मेरे आंसू टंगे हैं , वृक्ष की हर शाख पर
ले उधार नैनों से, शबनम बही है रात भर-
करो बंजर उस जमीं को आतंक के बीज पनपते हैं
विषैली हो जाती है हवा उस मुकाम से गुजरते हुए-
तुम जो कह दो तो यकीनन मुस्कुरा लेंगे हम
पर वो मुस्कुराने की सलोनी सी वज़ह दे दो-
सोचती हूँ प्रीत को तेरी ओ हमनवा क्या नाम दूॅं
झर झर झरे अनुरागी नयन मितवा क्या नाम दूॅं
सागर की उत्ताल तरंगें लेवे हिलोर हिय ताल में
खिल गया शतदल अंबुज ये मनवा क्या नाम दूॅं
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जन्मदिन की बहुत बधाई प्यारी नीलम रानी को।
सहज, सुंदर और सद्गुणों की बहती रवानी को ।-
कभी कभी धरती को देखा
आकषर्क रूप धरती है तू
नारी सुलभ देह यष्टि में
मोहक नृत्य भंगिमाओं में
मन लुभा लेती है तू।
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अनुशीर्षक ----
बारिश में भीगी भीगी हवायें
नन्ही नन्ही बूंदों का साया है
स्नेहिल रंगत तेरे स्पर्श की
हौले हौले से छूवे पुरवैया है ।
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उड़न लागे रंग हवा में , छिड़ गया फगुआ राग
उठी हिलोर रग रग में, मनवा चला खेलन फाग।-
जलती बुझती दो दिशायें जीवन का आधार
सागर में उतार दी कश्ती, जाना है उस पार
सुधा गोयल
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समय अभी बुरा है, ओझल है चाॅंद अमावस का
है अंधेरों का सितम बन सूर्य चमकना चाहती हूँ-