कैसे सहे एक माँ
यह बड़ा आघात?
'आधार' न दिखाने पर
हुआ जो बज्रपात!
रोते ,बिलखते बच्चा मरा
बस कहते.... भात भात.....
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नहीं पकने वाला
मेरी हांडी का भात
न इसमें चावल है
न चूल्हे में आग-
एक ओर है खड़ा अहम
दूजे ओर तड़पता वहम
एक ओर है अनाज कम
कैसे थम जाए ये कदम
एक ओर मानवीय भूल
मानव को चुभ रही शूल
उड़ रही है रोगों की धूल
क्या नष्टतम जीव समूल
एक ओर हक़ की लड़ाई
दूजे ओर खाली है कढ़ाई
हाय ये कैसी विपदा आई
रक्षा करो हमारी महामाई
एक ओर उत्पन्न है क्रोध
दूजे प्रयोगशाला में शोध
कोई कर रहा है संबोध
कोई नहीं खड़ा विरोध
एक ओर खड़े संभ्रांत
दूजे ओर जनता आक्रांत
और न जाने कितने ओर
भूखे जन चिल्लाते भात-
"बीरा बणजे तू जायल रो जाट
बणजे खिंयाला रो चौधरी "
अनुशिर्षक पढ़े ✍️-
खुल कर जिओ जिंदगी
जिंदगी का हर पल तुम्हारा है
किसी और के बस में क्यों हो जिंदगी|
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जगन्नाथ के भात को जगत पसारे हाथ !!
बड़े भाग से मिलते है ,
जगन्नाथ के भात !!
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हम तो इसी नए पुराने
के बीच फश कर रह गए
मेलझोल करना भी एक कला है
जो सबको करनी आती नहीं ।-
मी आयुष्यात खूप चुका केल्या
पण
लग्नात न जेवून 😋🍛परत यायची
चूक कधीच केली नाही
आणि करणार पण नाही😂😂
🤘🤘-
बात करो हमसे या बात प्यारी कभी नहीं
बात करना तुम्हारा बात कहाँ होता है
दिल ही दुखाना है ये आदत पुरानी बोलो
दिल को दुखा कर जज़्बात कहाँ सोता है
रोते हो हमारी याद में कभी सता के हमें?
कभी नेत्र तुम्हारा ये नमक भी बोता है?
देखूँ तुम्हें लगता है सावन की रात जागी
थरिया में जैसे बासमती भात होता है-