चलो मेरे साथ तुम भी, मनाना है किसी को
चलो मेरे नाथ तुम भी, मिलाना है किसी को
सुभद्रा को भगाया, पार्थ के साथ तुमने
कदापि स्वार्थ न मेरा, भगाना है किसी को
जैसे तुम द्रौपदी के, कहलाते सुहृदय हो
सखा तुम सा कन्हैया, बनाना है किसी को
किसी की ना सुने तो, तुम्हारी तो सुनेगा
हृदय में है मेरे क्या, दिखाना है किसी को
अगर वो ना माने तो, साथ हम लौट आयेंगे
आखिरी बार गले से, लगाना है किसी को
तुमसा ही जाना उसको, देवतुल्य माना उसको
हृदय के देवालय में, बसाना है किसी को-
# 18-01-2021 # काव्य कुसुम # दिखावा #
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कुछ ऐसे मिलते हैं जीवन में जो झूठी मनुहार किया करते हैं ।
कुछ होते दोस्त दिखावे के जो झूठा इज़हार किया करते हैं ।
चेहरे पर होता भोलापन मानो सारा नेह लुटाने को आतुर हो-
नाव अधर में हो तो दिखावे का झूठा इकरार किया करते हैं ।
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छलक रही नयनों से मदिरा , आज मुझे पी लेने दो ।
कल होनी क्या खेल दिखाये , आज मुझे जी लेने दो ।।
#अनुशीर्षक-
सुलग रही ख़्वाहिशें है क्यूँ ,, जला - जला सा ये दिल क्यूँ है
तुम तो थे ही नहीं मेरे ,, फिर भी सब उजड़ा हुआ सा क्यूँ है ????
क्यूँ है चाहत तेरे लौट आने कि कह दे , बिन जोड़े ये रिश्ता जुड़ा क्यूँ है
क्यूँ मनुहार करता है दिल बता,,तेरी ज़िद से मन हारता बार -बार क्यूँ है-
खुश हो जाएगा एक अकेला
पर खुशियाँ कहाँ मना पायेगा
अनबन थी कुछ चाचा से
बात बंद थी कई दिनों से
चाचा को रंग में भिगा आया
गीले शिकवे सारे मिटा आया
बहु है नाराज़ ननद करे मनुहार
भाभी आपके बिना फिका लगे त्यौहार
बात आयी-गयी,छोड़ो ना बीती बात
चलो ,दिल में प्रीत की करे बरसात
फुफा के जाने से भुआ थी कमरे में बंद
मैंने धवल सारी पे रंग उंडेल दिए चंद
चाचा -भुआ,नन्द भाभी सब खिलखिलाए
उमंग भरी खुशी से प्यार की रंगों में नहाये
एक अकेला रंग क्या गुल खिलायेगा
रंगों का मिलन ही इंद्रधनुष बनायेगा-
ये, प्यार के रिश्ते ...
प्रेम और मनुहार से रिश्ते...
कभी हैं सिर्फ़
मौहब्ब़त...
और कभी हैं ये ख़ार से रिश्ते...
एक ज़रा सी चूक से
सुलग उठते है
अक्सर यहाँ
ये कुछ ऐसे ....
जैसे हों ये सूखी...
हल्की....*पुआल
ये रिश्ते!!-
चंद लेखनी'यां अपनी उम्र के
....बसंत पर ही ठहर जाया करती हैं,
जीवन के चौमासों में भी
उनसे उमगती हैं
षोड़शी,सदाबहारी बेलों की सुगंध,
...नम मिट्टी की सौंध।।
उनसे फूटते हैं
ईश्वर की मनुहार के स्वर,
मानवता के लिए
हितकारी...
परोपकार के स्वर।
प्रेम की परिभाषाएं तकती हैं,
कि आज कुछ और... पर्याय नए पा लें ।
ईष्ट-देव रिझाती हुई
मानव मन दुलराती हुई ये चंद कवयित्रियां,
संबंधों के मर्म को प्रेम से...
सहलाती हैं हौले से,
मन से विरही भी हैं ...
मन से ही ब्याहता भी।
ज्येष्ठ-बैसाख में बादल की छांव भी,
तुलसी-सींचतीं,
भानु को अर्ध्य देतीं ,
पौष-माघ के महीने में धूप सी
ये चंद कवियित्री'यां।।-
एक दूजे के प्यार में
कभी जीत-हार भी होती है
मीठी मनुहार भी होती है।
जब साथ रहे, अपनों का
आंखों में पलते,सपनों का
भुला के रंजो, ग़म सभी
खुशियां हजार भी होती हैं।-