" मृगनयनी तेरी खुशबू से महके हर अफसाने..,
तेरी सांसों से बहके दिल के हर मयखाने..!
तेरी नादान सुरत पे मोहब्बत भी महके..,
हर रिश्ते की झलक में तेरी खुशियाँ बरसे..!
हो अगर अलफाज़ बस में जिंदगी का गीत बना..,
तुझे इबादत लिखकर तेरी खमोशी ओड़ ले..!! "
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प्रभु तुम मृग के पीछे दौड़े, उस पर बाण चलाये, उधर देवी का अपहरण हो गया।
मेरा अपहरण तो उस मृगनयनी ने अपने नयनों के तीर चलाकर कर लिया।-
मैं मृगनयनी शांत सुकुमारी और वो चंचल राजकुमार
मान-मर्यादा हमारे आड़े आ रही है मैं कैसे करुँ प्यार-
मृगनयनी डोळ्यात तुझ्या
काळे निळे नभ धावती..
गडगडाट करती सारे
तुजसवे थेंब नाचती..
Kishor
आला श्रावण मास
मातीत बीज बोलती..
गाते वेडी कोकीळा
पाने फुले तुला पाहती..-
कभी कभी धरती को देखा
आकषर्क रूप धरती है तू
नारी सुलभ देह यष्टि में
मोहक नृत्य भंगिमाओं में
मन लुभा लेती है तू।
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धरती बन कर तुम आना, मैं बादल बन कर आऊँगा
तुम चाहे जो बन जाना, मैं पागल बन कर आऊँगा
सरिता बन कर तुम आना, मैं सागर बन कर आऊँगा
तुम चाहे जो बन जाना, मैं पागल बन कर आऊँगा
मृगनयनी तुम बन जाना, मैं काजल बन कर आऊँगा
तुम चाहे जो बन जाना, मैं पागल बन कर आऊँगा-
आसपास ये कौन है मेरे?
किसने अपने पग हैं फेरे,
किसका जादू नभ पर छाया?
किसे देख चंदा शर्माया?
तारों के भी सजे हैं डेरे.!
आसपास ये...
मृगनयनी का प्रेम है अद्भुत,
जड़ चेतन नर सब हैं प्रस्तुत,
अधर पे लाली रंग बिखेरे.!
आसपास ये...
उसके रूप की मादक हाला,
मैं हूँ प्यास वो है प्याला..!
उसने सौंपे मुझे सवेरे..!
आसपास...
सिद्धार्थ मिश्र-
मृगनयनी हो या जादूगरनी,
नजरों के वार से मोहित कर देती हो।।
सुंदर सजावन रुप तुम्हारा देखकर,
पल भर में जग से पराया कर देती हो।।
कोमल ह्रदय में प्रेम के पुष्प खिलाकर,
शांत मन को प्रफुल्लित कर जाती हो।।-
आ लिखूं एक श्रृंगार
तेरे कोमल अधरों पर...!
टाँक दूँ एक प्रेमगाथा
मृगनयनी पलकों पर....!
जाग्रवि बरनवाल ❤
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मृगनयनी हो
मोहपाश में बांध लेती हो
चंचल हिरनी-सी
क्यों डोलती हो
आशिक हजारों हैं तेरे
आ तुझे दिल में छुपा लूं-