इन हवाओं का रुख आज कुछ तो अलग-सा लग रहा है ;
मौसम बदल रहा या मिजाज , ये समझना कुछ मुश्किल-सा लग रहा है !!-
जब से हवाओं का रुख बदला है
यादों में उमस बढ़ती जा रही है
पसीने की बूंदे माथे पर नहीं अब
आंखों में चमकती जा रही हैं
रात में भी अब चांद तपने लगा है
धरती भी बेवजह कंपकंपाने लगी है
ये मौसम का कोई बदलाव नहीं
अब जज्बातों में खुश्की आने लगी है!!-
नसीब में तो दोनों के ही था,
प्रेम भी और प्रतीक्षा भी......
पर निभाने की जहां बात आई,
हवाओं ने,
रुख बदल लिया उसके शहर की........
और मैं ,
वहीं खड़ी हूं आज भी,
उसी मोड़ पर.........
#अक़्स-
ना रखता मैं एटीट्यूड हूं,
ना पसंद करता किसी का!!
सबसे मिलता हूं खुशमिजाज बन मैं,
फ़क़त इसे मेरी कमजोरी ना समझना!!
ना मिले हो तुम असल स्वरूप से मेरे,
जब रुख बदल जाऊ फिर वापस नहीं मिलता।।
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रुख हवा का में बदल दु
अगर तू उड़ान ले
जंग तेरी में लड़ूगा
बस तू जितने की ठान ले-
रुख हवाओं का मैं मोड़कर आ गया,
सारे बंधन स्वतंत्र तोड़कर आ गया..!
तुमने समझा नहीं एक पल भी मुझे,
बीती बातें सभी छोड़कर आ गया..!1!!
थाम लो बढ़कर हाथ मेरा,
मुझे अपना कोई होश नहीं..!
सुन लो जो तुमसे कहती है,
ये तन्हाई ख़ामोश नहीं..!2!!
तुम मेरे हुए आभार तुम्हे,
लो करता हूँ स्वीकार तुम्हे..!
लो सौप दिया जीवन तुमको,
मुझ पर सारे अधिकार तुम्हे..!3!!
सिद्धार्थ मिश्र-
आग लगाने वालों को क्या ख़बर,
रुख हवाओं ने बदला तो खाक वो भी होंगें...!!-
कैसे बताएं तुम्हें, हमने क्या क्या देखा है।
बस इतना समझ लो, हवा को रुख बदलते देखा है।।
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कभी समुन्दर की लहरों ने सिखाईं थी मस्तियॉं
अब हवा के साथ-साथ गिरना संभलना है
नहीं गवारा हैं खामोशियों के ये दौर मुझे
अब हवा के साथ चल अपना रुख बदलना है
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सुकून से गुज़र रही थी जिंदगी अपनी भी
तुम मिले
इश्क़ हुआ
जिंदगी की अबो- हवा का रुख ही बदल गया-