इस अोर से भाव के बादल भेजने पड़ते हैं,
उस ओर प्रेम की वर्षा के लिए!-
आहूत हो रही हैं
भाव समिधाएं
नित्य
लेखनी यज्ञ में
कभी चिंगारियां....
कभी धुंआं... धुंआं !!!
प्रीति
365:10-
मेरे एकांत से ऊपजी
हो मेरी ही अनुभूति
अंतर्मन से लेकर भाव मेरे
शब्दों से भरती हो उड़ान
कोई और नहीं तुम
मेरी कविता हो
मुझे सबसे प्रिय हो
सुख में संगिनी बनकर
दुख में सहचरी
नहीं छोड़ती कभी मेरा हाथ
देकर मेरे शब्दों को विस्तार
बन परछाई देती हो साथ
कोई और नहीं तुम
मेरी कविता हो
मुझे सबसे प्रिय हो...-
न झांको घर में उनके, न उनके मसले सुना करो
विवाद तुम्हारे घर में भी है, जरा समझा तुम करो
न सूरज सा तेज है उसमें, न अग्नि सी पावन है वो
उनकी मोहब्बत में तुम, जरा संभल के चला करो
नशा थोड़ा हो तो चोखा, नशे में झूमा नहीं जाता
इसलिए शराब को जरा, धीरे धीरे पिया करो
नए हो इस शहर में, रीति रिवाज से वाकिफ नहीं
यहाँ सब रामपुरी संग चलते है, जरा दूर से मिला करो
जख्म वर्षों पुराने है, मगर गहरे आज भी बहुत हैं
और दर्द अभी भी नया है, जरा होले होले सिला करो
क्यूँ गिले-शिकवे करते हो, तुम्हे कल का पता नहीं
जिंदगी क्षणिक है तुम्हरी, जरा मुस्कुराके चला करो-
जब सब कुछ टूट कर बिखर गया
जब अपने पराये हो गए
और पराये अपने
हर सपना टूट कर मोतियों
के भाव बिक गया
हर उम्मीद का बहिष्कार
कर दिया गया
हर खुशी को आंसुओं
में बदल दिया गया
तो अब क्या है?-
एहसास तेरे भर रहे मुझमें
मैं खाली खाली हो गयी,
जैसे खुद में सागर समेटे
नदी मतवाली हो गयी...-
इन्तेजार तेरा हो अगर,तो वक्त का भी भाव बढ़ जाता है.....
तेरी तरह इसे भी तड़पाने की आदत पड़ गयी है📡-
भाव गहरें हैं मेरे, तुम समझ सको तो समझो
इतने शब्द मैं कहां से लाऊं.............
ठोकर भरे राह में, सम्भल के चल सको तो चलो
मैं मखमल अब कहां-कहां बिछाऊं.........
वयस्तता में कुछ पल सुकून के बीता सको तो बिताओ
मैं हसीनं मुलाकात कहां से लाऊं............
दुआ कुबूल हो किसी दिन हमारी तब सारी बंधनो
को, तोड़ कर तुम्हारे पास आऊं..........
बेशक जी ली तुमने ये जिंदगी, तलाश में हूं
अब खुबसूरत मौत कहां से लाऊं ............
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