यादों को भूलना
तो याद कैसे करते
नहीं मुम्किन यादों को भुलाना
ये यादें ही तो कुछ भूलने देती नहीं-
कुछ खोने का डर
ना जीने देता ना मरने देता
खामाशी में भी शोर करे
इतना कुछ खोया है , अब
खोने का डर डराता नही
डर के आगे जीत है, तो
अब ज़िन्दगी से हारता नहीं
यही तो कर्म की रीत है
यही असल ज़िन्दगी है
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घनी जुल्फों कि छांव, मोहे मदहोश किये जा रही
कोई हो जाये ना खता,ये अठखेलियां बहका रही-
मत घबराना मुश्किल से
तू हिम्मत से काम ले
डटकर करना मुकाबला
हल निकलेगा धैर्य से
होती मुश्किले चुनौती
उसे सहर्ष स्वीकार ले
ना सोच हार क्या जीत
कर्मठता को अंजाम दे
ऐसा कोई सवाल नही
जिसका ना जवाब दे
ऐसा कोई ताला नहीं
खुले ना किसी चाबी से
राह के शूल है मुश्किले
राही तू फूल बिछा दे
पूजा कर्म को मानकर
अपना जीवन निखार ले-
ख़्वाब रूठ गये
ख़्वाब मेरे क्या रूठ गये
हम हमी से दूर हो गये
ख़्वाब थे, तो उमंग थी
अब सपने चूर हो गये
हो गयी ज़िन्दगी विरान
जुदा जो फूल हो गये
दिल में छायी यूं मायूसी
आशा के पथ शूल हो गये
जुनून हो गया यूं लापता
अब मकसद बेनूर हो गये-
फासला
जिन्दगानी में होती बच्चों से ही रौनके हजार , हमारे प्यारे बच्चे खुषहाल ज़िन्दगी के साज।
बच्चों के सपने, हमारे ख़्वाब, खुला आसमान ,ले दुआए, कर मेहनत से यारी, भरते परवाज।
करते परंपरा आधुनिकता का मिलाप बेमिसाल , संस्कार संस्कृति को अपनाना अलग ही अंदाज़।
मात-पिता को ना चाहत महंगी दवा ऐशोआराम की, बस कुछ वक्त ओ साथ इनके मर्ज का इलाज।
ना बड़ी ख्वाइशो की दरकार, बस मिले अपनापन,खिलखिलाती खुशहाल जिंदगीका यही तो राज।
ज़िन्दगी में हमारे बच्चे हमारे मन की मधुर आवाज ,तुम, कुछ हम आगे बढ़कर सुवर्णमध्य् का करते आगाज।
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दीपों का पर्व बडा सुहाना
मन को कर जाता दिवाना
गुनगुनाती है दिल में रोशनी
जगा जाती उल्हास मोहिनी
छेडे सोनचिरैया मधुर रागिनी
आती नाचती-गाती दीपावली
सज के सृष्टी मन करे बावरा
समृद्धिसे लक्ष्मी लाये उजाला-
धरा ओ आकाश में है अजब का रिश्ता
जैसे दोनो आंखों में हैं गजब का नाता
है पता, आपस में कभी ना मिल पायेंगे
पर हरदम साथ देने का निभाते है वादा
प्यासी धरती पुकारे ओ मेघा रे मेघा रे
आकाश बादलों से अमृतधारा बरसाये
क्षितिज पर आभासी मिलन को आतुर
बन गालिचा रंगबिरंगी फूलो से मुस्काए
अनमोला प्रेम है धरा और आकाश का
भाव लेना नहीं सिर्फ निःस्वार्थ देने का
चाहत हो धरा-आकाश सा विशाल हृदय
ओढे आस्मा की चादर ,बिछोना धरा का-
ये चाँद बिन, शायर की गझल है अधूरी
घनघोर काली मावस की रात लगे भारी
कभी ख़ुशी कभी ग़म ,यही तो ज़िन्दगी
आती बाद मावस,पूनम की रात उजली
ज़िन्दगी का ताल ना कभी एक सा होता
मिल सफेद काली पट्टी से सूर निकलता
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जीवन के सफ़र में, हर पल तेरा साथ हो
चाहे कुछ भी हो, मेरे हाथ में तेरा हाथ हो-