कभी खुशी से चलने के मौके भी दिया कर क्यों मुश्किलें हजार दिया करती है कर ले अपने अरमान पूरे जिंदगी हम कौन सा हार मानने वाले हैं देख फिर कैसे मुस्कुराते गुजरती है
तुम्हारे बिन हमारी जिंदगी में तन्हाइयां हैं वक्त की शाख पर बिखरी रुसवाइयां हैं सहर से शाम तक यादों में गुज़र जाती है हमारे इश्क की ऐसी ही कुछ गहराइयां हैं
बहुत मजबूरियां हैं जो मुझे तन्हाइयां मिलती हजारों गम से लड़ कर भी रुसवाइयां मिलती नहीं मिलता किनारा डूबती साहिल पे आकर ही मुझे साहिल पे आकर भी सदा गहराइयां मिलती