सम्पन्न माँ ने
बच्चों से पूछा
'आज क्या बनाऊँ?'
विपन्न माँ ने
बच्चों को देख
स्वयं से पूछा
'आज क्या बनाऊँ?'
प्रश्न एक ही था
दोनों के अर्थ और
आर्थिक दशा भिन्न रहीं केवल।-
रसोई में जब भी तेरे हाथों का जादू चला है
हर निवाले पे वाह वाह निकला है "मां"-
छोटी सी जिंदगी को किश्तों में बाँट लेती हूँ,
औरत हूँ तकलीफ़ भी हँसकर काट लेती हूँ,
महक उठती हूँ अक्सर मोंगरे के गजरे सी
गुजरती हवा की खुशबू समेट साथ लेती हूँ,
किलकारियों में ढूंढ लेती हूँ सुकून अपना
बच्चों की मासूमियत में गुज़ार रात लेती हूँ,
चूड़ियों की खनक, पायल सी छनकती हूँ मैं
आँखों के काजल तले छुपा बरसात लेती हूँ,
कुछ ख्वाब बिखरे मिलते हैं हर रोज़ रसोई में
मिलती-जुलती ख़ुशी तरतीब से छाँट लेती हूँ !-
शायद तुम्हें नहीं मालूम
जब 'रसोई घर में' चुपके से पिछे से आकर 'मेरी कलाई' पकड़ते थें ना तुम..
तो चूल्हे पर चढ़े हुई 'आलू के पराठे' भी हमें साथ देखकर 'जल' जाते थें...!-
सारे कनस्तर खाली हैं मेरे विचारों के
अब कोई कविता पकती नहीं मेरी रसोई में-
मदर्स डे पर सभी घर पर इकट्ठे हुए। सभी ड्राइंग रूम में बैठे हँसी मजाक करते रहे। माँ रसोई में भिड़ी रही।
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आज हमारी रसोई में समोसे की नमकीन-रुत है आई
चटपटी इमली चटनी लौकी रायता छोला भी है बनाई
समोसे में आलू-गाजर मूली मसाले पनीर भी है भराई
फॉर्च्यून-रिफाइन में पाँच चम्मच शुद्ध-देशी-घी तलाई
आलू-मसाला भूनने के भभके से पूरे घर झांस समाई
तनिक सोचना गृहनियाँ रसोई में नित ऐसी घुटन पाई
समोसे में हींग और काला-नमक भी भाभी ने मिलाई
आज रात हमारे घर भारी-बमबारी की भनक है छाई-
आज हमारे घर मसाला डोसा बन रहा है
सांबर मसाले की खुश्बू से पेट तन रहा है
नारियल की चटनी में लाल--मिर्च तड़का
मन लालच समाया घर-आँगन है भभका
चावल-उड़द-की-दाल से खमीर है बनाई
भगोने में सफेद-सफेद गाढ़ी घोल सजाई
मैं बोली मम्मी एक तो देदो अभी खानी है
मम्मी बोली ठाकुर जी को भोग लगानी है-