Sunita Sinha   (Sunita)
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Joined 19 January 2017


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Joined 19 January 2017
7 JUN 2019 AT 8:59

कम शब्दों के बोल अमोल
लाग लपेट ना हीं कोई झोल
मनभावन कलाकार की भाँति
ऐ सखी साजन ? ना सखी स्वाति !

कोकिल कंठ तिस पर सुघड़ता
सहज, सरल, सौम्य, शुचिता
बहाए प्रेम की अजब लहर
ऐ सखी साजन ? ना सखी सहर !

जन्मदिन मुबारक... स्वाति 'सहर' !!!

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23 MAR 2017 AT 15:10

आज़ादी की कमान पर तना हुआ
वतन की उल्फत में सना हुआ

बसंती चोले की मॉंग करता रहा
था शहीद, फंदे पर लटका हुआ

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22 APR 2020 AT 8:11

आसान है भीड़ में अकेला हो जाना
परन्तु अकेलेपन में भीड़ के
बढ़ते दबाव को महसूस करना
उनसे बचने की तमाम कोशिशों के बावजूद
कानों में उनकी चीख़
और पीठ पर नाखूनों की खरोंच सहना

मैं तुमसे बता रही हूँ
उन हालातों को जीते हुए
सम्वेदना शून्य हो गयी हूँ
जिसमें मेरा कोई हिस्सा नहीं है

मैं दो दुनिया के बीच कब से खड़ी हूँ
और मेरे पाँव निरन्तर पूछ रहे
" जाना किधर है ?"

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20 APR 2020 AT 10:46

घर बैठे भी मिल जाते हैं
दो राहे, चौराहे, विपथन
रोज़-ब-रोज़ ;

एक मुसाफ़िर का भटकना ही
ज़रूरी तो नहीं... !!

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19 APR 2020 AT 15:10

सब कुछ पीछे छूट जाने के मर्म में ही
सब कुछ को बरत लेने का भ्रम निहित है

मोड़ उलझन में रहता है
सड़क से पूछता है मंज़िल किस राह है
मैं तुमसे कहना चाहती हूँ...

तुम्हारी आदत भी वही शय है !!

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19 APR 2020 AT 11:55

स्मृति की अलमारियों को सजाते वक़्त
बहुत कुछ होगा मेरे पास बाँटने को

मैं बस सहेजना चाहूंगी
मुश्किल दौर में
मेरे साथ खड़े होकर कहे गए...

तुम्हारे सुकूनदायी
शब्दों को !!

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18 APR 2020 AT 11:48

ख़ामोशी हमेशा सपाट नहीं होती
उसमे चुनने, आंकने और अपनाने
का विवेक होता है

मैंने सुनने और सुनाने के दरमियाँ
हमेशा मौन का विकल्प चुना...

क्योंकि, तुम्हें सुनना पसंद है मुझे !!

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17 SEP 2019 AT 19:55

आँखें ठहरीं ग़ज़ाल पे और वो ढूँढे कस्तूरी
मोर निहारे आसमां, है दुनिया ग़ैर ज़रूरी

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17 SEP 2019 AT 14:25

इस एक आस में तपना है उम्र भर बा-अमल
विदा के वक़्त का मंजर उफ़ुक़ सा गहरा हो

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16 SEP 2019 AT 21:10


हो रहा हर ज़ाविये से दिन ब दिन अब लाज़िम
क्यों नहीं उस ख़्वाब के सदक़े उतारे जाएँ

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