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तन्हा तो तू भी कम नहीं है।
बस कहता फिरता है
कोई ग़म नहीं है।
किसी रोज़ मर्दानगी के
चोले को उतार फेंकना
अपने ज़ख्मों को बयां करते वक़्त
तू भी रो पड़ेगा फिर देखना।
-वैदेही
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मर्द को, अौरत के किरदार...
की बडी फिक्र रहती है ,
यदि, वह थोडी सी...फिक्र,
अपने...किरदार को, संवारने की
करले न, तो कोई भी अौरत...
बद-किरदार,ना कहलायेगी...!-
हां! मैं मर्द हूँ
पर दर्द
मुझे भी होता है
जब कोई
दिल दुखाता है!!
हां! मैं मर्द हूँ
पर दिल
मेरा भी रोता है
जब कोई
अपना बनाकर
जलील करता है ..!!-
औरत मर्द के हाथों का औज़ार है
मर्द औरत के माथे का श्रृंगार है
दोनों पूरक हैं एक दूसरे के हमेशा
हाथों में एक दूसरे की पतवार है।-
"मर्द" चाहता है "कृष्ण" बना रहे उम्र भर,
लेकिन "पत्नी" अपेक्षित होती है उसे "सीता" जैसी...
औऱ भूल जाता है कि दोनों चरित्रों के बीच में एक पूरे "युग" का अंतर है !-
चोट लगती है उसे पर दर्द अब होता नहीं
क्या हिफ़ाज़त करने वाला मर्द अब होता नहीं
ज़िन्दगी की भीड़ में सब खो गया है इस क़दर
साथ सबका दे सके वो फ़र्द अब होता नहीं-
"मर्द"
मैं मर्द हूँ मुझमे बहुत ताक़त है पर अगर लगातार सात मिनट तक मेरे शरीर से खून निकले तो मेरी हालात खराब हो जाती हैं
लेकिन मेरी माँ बहन बेटी बहू बीवी दोस्त पड़ोसी और प्रेमिका के शरीर से लगातार सात दिन तक खून निकलता रहता हैं पर मुझे उसकी कोई परवाह नही
परवाह तो दूर की बात है उन दिनों तो मैं उनके साथ अछूतों जैसा व्यवहार करता हूँ
उनको अपने ईश्वर की पूजा अराधना से वंचित कर देता हूँ। उनका दौड़ना खेलना कूदना भी वर्जित कर देते है।
इतने बड़े दर्द से कराह रही मासूमों को दवाई देने के बदले हम उन्हें ताने अनादर बदसलूकी और रुसवाई देते है
मैं जानता हूँ कि ये कोई नया मुद्दा नही है फिर भी इसलिए लिख रहा हूँ कि ये अभी तक मुद्दा क्यों हैं? क्या हमें समझ में नही आती या हम समझना नही चाहते।
शराब को ढ़क कर काले पोलोथीन में खरीदना तो समझ में आता है परंतु उनका पैड छिपा कर चोरी छुपे खरीदना दिल को बहुत दुखाता हैं।
जिस माँ ने इतनी तकलीफ सह के दुनिया में लाया उस माँ की तकलीफ देख के रोना आता हैं।
जब तक समाज मे इन सब विचारधाराओं के लोग और इतनी गिरी सोच रहेगी तब तक अक्षय कुमार जैसे कलाकार पैडमैन जैसी फिल्में बनाकर आपसे सवाल पूछते रहेंगे । क्या आपके पास इसका जवाब है ?
क्या एक मर्द को ये सारे उच्च कार्य करना शोभा देते है ? अगर हाँ तो मर्द हूँ मैं 'मर्द' ।-
किसी ने बड़ी कड़वी बात कह दी आज..
"मर्द का पेट एक औरत से नहीं भरता"
अफ़सोस....-
हाँ बेशक मैं एक मर्द ठहरा,
पर दर्द मुझे भी होता है..
(पूरी रचना अनुशीर्षक में)-