दर व दर भटक रही मेरे मुल्क की जमीन,
न जाने किसको को ढूंढ रही हिंद की जमीन,
पूछा गर मैंने तो सिसक कर बोली,
इंसानों की भीड़ में, मेरा आदम खो गया।-
मैं...
कलम हूँ,
सुना है...
मैं ही हूँ वो,
जो... परिवर्तन
लाया करती थी,
और... मैं परिवर्तन
लेने गयी थी,
पर... मिली नहीं
वो नस्ल मुझे ,
जो चाहिए थी
परिवर्तन की
इसलिए...
फिलहाल...
परावर्तित होकर
मैं... लौट आयी हूँ ,
मैं... फिर जाऊँगी ,
मैं... फिर आऊँगी ,
और... मैं लाऊँगी
परिवर्तन मेरे...
मनचाहे नस्ल की ।
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बढ़ा दो अख़बार........!!
शोक संदेश के पन्ने और दो चार
अभी तो कमाई का समय है फ़िर
क्यों नहीं बढ़ाते हो व्यापार.......
तुमने ही तो आग लगा कर बढ़ाई
है ज़हर उगलने की फुफकार.....
तो कमा लो ज़मीर बेच कर अपना
भले कल सिर्फ़ शोक ही शोक हो
तेरे अखबारों के मुख्य समाचार !!
- Jaya Singh
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ईमान जिनका गिरवी है नेताओं की चौखट पर ,
वो अब कलम उठाते हैं ,
पत्त्थर बाजों को जो भटका नौजवान बताते हैं
पर सेना पर सवाल उठाते हैं,
रेप आरोपियों से सहानुभूति जताते
तो कभी नाबालिग कहकर बचाते हैं ,
दीपावली मे दिखता प्रदूषण
पर क्रिसमस का जश्न मनाते हैं ,
मेरे देश का दुर्भाग्य है ये दोगले- बिकाऊ
पत्रकार कहलाते हैं ।-
कहने को मैं कह भी दूँ सब के आगे ,
मगर ,महफिल में सच सुनने वाला तो हो...
झूठ और फरेब की ही रोटियाँ हैं सिकती ,
किसी हाथ में सच का निवाला तो हो ।
जब लजीज़ , चटपटी ही मुँह को लगी है
खबर सच्ची- झूठी ये किसको पड़ी है....
ख्यालों के गुदगुदे मखमल के आदी ,
पथरीली हकीकत की किसको पड़ी है....
जब झूँठ ही बिक रहा मुँहमाँगे दामों पर ,
कैसे हो , कोई सच बोलने वाला जो हो ।
मैं अपने सच का पिटारा लिए बैठा....
दे दूं कि कोई संभालने वाला तो हो ।।-
कुछ(तथाकथित) मीडिया, दलाल, गोदी, भांड, बिकाऊ, दहशतगर्दी, झुठफ़रोश, ग़ुलाम, दरबारी, सर्कस, नफरत , तर्कहीन, चाटूकारिता, पंगु, दंगाई, जिहुजरी, बाजारू बन गई हैं।
मीडिया कभी लोकतंत्र की #चतुर्थस्तंभ हुआ करती थी, मगर 2014 के बाद यह सिर्फ़ (पहले के शब्दों से पहचाने) नेताओ सरकार और पूंजीपति की की प्रवक्ता और ढाल है। चापलूसी करती हैं और नफरत, झूठ को बेचती है और निर्दोष को दोषी, सच को झूठ बनाती हैं।
#मुझे चाटुकारिता मीडिया(प्रिंट, TV) से नफरत हैं-
इंसान पैदाइशी अंधभक्त नई होता।
उसे अंधभक्तों की टोली और मौजूदा वक़्त की कुछ बिकाऊ मिडिया और कुछ बिकाऊ पत्रकार इनभक्तो की khaboro को बड़ा चड़ा कर बार बार दिखाने और उस परिवार अंधभक्ति के कारण एक नए अंध भक्त का जन्म होता हैं।।
शायद एक वक़्त के लिए देश के बारे क्या सही क्या गलत वो सोचना भूल सकता हैं , लेकिन अपनी भक्ति का वो बड़ा वफादार साबित होता हैं।।
ऎसे लोग देश के लोगो को एक झुमले बास की टोली में बदलने की साज़िश हमेशा करते रहते हैं । और काफ़ी बार जीत भी जाते हैं।
पर उनको जब एक दिन शायद समझ आए कि,
वह इतना गलत कैसे हो सकता था??
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जब सें ये IPL चालू हुआ है
तब से मानों भारतीय मीडिया का
अच्छा-खासा धंदा ही गुल हुआ है
नहीं तो क्या क्या चिल्लाते रहते थे
के यारों मानों जैसे ये फालतु की
बिकाऊ मीडिया हीं देश चला रहे थें-
अर्थव्यवस्था बढ़िया
रोज़गार बढ़िया
स्वास्थ्य बढ़िया
देश कारोना मुक्त
सब के सर पे छत
सबको शिक्षा
सब को रोटी
सीमा शांत,सुरक्षित
ये सब तो हो गया । अब बस ये केस और निबट जाए ,देश फिर एक बार सोने की चिड़िया बन जायेगा।
😃नारायण नारायण😃
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