क्या सच में अच्छा होने की जगह अच्छा होने का दिखावा जरूरी है ?
क्यों इस भीड़ में खुद को दुनियाँ की ऐब/खोट
से छुपाने के लिए मुखौटे का पहनावा जरूरी है ??-
गुज़र गया,
ये शाम भी ढल जायेगी !
ज़िंदगी के शोर में; यारों,
कुछ बात कहिं खामोश सी
रह जायेगी !
खुल के जी लो जितना जी सको,
वर्ना देखते ही देखते जाने कब
ये बाज़ी पलट जायेगी !!
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कहने को तो बहुत कुछ है ,
पर सुनने वाला कौन है ?
यूं तो अपना कहने वाले बहुत हैं,
पर सच में अपना बनाने बनाने
वाला कौन है ?
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ख्वाहिशें कुछ अधूरी सी जान पड़ती थीं जो ,
तुझे देख के मुक्कमल हो जाने की चाह रखने लगीं हैं !!-
हसरतें हमारी कुछ यूँ अधूरी रह गयीं , तलाश थी जहाँ जिंदगी भर के साथ की ;
वो तो दो कदम साथ चलते ही , एक ही पल में मीलों की दूरी हो गयी !!-
; इन आँखों में छुपे
चंद आंसू भी चुपके से बह गये ;
एक इनका ही सहारा तो बचा था पर
अब तो ये कम्बख्त भी हमें दगा दे गये.....!!
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जब भी चाहा उसने जंजीर तोड़
अपनी पहचान बनाने की ,
हर मुमकिन कोशिश की ज़माने
ने उसपर और पकड़ बनाने की !!
पर इल्म ना था उन्हें कि असीम
शक्ति थी उसमें ;
जिम्मेदारियों का पिंजरा उन तमाम
बेड़ियों संग उड़ा ले जाने की !!-
Everything around you
seems blurry ;
Look for the missing pieces
And do not act in any hurry .
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