लिखना तो चाहा तुम्हारे बारे में
💮 मगर 💮
बयां एक पल ना हुआ शब्दो में-
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A²= Alpana+Alkansha
K²= Kuku+... read more
महीनो में चैत्र मास मधु मास है
तिथियों में शुक्ल प्रतिपदा नव संवत्सर है
हिन्दी मास के शुभारंभ में ये तिथि अहम है
शुक्ल पक्ष मे नववर्ष आरंभ का ये पाख है
सृष्टि का वर्षचक्र परिवर्तन विधि का विधान है
प्रकृति का परिवर्तन नूतनता की आहट दे रहा है
चहुं परिवेश मे खुशहाली की मन मे जमी काई है
बाग-बगिचो में आम्रमंजरी भी परिपक्व हो गई है
खेत-खलिहानो मे पकी फसल की खुशबू छाई है
नव छटा से अन्नदाता के हदय मे भी संतुष्टि हो गई है
अद्भुत दृश्य भी तो इसी शुक्ल मे नज़र आता है
ईश्वर का अवतरण भी तो इसी मास मे होता है
कोयल की मधुर तान में रत प्रकृति धारण करती नव परिधान
गणगौर पूजती स्त्रियां,नवरात्रि का आंरभ ही नववर्ष आगमन-
नीतियों से मिलकर स्वराज्य गठित हुआ
आज-कल परिवेश मे रामराज्य थापित हुआ
धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र का सपना देखा ७६ साल पहले
आज-कल हिंदुत्वाद का जहर फैल रहा है
बुद्धिजीवियों ने बनाई नीतियां के विचार
आज-कल खंडहर हो रहे दिमाग के विचार
राष्ट्रहित मे लिखा गया नीतियों का चिट्ठा
आज-कल बेरोजगारी-भ्रष्टाचारी का बोल-बाला
हस्तलिखित शब्दों को किया गया अंगीकार
आज-कल शब्दजाल मे फसाने का काम चल रहा-
कुछ दिन ही हासिल है हमें
कुछ यूंही गंवा दिए है हमने
बाकि दिनो को जीना ऐसे
हर दिन नया बने हो जैसे
ठहर कर गुज़रे वक्त से सिखो
क्या कुछ ओर करना वो समझो
जो बित गया उसमे ना उलझो
जो जी रहे उसमे खुशियाँ ढूढो
मेहनत से इतना क्यो डरते हो
आलस मे इतने रोने क्यो रोते हो
कुछ करने का कष्ट हम नही करते
फिर क्यो ओरो को दोष देते हो
पुरे वर्ष नूतन जश्न मनाना है तो
व्यर्थ मे नही गंवाना इक पल भी-
मुझे भी आहिस्ता-आहिस्ता भनक लगी
कि नया साल आ रहा है सरपट दौड़के
ज़रा सा मेरा अचेतन माथा ठनका
क्या सब कुछ नया हो जाएगा क्या
फिर दिल ने दिमाग को कहा रुक जा तु
मत घिर इन बेतुके सवालो-जवाबो में तु
फिर मेरी कलम ने झट से लिख दिया
✨नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ-
इस नश्वर देह को पाया है
उस ईश्वर की तो दौलत है
आत्मा को गिरवी रखा है
कुछ वक़्त की अमानत है
सुत-समेत लौटाकर जाना है
आखिर मे हिसाब चुकाना है-
जो चाहा है वो मिल गया तो क्या करोगे
खुशियाँ के सिलसिलो में फिर क्या करोगे
खुशकिस्मती का जश्न ही मनाते रहोगे
या ओर कुछ पाने लालसा करते रहोगे
इन रास्तो का ना कोई अंत ना ही आदि
फिर मंज़िल के वलय गए तो क्या करोगे
यूं तो चंद लोग ही पहचानने लगे तो काफ़ी है
चकाचौंध मे खुद को भुला दोगे तो क्या करोगे
हर सफ़लता की कहानियां तो जुबां पे होगी
कुछ नाकामी मे हसरते मिल गई तो क्या करोगे
दुनिया की टीका-टिप्पणी तो रेत पे लिख दी
जो पत्थर की लकीर बन गई तो फिर क्या करना
दासता की बेड़ियां भी सब का हुनर भुला देती
खुद के विचारों से आजाद नही हुए तो क्या करोगे-
I'll try dedicate some words
to my soulmate 😅😍😛
Kuch imagination kuch reality
🤣
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सतयुग मे वाराह
त्रेता मे श्रीराम ने
द्वापर में श्रीकृष्ण ने
कलयुग मे वामन
ये सभी भगवान विष्णु के अवतार थे
अभी भी है हमारी आत्मा में
इन सभी का अवतार महज पृथ्वी का
भार हरण के लिए हुए था
सतयुग मे सत्य की राह पर चलने से
मोक्ष की प्राप्ति थी...!!
त्रेता युग में धर्म की राह पर चलने मात्र से
मोक्ष की प्राप्ति थी
द्वापर में व्रत पुजा पाठ को
मोक्ष का आधार बताया गया..!!
लेकिन कलयुग मे केवल नाम को
आधार बताया गया.. !!-
बरकत हुई दुआओ में उस रोज़
समा श्रावण की दिखा रही अदाएँ
बारिश हुई रहमतों की उस रोज़
उल्फ़त की बूंदे इठला रही दरिया में
क़ुदरत हुई मेहरबान उस रोज़
ज़रिया बनाया एक महतारी को
जश्न की वज़ह बनी उस रोज़
आह्लाद की बहार आई जब
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