नेहा उदय भान गुप्ता😍🏹   (नेहा उदय भान गुप्ता😍🏹)
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Joined 10 June 2020


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Joined 10 June 2020

मोहब्बत है, तो मोहब्बत समझनी चाहिए.........
होंठों से ना सही, पर आँखों से दिखनी चाहिए....

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आज कुछ ख़ास है.....
क्योंकि आज भाई का जन्मदिन है.....
YQ के सबसे प्यारे भाई.....
सभी के दिलों के राजा....
हम सबका चाँद सितारा...
भाई को जन्मदिन की अनन्त शुभकामनाएं....
हमेशा खुश रहो छोटे....💐💐😍😍

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थोड़ी सी खुशियाँ पाने के लिए.....
कभी कभी पूरी जिन्दगी कुर्बान करनी पड़ती है....

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शाम सवेरे बस तुमको ही सोचूं साहिब, मन मेरा कितना विचलित हो जाता है,
बस तेरे ख्यालों में डूबी रह जाती हूँ, बाक़ी सब मन की आंधी में उड़ जाता है।।

कब बन जाऊँगी तुम्हारी, कैसे होगा मिलन हमारा, विरह के पल कब छूटेंगे,
तुम ही मेरे, तुम बिन कोई न मेरा, दिल मेरा ये ख़ुद मुझसे ही कह जाता है।।

एक भरोसा है बस तेरा, एक आस और विश्वास है बस साहिब तेरे प्रेम का,
कब दोगे आलिंगन अपना, तुम बिन अब और एक भी पल ना रह जाता है।।

चाहत की डोरी है बांधी तुझसे, तो बस प्रीत लगाई और निभाई तुमसे ही है,
छोड़ ज़माने के रश्मों और रिवाजों को, नेह बस तेरी, जग में ये फ़ैल जाता है।।

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तू बसी सीने में मेरे, मेरी जिंदगानी, कहे तो अपना ये दिल निकाल कर दे दूँ।
भर कर तेरी माँग में सिन्दूर, पहनाकर लाल जोड़ा, तुम्हें सोलह श्रृंगार दे दूँ।।

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संघर्ष किया है जीवन में मैंने इतना, की अब साहस नहीं बचा है मुझमें,
धूमिल हो गए है हर हौसले मेरे, अब तो काबिलियत नहीं बचा है मुझमें।
हर बार मिली है बस असफलता, तो निराशाओं ने मुझे इस क़दर घेरा है,
तोड़ा मुझको इस तरह दर्द ने, तो बिन सांसों के बस देह बचा है मुझमें।।

और कितनी बार प्रयास करें तेरी नेह राघव, जब मिलती हर बार हार है,
अब और नहीं किसी से द्वंद छिड़ा मेरा, ख़ुद में ही ख़ुद से ही तकरार है।
कब खुलेगी मेरी मंज़िल,मेरी किस्मत का द्वार, जो बन्द तेरी मुट्ठी में राघव,
नयनों से बस आँसु ही बरसेंगे, या फ़िर मेरे नेह जीवन में उमंग बहार है।।

कब तक बैठूँ माता पिता के सहारे, या उनका सहारा बन मैं दिखलाऊंगी,
देखें जो उनकी बूढ़ी आँखों ने सपने, उसको पूरा कर कब मैं दिखलाऊंगी।
बस दो राघव आशीष तुम मुझे इतनी, बीच सफ़र में विश्वास न डगमग हो,
धूमिल हौसले में उम्मीद की किरण ढूंढ, जग में चमक कर मैं दिखलाऊंगी।

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निर्धनता बाधा नहीं होती है,
गर बना लिए इसे हथियार।
आगे बढ़ते —बढ़ते जाओगे,
कदमों में होगा फ़िर संसार।।

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साथ बना रहे हम दोनों का, तो जीवन सूरज सा चमके।
गुलाब सा बदन महके, तो चेहरे पर अपने आभा दमके।

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गर क्या समझेगा जमाना, संघर्ष हमारा, इसलिए पैरों की धूल छोड़ आई हूँ।
निकल पड़े अपनी मंज़िल की तलाश में, तो रश्मों रिवाजों को तोड़ आई हूँ।।

मत आवाज़ लगाना मुझको ऐ ज़माने वाले, नेह तो अपने सफ़र की राही है,
फ़ट गई एड़ियां हमारी, फ़िर भी राहों पे अपने पैरों के निशान छोड़ आई हूँ।।

भटका रहा था ज़माना हर कदम पे,तो कभी उंगली उठा रहा चरित्र पे हमारे,
अब तो न कोई अपना, न कोई पराया यहाँ, सबसे ही तो मुँह मोड आई हूँ।।

रेत जैसी बन गई है अपनी जिन्दगी, फ़िर भी अपने नाम इस पर लिखना है,
रेत को बना करके पत्थर का महल, उस पर अपना नेह नाम जोड़ आई हूँ।।

क्या दे जुबां इसको, जब मेरी ही परछाई कर रही है मेरे सारे हालात बयां,
ख़ुद को संभालते संभालते साहिब, अपने जन्म भूमि का रण छोड़ आई हूँ।

नहीं मिटा सकता अब जमाना, वजूद को हमारे, कर ले चाहे लाख जतन,
अपने जिन्दगी के कष्टों से लड़ते लड़ते, कुछ ऐसा ख़ुद को निचोड़ आई हूँ।।

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हो लाख संघर्ष राहों में तेरे नेह, परन्तु उम्मीद का दिया सदा जलाए रख।
चाहे हार जाए बाज़ी, मगर हर बार गिरकर उठने का हौसला बनाए रख।

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