वे बेखौफ भूखे वहां से चले आ रहे हैं
जहां कभी पेट भरने की उम्मीद से गए थे-
खामोशी से भी मोहब्बत बयां होती है
वो तस्वीर लेकर सोशल मीडिया पे नही डालती
मैंने देखा है माँ को भोजन बनाते हुए।-
धूप-छाँव से क्या फर्क ,
मैं भूँख से लड़ रहा ।
समय था वैसे पढ़ने का ,
ढेर कूड़े का चड़ रहा ।
पेट भर लिया जैसे तैसे ,
रह गया कुपोषण ।
हाथ पैर तो चलते हैं ,
सूख रहा है धड़ ।
पसलियाँ दिखतीं सारी ,
जैसे नहीं है खाल ।
पैर हो गए पतले-पतले ,
टेढ़ी हो गई चाल ।
चेहरा नहीं दिखता मेरा ,
दिखते पिचके गाल ।
-Read caption.-
खाली पेट सोने का दर्द क्या होता, मुझे नही पता,
ना जाने जूठन खा के वो बच्चे कैसे बड़े हो जाते ....-
भोजन की बात ना कर पीने को पानी नहीं
ग़रीबों की बस्ती है खुदा भी देखता नहीं
बना के लावारिस छोड़ दिया, अमीरों से कुछ बचता नहीं
नदियां रही नहीं , नहरें बनाई नहीं
हम गरीबों को किसी को पड़ी नहीं
नाली के कीड़े है ,कीचड़ में भी पानी नही
धुलती है सड़के , बस्ती में टैंकर का पानी नहीं
हम गरीब है हमारा कोई मोल नहीं
हम गरीब है हमारा कोई मोल नहीं-
. ✍️✨वृद्ध नज़र✍️✨
नज़र को क्या नज़र लग गया था जो
ठीक सब, नज़र अब, नहीं आता हमें। ...✍️✨
कमजोरी का कारण ढ़लती उम्र थी या
तनाव, यह क्यूँ समझ नहीं आता हमें? ...✍️✨
चंद अल्फाज़ों को सहेजने में सालों निकले!
अद्भुत व्यथा न व्यर्थ हैं ये कुछ मेरे पिछले। ...✍️✨
रूककर, रूक रूककर, रूकावटें मात देता हूँ।
न रोक नई राहें कभी मैं, न गलत साथ देता हूँ। ...✍️✨
लेखन बचपन से जारी था जो पेशा है अब बना,
चाहत हैं कभी आए नाम फिल्मों में, जब बना। ...✍️✨
मेहनत तो की ही है वहाँ तक पहुँचने की,
जो साकार होगा एक दिन कुछ बनने की। ...✍️✨
फक्र से जब सर ऊँचा हो तो क्या बात हो!
बताना मुश्किल है जब खुद की औकात हो! ...✍️✨
खान पान, रहन सहन, दिनचर्या में परिवर्तन
कर नजरों में खिचड़ी पकाना है बिन बर्तन। ...✍️✨
भूखी नजरें जब सेहतमंद हों तो, लेखन का मजा कुछ अज़ीज़ होगा!
बेहतरीन हो चीजें तो हसीन समां में होने का मजा भी लज़ीज़ होगा। ...✍️✨-
भोजन नीर मैथुन ही, माँगे दानव देह
हृदय मानव वही हुआ, जो माँगे बस स्नेह-