वक्त का अजीब फेरा है
दिल में दर्द का डेरा है-
राहिला कोरा
आवरता ना आवरला आयुष्यभर पसारा
सरली वेळ आली गेली फिरले काटे सारे
वर्तुळातच उरला फिरत्या काट्यांचा फेरा-
मेरे जरिये बने कोट पढ़ने के लिये
तूने पढ़ने वास्ते कब से नहीं लगाया
मेरी प्रोफ़ाइल का फेरा है
तुझसे पूछ रहा ये सवाल दिल मेरा है,
कि आजकल तूने कहाँ लगाया अपना डेरा है?-
भूला के दुल्हन जिसे..!!
बैठती है मंडप में..!!
वो चेहरा आख़री फ़ेरे में..!!
याद आता है..!!
❤️-
आवरावा म्हटले जरासा
आठवणींचा सारा पसारा .
आवरायचं राहिलं बाजूला
त्यांनीच धरला भोवती फेरा.-
अब किसी भी चीज में मन नहीं लग रहा मेरा,
बस उसी में रहता है ध्यान मेरा।
वो कहाँ होगी क्या कर रही होगी,
कब डालेगी मेरे दिलो-दिमाग में फेरा।-
लाखों परिंदे हैं
नशेमन के, जिन
दरख्तों पर मेरा
फेरा है,ये परिंदा
उन सा नहीं,
जिसका नाम ही
अलबेला है,
शम्मा है ऊंचे पर्वतों
की आंधियों ने घेरा है
लौ कभी थमती नहीं
हौंसलों का शिखर
उसका डेरा है।
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हादसों से मुंह फेरा था, मैंने भी ।
इंतजार में मुलाकात हो गई ।।-