Sambhav Jain   (संभव जैन)
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Joined 26 September 2017


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Joined 26 September 2017
14 OCT 2019 AT 23:42


मैं विरह की तलाश में हूँ,
ये प्रेम अलाप मुझसे नहीं रागे जाते।

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13 OCT 2019 AT 21:35

ये अजनबी, ये गैर, ये भूले बिसरे रिश्ते तुम नहीं निभाते हो
शायद यही वजह है हमारे प्यार की जो पास ही रह जाते हो

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13 OCT 2019 AT 17:44

सुनो, रुको, थोड़ा तो ठहर जाओ न
मेरे शहर में एक नया सबेरा होने वाला है
तुम मेरे पास ही आने वाले हो न
तुम मुझे ही जगाने वाले हो न

भोर की पहली किरण तुम्हारी ही होगी न
तुम दिन में ही मेरे सबसे नजदीक होगे न
तुम मेरी संध्या में वो सात रंगों वाला जादू दिखाओगे न
तुम डूबते हुए कितने खूबसूरत लगते हो
फिर एक नई सुबह का वादा करके जाओगे न

अच्छा तुम मेरी रातों को ही ठंडा करने के लिये जा रहे हो न
तुम में कितना गुरुर है न, शायद मेरा ही सुरूर है न
तुम मेरे लिये सफेद रोशनी लाओगे न
अच्छा मैंने रात में तुम्हारा दीदार अपने सहमे पन से किया था
कल तुम फिर नई सुबह लाओगे न
बोलो तुम आओगे न

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12 OCT 2019 AT 20:42

पेड़ वो जो पूछ रहा था, प्रेम क्या है?
उसे पता नहीं था कि
मुझसे ज्यादा प्रेम कौन निभा सकता है?
मुझसे ज्यादा अपना कौन बना सकता है?
मुझसे मेरे लिये बस इतना सा प्रेम है
कि मैं ये प्रेम माँगने वालों से
उधार में बस इनकी उपयोग की हुई
हवा की अपर रूप लेता हूँ
जो कि पहले ही मैं इनको शुद्ध हवा दे देता हूं
आज तक मैंने इन्हें इनके जन्म से लेकर
मरण तक का सारा इंतज़ाम कर दिया है
इनकी सारी जरूरतों का मैंने ही पेट भरा है
और आज ये मुझसे पूछते हैं, प्रेम क्या है?
आज बस इतना कहे देता हूं!
ये जो प्रेम के लिए गुलदस्ते सजाते हो
और ये जो प्रेम का गुलाब प्रेमी के दिल में खिलाते हो
बस मैं ही हूं, हाँ मैं ही प्रेम हूं

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12 OCT 2019 AT 1:36

लेकर अल्फाज़ ज़िन्दगी के तुम्हारे पास आ रहा हूं
आज नहीं जाना, मैं कल की बात बता रहा हूं

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7 OCT 2019 AT 1:29

नैनों से अदाएं, अदाओं से इज़हार करते हैं
वो करते तो हैं हमसे इश्क़, हम ही ऐसा स्वीकार करते हैं

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6 OCT 2019 AT 18:00

दिल में उतर गये वो शब्द जो उसकी पीड़ा से रूबरू थे।
हाँ जख्मों में भी भर गये वो दर्द जो उसकी सीरत के हूबहू थे।
आख़िर हुआ था अब कुछ इस क़दर उसके जीने का ही ऐलान।
बस वो तड़पती रही उन पलों को, लेकिन किसे पता था कि
यही है उसकी आख़िरी पहचान।

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5 OCT 2019 AT 21:55

न नज़र में कोई है,
न नज़र में कोई आयेगी
जब नज़र ही है हम पर तुम्हारी,
भला हमें नज़र कैसे लग जायेगी

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5 OCT 2019 AT 21:47

वो न समझ होकर भी थोड़े समझदार लगते हैं
हाँ वही मेरे यार लगते हैं और वही मुझे प्यार करते हैं

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5 OCT 2019 AT 2:35

इस ज़िन्दगी के उसूल में ही बस कमल खिला रहा हूँ
कुछ तुम्हें अपना रहा हूँ, कुछ मुझे बतला रहा हूँ

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