जिम्मेदारिया बनाती है बुजदिल इंसान को,
वरना दो कौड़ी के लोगो से डरता कौन है।-
2122 1212 22
याद उसकी कभी नहीं जाती
ज़िंदगी यूँ भी जी नहीं जाती
अश्क़ हम रोज़ पी ही लेते हैं
मय तो यूँ रोज़ पी नहीं जाती
एक झटके में जान दे दें बस
रोज़ ये जान दी नहीं जाती
ख़ुदखुशी सोच के ये लगता है
बुज़दिली ऐसी की नहीं जाती
ज़िंदगी को चलो करें आसाँ
मुश्किलों में ये जी नहीं जाती-
नहीं चाहिए मुझको महफ़िल,
दूर बहुत है मेरी मंज़िल..!
मीलों तन्हा चलना होगा,
ख़ामोशी है मेरा हासिल.!
इश्क़ किया है जिसको मैंने,
बन बैठा है मेरा क़ातिल..!
तूफानों की बस्ती में हूँ,
जब से छोड़ा मैने साहिल.!
हिम्मत की बातें करते हैं,
आज जमाने भर के बुज़दिल!
बहुमत में सरकार बनाकर,
पाठ पढ़ाते देखो ज़ाहिल..!
स्वतंत्र बदलते दौर के तेवर,
क्या होना चाहेगा शामिल?
सिद्धार्थ मिश्र
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बचपन जितना बेख़ौफ और बेफिक्र था,
जवानी उतनी बुज़दिल और
फिक्रमंद हुई जा रहीं हैं।-
तुम बुज़दिल थे जो
हार गये तूफानों से
हम तो आग के दरिया में
तैराकी करते हैं आज भी ..-
बहुत ही बुज़दिल होते हैं वे लोग जो ग़लत के सामने अपना सर झुकाते है
और कुछ लोग होते है जो स्वाभिमान के लिए अपना सर कटा जाते है-
बुज़दिल हैं वो लोग,
जो इश्क़ तो करते हैं,
पर इज़हार नही करते.-
कोई मंज़िल कोई रस्ता तुम्हें मुश्किल नहीं होगा
मग़र जो रुक गए तो फ़िर सफ़र कामिल नहीं होगा
तुम्हारे बाद अब कोई हमें हासिल नहीं होगा
हमारी ज़िन्दगी में फ़िर कोई शामिल नहीं होगा
अग़र धोखा किसी को नाख़ुदा मझधार में दे दे
मयस्सर उस मुसाफ़िर को वहाँ साहिल नहीं होगा
हमारा हाल देखेगा क़भी इक़ बार जो आकर
वो राहों में मोहब्बत की क़भी दाख़िल नहीं होगा
कहा करते थे दुनिया से न जी पाएंगे हम तुम बिन
मुक़ाबिल हमसा दुनिया में कोई बातिल नहीं होगा
सज़ा-ए-मौत देकर वो दुआ देता है जीने की
क़भी देखा कहीं ऐसा कोई आदिल नहीं होगा
परों को नोचकर उड़ने की आज़ादी उसे दे दी
औऱ उस पर सोचते हो ये कि वो बिस्मिल नहीं होगा
वो लड़की कह गई 'बिंदास' पर तुम कह नहीं पाए
मोहब्बत में कोई तुमसा कहीं बुज़दिल नहीं होगा-
BARBAAD भी हो जाएगे मोहब्बत में तेरी।
बस इक दफा तेरा दीदार ही काफी है।-
इत्तिफ़ाक़ की बात है।
जिसने 93 हज़ार सैनिकों
सहित समर्पण किया,
उसका नाम नियाज़ी था।
अब जिसकी बारी है
उसके अब्बू का नाम यही है।
😊दोहराता इतिहास😊-