सुलझ ही जाती है हर गुत्थी
समय थोड़ा तो लगता है
थोड़ा संयम,थोड़ी समझ
बहुत सारा जतन और
थोड़ी ज़द्दोजहद भी लगती है
लेकिन ज़ोर आज़माइश तो
अक्सर ही
वो धागे तोड़ देती है
जो कहीं अब भी जुड़े होते है
और-------
फिर उसके बाद जो बचता
वो बस गाँठ रहती है।
न धागे पहले से,
न ही वो बात रहती है।
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