Saurabh Mishra   (सहज सौरभ)
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Joined 28 April 2020


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Joined 28 April 2020
2 FEB 2023 AT 18:59

मैं क्यों कहूँ दुनियाँ उस रंग की है
जैसी तुमने देखी है
अलग हैं मंज़र-ए-चश्म मेरे

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26 DEC 2022 AT 19:52

रास्ते हैं रास्तों के बीच एक दीवार खड़ी है
रुख हवा का उल्टा है पतंग आसमान छूती नहीं

तुम खुशबू हो क्या तुम्हें मालूम नहीं?

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6 OCT 2022 AT 22:15

ख़ामोशी से गुजर जाते हैं मुसाफ़िर कहने वाले
सुनने वाले करते रहते हैं सफ़र में शोर इतना

क्या रहता नहीं तुम्हारे शहर में चारा-गर कोई

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23 AUG 2022 AT 9:14

झूठ है कविताएं मरती नहीं
कविता भी मरती है
जब हम नहीं सुनते
कविता जो हमसे कहना चाहती है
तब अपनी बात न कह पाने के कारण
कविता मर जाती है
जैसे लोग मर जाते हैं
संवाद की कमी से
मौत का सबसे भयानक रूप है
संवाद की कमी से मरना
और आज की सबसे बड़ी समस्या है
दो लोगों के बीच
एक स्वच्छ संवाद कायम न हो पाना

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22 AUG 2022 AT 16:39

सच है
वो सारे किरदार
जो हमारे ख्वाब में जीते हैं
वो हकीकत में होते
तो फिर ये दुनियां
कितनी खूबसूरत होती
ठीक उन ख्वाबों की तरह
पर उन ख्वाबों का
हकीकत हो जाना भी
एक हसीन ख्वाब ही है

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13 AUG 2022 AT 14:09

तुम्हें लगता है
बगीचा बनकर
तुम कर लोगे प्रेम
मुमकिन ही नहीं

प्रेम में तुम्हें
जंगल होना पड़ेगा

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12 AUG 2022 AT 16:27

खोना
पाना
मिलना
बिछड़ना
दर्द
खुशी
आंसू
मुस्कान
दिखते नहीं पर होते हैं
एक जिन्दगी के कितने पहलू

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8 AUG 2022 AT 20:14

मैं नदी होना चाहता हूं
और ठहरना भी चाहता हूं
हां जनता हूं दोनों बातें
है एक दूसरे के विपरीत
पर ऐसा ही है
और बस यही नहीं
बहुत सी ऐसी बाते हैं
जो मैं होना चाहता हूं
पर वो एक दूसरे मेल नहीं खाती
जैसे मेरी चाह है
कि मैं बारिश हो जाऊं
बुझा दूं धरती की प्यास
पर इन घने काले बादलों का
साथ छोड़े जाने से डरता भी हूं

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26 JUL 2022 AT 14:30

चीर कर सीना पत्थर का उसे पानी कर देते हैं
मुस्कुराते हैं अपने हर गम को रवानी कर देते हैं
ये वही हैं जो जीकर करते हैं हिफाजत देश की
और मर के भी तिरंगे को आसमानी कर देते हैं

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24 JUL 2022 AT 13:36

अबके इस तरह बिछड़ते देखा है कुछ लोग फिर मिलने का वादा करके
जैसे शाख से टूटा हो पत्ता कोई तूफानों में फिर उगने का वादा करके
आंसू, मुस्कान, प्यार, दोस्ती या कोई ख्वाहिश जो भी थी रहेगी उम्र भर
वो हँसते हँसते मिल रहे थे गले आखरी कुछ भी न भूलने का वादा करके

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