसी भी हालात से नहीं डरे है।

कुछ भी कैसे भी, ख़ुद को हर परिस्थिति में है मजबूत बनाए रखना,
जन्म से लेकर अब तक जाना, सारी विपदा से पापा अकेले लड़े है।

बस उम्मीद उनकी इतनी ही, उनके बच्चों को न हो कष्ट कभी भी,
अपने बच्चों के खुशियों की खातिर, दिन रात वो सब एक किए है।

पापा से सीखा है, बड़े, बुजुर्ग और बच्चों का कैसे सम्मान है करना,
पापा को मैंने देखा है, अपनों के आगे न जाने कितनी बार झुके है।

बिन स्वार्थ और शर्म के, अपने काम को हर हालातों में करते जाना,
पसीने संग रक्त की बूंद है टपकी, पर अपने काम में नहीं रूके है।

और बताओ क्या क्या लिखें पापा पर, कलम मेरी अब कांप रही है,
प्रणाम की खातिर हर पिता के चरणों में, नेह ‘जीत’ के शीश पड़े है।

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अब नया कुछ भी नही , वही सब कुछ पुराना है।
अपने मिलने का अब भी वही अंदाज़ पुराना है।।

मिले हुए को बीत गए, बस कुछ पल व कुछ लम्हें,
पर दिल को अब भी लगता, तेरा दीदार पुराना है।

होगी हम दोनों की शुरुआत, साथ–साथ मिलकर,
पर मेरे हमसफर, हम दोनों का तो साथ पुराना है।

नए जीवन की नई शुरुआत, तो कुछ नयापन भी,
पर शादी की रीति, रस्म और वो रिवाज पुराना है।

बन दुल्हन तेरे घर आऊँ, तेरी प्रियतमा कहलाऊँ,
प्रेम निभाऊंगी संग तेरे, अपना तो प्रीत पुराना है।

नए चाल और नए ढंग में, कौन रंगेगा मेरे साहिब,
नेह और जीत ने जो सीखा, वो संस्कार पुराना है।

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तेज गति

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तुम्हारी बेखुदी को भी हम बहुत शिद्दत से निभाएंगे.....
तुम रुलाते रहना....और हम मुस्कुराते जायेंगे....!!!!

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बेटियाँ....तुम एक बार फिर से परिवार को दगा दे गई हो....!!!

बाक़ी अनुशीर्षक में पढ़िए....
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जब से मिले है तुमसे साहिब, तुमको भूल ही न पाए है,
शरीर तो ले आया, पर जाँ निसार तुझ पर कर आए है।
है हर पल बस तेरा चिन्तन, तो तेरे ही ख्यालों में डूबे है,
अब तो तेरी हो गई, कुर्बान तुझपर ख़ुद को कर आए है।

होती है क्या मोहब्बत, ये मिलकर तुमसे ही जाना है सनम,
दीवानगी की हर हदें, संग तुम्हारे अब तो पार कर आए है।
लुटा दिया जवानी अपनी, तो संग तुम्हारे कहानी लिख दिए,
इस जन्म का नहीं, जन्मों का नाता तुमसे बाँध कर आए है।

ले चलो जहाँ तुम मुझे, संग चलूँगी जीवन भर साथ तुम्हारे,
सबसे नाता तोड़, बस नाम तुम्हारे रिश्ता जोड़ कर आए है।
अब तो ना भय है किसी का, ना ही है मुझको प्रीत किसी से,
बस तुम हो जीवन साथी, तुमको हृदय में बसा कर आए है।।

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हो कुछ इस कदर तेरा रहनुमा मेरे मालिक,
आँखों में आँसू, तो होंठों पर खुशी हो....!!

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जब से मिली हूँ मैं साथ तुम्हारे साहिब, ज़माने से बेफिक्र रहने लगी हूँ,
मिले नहीं सामने से तुम कभी, मोबाइल से ही तुमको निहारने लगी हूँ।
करती रहती अब दिन भर बातें तुमसे, कुछ इस क़दर बहकने लगी हूँ,
अब ना होश और ना ही कोई ख़बर, बस तुम्हारे ही रंग में रंगने लगी हूँ।
करती हूँ तुम्हारे नाम का श्रृंगार, तो तुम्हारे प्यार में ही मैं संवरने लगी हूँ,
किया है जब से तुमने मुझको प्यार इतना, तब से मैं तो महकने लगी हूँ।
कब आओगे मुझसे मिलने मेरे साहिब, मैं तो द्वार अपना बुहारने लगी हूँ,
राह देखती रही मैं तो बस तेरा, साँझसवेरे तुमको ही तो पुकारने लगी हूँ।
सादगी से भरा अब तक मेरा जीवन, पर दिन बा दिन मैं निखरने लगी हूँ,
चेहरे पर ही लिखा है नाम तुम्हारा, तेरे नाम से ही मैं तो चमकने लगी हूँ।
कैसे बताऊँ मैं तुमको हाल अपना, बिन चूड़ी के ही मैं खनकने लगी हूँ,
तेरे नाम का चढ़ा है ऐसा इश्क़ मुझ पर, अब तो हर पल ठुमकने लगी हूँ।
बहक न जाऊँ प्यार में तुम्हारे, ख़ुद को इस क़दर अब मैं संभालने लगी हूँ,
है मेरा पिया कितना प्यारा, कहकर दूसरों से यह, ख़ुद पर इतराने लगी हूँ।
थी नही जैसे सांसे मुझमें, पर तुमको पाने के बाद फ़िर से धड़कने लगी हूँ,
अब दूर नहीं है तुमसे एक पल की जुदाई, तुम्हारी याद संग ठहरने लगी हूँ,
अब तो ग़मों में भी ऐसा लगता है, मानो फ़िर से जिन्दगी को जीने लगी हूँ।

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जरा बताओ तुम हमको, हारे हुए को अब कौन करेगा याद.........

किया था उसने भी तो मेहनत जी भरकर,
लगा दिया था उसने अपना सब कुछ दांव।
पर मात मिली उसको, गई मेहनत बेकार,
कैसे मिलेगी अब उसको खुशियों की छांव।।

सपना सजोया था जो उसने, नही हुआ कुछ भी साकार,
जरा बताओ तुम हमको, हारे हुए को अब कौन करेगा याद.........

जीत के साथ खड़ी है, आज दुनिया सारी,
आँसू लिए कोने में खड़ा, हारकर अकेला।
बताओ कहा जाए ये पराजित हुए शूरमा,
जब साथ नहीं है इसके, अपनों का मेला।।

वर्षों से जीतने की खातिर, कर रहे थे ये सब भी तो फरियाद,
जरा बताओ तुम हमको, हारे हुए को अब कौन करेगा याद.........

ट्रॉफ़ी का ख़्वाब देखा था इसने भी तो,
जीत की थी बस यही एक आस लगाई।
पर पल भर में टूट गए इसके सारे सपने,
पंजाब की झोली में ये कैसी हार आई।।

लड़कर हारे हो तुम, पर अब न करना इस हार को तुम याद,
जरा बताओ तुम हमको, हारे हुए को अब कौन करेगा याद.........

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