यूं मेज पे,
एक लिफाफा,
कब से तेरा नाम,
लिए पड़ा है,
पर ये खत,
लिखने में देखो,
एक उम्र सी लग गई।-
डाकिये को भी इंतज़ार है, अब तुम्हारे जवाब का,
मेरे ख़त के बदले तुम खाली लिफ़ाफ़ा ही भेज देती।-
वही लफ्ज़ लिखे थे तुमको जो बोले नहीं गए मुझसे,
लेकिन दोस्त,,,
तुमसे भी तो मेरे वो लिफाफे खोले नहीं गए.....-
आओ एक दूजे को खोल कर पढ़ते हैं
आओ दरमियाँ फ़ासलों को कम करते है.!
बंद पड़ा है जो सालों से लिफाफा
उसे एक बार फिर से खोलते हैं..!
आओ वापस उसी पते पर
एक दूजे को बाहों में भरते हैं...!-
मेरे हालात एक खत के टुकड़े में नहीं आएंगे
तेरे दिए ज़ख्म इतने हैं कि लिफाफे में नहीं आएंगे
میرے حالات ایک خط کے ٹکڑے میں نہیں آئینگے
تیرے دیئے زخم اتنے ہیں کی لفافے میں نہیں آئینگے-
लिफाफा पाकर हमने समझा
भेजा है उन्होंने ढेर सारा प्यार।
जब खोलकर देखा तो निकला
खुद के दिल के टुकड़े थे हजार।-
कुछ जज़्बात वो खत हैं
जिसे हम महसूस तो करते हैं
लेकिन लिफाफे तक को
खबर नहीं होने देते-
प्रेम की उसी प्रथम-सरल सी अनुभूति में मैं हर बार डूब जाती हूँ!
जब जब भी मेरे रुबरु आती हैं प्रिय, वो तेरे नेह में नहाई चिट्ठियां!!-
प्रकृति जब भी भेजेगी
मेरे हिस्से का प्रेम।
लिफ़ाफ़े पर चिपका होगा
तेरे नाम का डाकटिकट।-
"बंद लिफाफे के आकर्षण-सा इश्क़ तेरा,
ज़रा देखूँ तो सही दिल में तेरे झाँककर,
क्या इस पर मेरा ही है पता लिखा!!"
- अंजली सिंघल-