देखा तो जिंदगी से सामना हो गया... भुला बैठे थे जिसे गफलत में, आईना हो गया...... हां, रूबरू हुए खुद से, इक ज़माना हो गया, जिंदगी से छिपकर देखा तो अक्स' अफसाना हो गया.....
सुर्ख लबों से लिखी थी जो, सितंबर की कहानी..... वो आते अक्टूबर में हो गई रूहानी, अब तो सर्द रातें ही होगीं फ़कत, कभी तेरी ज़ुबानी, कभी मेरी ज़ुबानी....💕
बोझिल हैं पलकें, पर निगाहें थकती नहीं...... ये तेरा इंतज़ार भी क्या चीज है, इसकी शाम होती नहीं...... यूं तो यहीं है तू , संग मेरे हर सू, पर तड़प तुझसे मिलने की, क्यूं बिसरती नहीं......💕
न जाने कब, चुपके से आ जाता है ये सूनापन , दो प्रेमियों के दरमियान इक उम्र के बाद...... पर थामे रहते हैं वो हाथ इक दूजे का ताउम्र क्यूंकि जुड़े रहते हैं उनकी सांसों के तार......