उसका खून नीला और उसका निकला पीला
सीखती गया मै बचपन से और भागती रही मै अंदर से
फिर एक दिन जब बहाने लगी मै खून सबका
निकली फिर नफरतें और कमजोरियां
खून का रंग निकला फिर मुझसे
और मिल गई सबकी मजबूरियां।
टूटती हुई चप्पलों में नापती थी वो दूरियां
छिल गए वो पांव भी अब जिनमें लगी थी मेहंदिया
घिसते घिसते रो पड़े थे वो जूते भी किसी जाम में
जाम चल रहे थे तब किसी अमीर की शाम में।
कब्रों पर कर रहे हो तुम जो आज घमासान हो
मर गए जो मारने वाले तुम क्यों बनते लाश हो
जलेंगे न किसी नेता के घर न किसी के काफिले
जल जायेंगे सपने किसी के तुम जैसे ही हाल में।
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चलो एक बात कहते है,फिर झूठी आस करते है
टूटते देखते है फिर सपनों को और गमों से मुलाकात करते है।
बीती उन बातों का फिर बखान करते है
और सामने बिखरी लाशों को नजरअंदाज करते है।
भविष्य के ख्वाबों में बस खुश होंगे हम
पर बस अतीत में जीकर महान बनते है।-
जरूरी तो नहीं की हम भी किसी के लिए उतने ही जरूरी हो जितना वो हमारे लिए है... बस दर्द इतना है कि ये गलतफहमी थोड़े जल्दी दूर हो जाती तो अच्छा था।
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जब प्रेम का पर्दा हटता है आंखो से और सामना होता है दुनिया की कड़वी सच्चाई से शायद तभी होती है असली प्रेम परीक्षा....अब इस परीक्षा में या तो प्रेम मजबूत ही होता है या बिखर जाता है उन लाखों अनकही कहानियों की तरह जो पूर्ण होकर भी पूर्ण नहीं होती।
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मैं गुजरती हूं उसकी गली से उसके लिए , पर उसे खबर कहां है
मैं गुजरना बंद भी कर दूं तो किसी दिन, उसे फिर भी खबर कहां है-
ये जो कहते है कि रात के बाद सुबह आयेगी
बस ये बता दे ये रात अब और कितनी लंबी जायेगी...-
तुमने पूछा था ना मुझसे कि
जो दिल में है वो कह क्यूं नही पाती मैं?
चलो आज तुम्हारे इस सवाल का जवाब दे ही दूं
जो कह नहीं सकी तुमसे वो इसी पन्ने पर रहने भी दूं।
कहा था मैंने अपना हाल पर किसी ने समझा ही नहीं
फिर दिल ने भी सोचा कि वो परेशान है अपनी ही शिकायतों से
क्यूं उन्हें अपनी तकलीफों से वाकिफ होने दूं
बस वो देखे मेरी तरफ और मुस्कुरा दे, तो मैं अपनी शिकायतों को अंदर ही रहने दूं।
उन्हें आदत नही है मेरी खामोशी की या कहूं अब मैं काफी नही
तो दिमाग ने फिर सोचा, वो बोले मुझसे कुछ और मैं सुन सकूं उनकी बातें
इसलिए अपनी बातों को थोड़ा चुप ही रहने दूं।
वो सोचते है कि मैं मुस्कुरा रही हूं तो खुश हूं तो ये ही सही
फिर आखों ने भी सोचा, कि उनकी आंखों में नमी ना हो
वो रख सके मेरे कंधे पर सर, इसलिए इन अश्कों को अंदर ही रहने दूं।
तुम कभी बैठना मेरे साथ फुरसत में और देखना मेरी आखों में
पढ़ सको तुम जिस दिन मेरे अंदर का हाल, समझ सको मेरी खामोशी को
शायद उस दिन तुम जान सको, क्यू नही कह पाती मैं अपने दिल का हाल।-
गणित की समांतर रेखाओं सा है हमारा जीवन
तुम साथ तो हो मेरे पर मुक्कदर में नहीं...-