QUOTES ON #लोकतंत्रऔरप्रेस

#लोकतंत्रऔरप्रेस quotes

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4 JAN 2020 AT 9:56

जब एक अहंकार और दूसरा लालच और तीसरा उदासीनता की दरारों से जर्जर हो चुका होगा तो कब तक खड़ा रहेगा चौथा खंभा अपनी बिक चुकी खबरों की सीमेंट और पहले से तय प्रश्नों के उत्तरों की ईंटों को लेकर।
पहले शायद जब ढहेगा वहीं तो बाकी के तीन खंभो पर
कब तक टिकी रहेगी लोकतंत्र की ये इमारत और बचा रहेगा संविधान।

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रिपोतार्ज

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3 MAY 2018 AT 20:09

लोकतंत्र में प्रेस की भूमिका।

हमारे लोकतंत्र में प्रेस की स्वतंत्रता है और सभी को अपनी भावनाएं व्यक्त करने के लिहाज से अपने शब्दों को रखने की भी स्वतंत्रता है।भारतीय संविधान के अनुसार कोई भी व्यक्ति अपनी सोच को विचारों के माध्यम से लोगों के समक्ष प्रस्तुत कर सकता है। और साथ ही अपने शब्दों में सूचना का आदान प्रदान कर सकता है।हमारी सरकार भी प्रेस के माध्यम से ही लोगों तक अपनी बात पहुंचाने में सक्षम है।

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3 MAY 2018 AT 21:33

प्रेस की स्वतंत्रता ही सही मायने में एक राष्ट्र की वास्तविक स्वतंत्रता है। परंतु आधुनिक समाज में प्रेस द्वारा राजनीतिक दलों की चापलूसी कहीं न कहीं वास्तविक अभिव्यक्ति और अभिव्यक्ति के माध्यम की सार्थकता को छिन्न-भिन्न कर रही है।
अगर सच्चे अर्थों में कहा जाये तो, हमें आवश्यकता हैं एक स्वतंत्र और पूर्ण प्रभावी प्रेस की...

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शाम के 5 बज रहे है, सभी अपने अपने घरों में अपने अपने क्रियाकलापों में व्यस्त है।
तभी सड़क पर सहसा शोर सुनाई देता है, और गहरे धुंवे के काले बादल।
सभी अपनी अपनी बालकनी में उत्सुकतावश निकलते हैं, पर वहां से धुंवे के अतिरिक्त कुछ नही दिख रहा।
तभी गार्ड सलीम आकर बताता है कि किसी जीप में आग लगा दी गई है।
सब के सब फ्लैट वाले पांचवी मंज़िल पर बनी छत पर भागते हैं, और वहां अच्छी खासी भीड़ इकट्ठा हो चुकी है। वहां से धू-धू कर के जलती जीप को आसानी से देखा जा सकता है।
सब एक दूसरे से पूछ रहे है, पता चलता है किसी अधिकारी की जीप है, जिसे कहा सुनी होने पर छात्रों ने आग लगा दी है।
अब हमसभी की नज़र सामने वाले बंगले की बाउंडरी वाल पर पड़ती है, सैकड़ों लोग उस पर चढ़े है और सभी के हाथों में मोबाइल, वीडियो शूट और स्टिल फोटोज़---
कोई ये जानने का प्रयास नही कर रहा, कि कोई मरा तो नही और न ही किसी को पुलिस को सूचना देने की फुरसत---
और अंत मे मेरा स्पेशल कमेंट(पत्रकार का) क्या होगा इस देश का, यहां कुछ नही सुधर सकता।
रश्मि सिन्हा

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4 MAY 2018 AT 11:24

लोकतंत्र में प्रेस की भूमिका बहूत अहम है,
हम सभी को इसी बात का वहम है।
आज कल मीडिया भी बिकने लगे हैं,
समाज में इसका असर साफ अब दिखने लगे हैं।
सच्ची खबर जनता तक अब पहुँच नहीं पाते,
मीडिया अपनी ताकत समझ नहीं पाते।
न्यूज चैनल पर डीबेट छांए हुए हैं,
हार्दिक कन्हैया शैलजा को बुलाएं हुए हैं।
बड़े - बड़े चैनल का यही हाल है,
देश की जनता इन सबसे परेशान हैं।।






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3 MAY 2018 AT 20:03

Caption में पढ़े मेरे जीवन की कहानी.

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3 MAY 2018 AT 18:43

'पत्रकारिता' कि हो रही है बरबादी ,कुछ भी छापने की मिली है जो इतनी आजादी !

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4 MAY 2018 AT 13:39

लोकतंत्र में प्रेस की भूमिका:

सत्ता अपने मौलिक स्वरूप में अधिनायकवादी ही होती है चाहे वह लोकतंत्र ही क्यूँ न हो। लोकतंत्र के तीन मजबूत स्तंभों विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका की निरंकुशता को जवाबदेही के कटघरे में खड़ा कर प्रेस अपने चौथे मजबूत स्तंभ होने का दायित्व बखूबी निभाती रही है। सही अर्थों में लोकतंत्र जिसे हम जनता का, जनता के लिए, जनता के द्वारा परिभाषित शासन पद्दति मानते हैं वह प्रेस की स्वतंत्र एवं सुगठित भूमिका के बिना जमीन पर नही उतारा जा सकता। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रेस की आजादी का मुख्य आधार है। यह जनता को अपनी भावनायें व्यक्त करने का मंच उपलब्घ कराती है। साधारण जनमानस अपने इस मौलिक अधिकार का एक निष्पक्ष प्रेस के अभाव में प्रयोग नहीं कर सकता। प्रेस के ऊपर भी यह गुरूतर दायित्व है कि वह सही मायने में लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की भूमिका निभाने के पूर्व स्वयं को निःस्वार्थ, संवेदनशील, जुझारू और लोकहित के प्रति प्रतिबद्ध बनाय रखे। साथ ही सत्ता के अतिवादी चरित्र की आशंका को मजबूत प्रेस के बिना निर्मूल नहीं किया जा सकता।
फलस्वरूप, जनतांत्रिक सरकार भी अपनी नीतियों का मूल्यांकन केवल तकनीकी आधार पर न कर जन आकांक्षाओं का आदर करते हुए उसे यथारूप देकर सर्वग्राही बनाने को प्रेरित होती है।
~ Sunita

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4 MAY 2018 AT 6:36

कौन जंगल की धूल छानता फिरे,
जब पिंजरे में अय्याशी के सामान हैं
Kaun jungle ki dhool chhanta phire
Jab pinjare me ayyashi ke saman hain

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