अनुराधा चौहान'सुधी'   (©®अनुराधा चौहान)
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दर्द के आँसू लिखती हूँ खुशी के गीत लिखती हूँ यह बस अहसास हैं दिल के अहसास लिखती हूँ
Joined 4 October 2018


दर्द के आँसू लिखती हूँ खुशी के गीत लिखती हूँ यह बस अहसास हैं दिल के अहसास लिखती हूँ
Joined 4 October 2018

की हार्दिक शुभकामनाएं

कर जोड़ करें विनती गुरुजी,प्रभु भूल सदैव क्षमा करना।
मन में गुरु का नित आदर हो,प्रभु ज्ञान प्रकाश सदा भरना,
चुभते कंटक जीवन पथ में,दुख देख हमें न पड़े डरना।
न विकार कभी पनपे दिल में,मन से सब द्वेष सदा हरना।

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चाँद सी खूबसूरत
जिंदगी में
खुश रहना हो तो
दाग से लगने वाले लोगों से
खुद को बचाकर रखना
फिर देखना यह पूनम का चाँद
और उसकी
चांदनी कितना सुकून देती है

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जिंदगी का सफर
गम के थपेड़ो में डोलता
खुशियों की लहरों संग खेलता
वक्त से तजुर्बे समेटता
उम्र को पीछे छोड़ता हुआ
मौत के आगोश में जाकर
खत्म होता है

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कुछ संभालकर रखे
अनकहे दर्द
जिंदगी कट रही है इन्हीं में उलझकर

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रात के अंधेरों से क्या डरना..
यह अंधेरे ही
पल्लवों में छुपी कलियों में
उजाले की आस जगाते हैं
सुनहरी रश्मियों में खोकर
उनके यौवन को महकाते हैं
यह रात के अंधेरे ही
हमें फिर से जीना सिखलाते हैं

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मानव माया मोह में,भूला जीवन मर्म।
संचय करले धर्म का,संग चले यह कर्म॥१

संचय करना है करो,प्रीति नीति सद्भाव।
भवसागर डूबे नहीं, जीवन की फिर नाव॥३

झूठ कपट में डूबकर,हुआ न बेड़ा पार।
संचय कर संस्कार का,यह जीवन का सार॥३

पथ भटके नर-नार ही, करते सदा अधर्म।
धन संचय के साथ ही,सीखो मानव धर्म॥४

ज्ञानशून्य मानव सदा,माँगे पथ पर भीख।
संचय करता ज्ञान जो,वही सिखाए सीख॥५

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कल तक रिश्तों से घिरे थे
आज खाली हो गए
प्यार से सींची जिन्होंने
बगिया
वो माली खो गए
बेटियाँ पराईं हुईं,
बुजुर्गों ने हाथ छोड़ा
हँसतें हुए आँगन से
ठहाकों ने मुँह मोड़ा
अब बचे रिश्तों को सहेजने में
कट रही है उमर धीरे-धीरे

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बाहर खुला आसमान
डर मत मेरे दिल
चल जीत की जिद ठान
कदमों में होगी मंजिल
होगा खुशियों भरा जहान
भर जोश नया मन में
बढ़ आगे उम्मीदों का दामन थाम

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हार चढ़ी तस्वीरों में माँ-बाप को पाया
सिसकती दीवारों ने जब अपना दर्द सुनाया
बह निकले आँसू और दिल भर आया
जब खिड़कियों पर चढ़ी माटी ने
गम जुदाई का सुनाया और कहा,
सूने आँगन में अब न बोलती चिड़िया
लौट जा घर अपने,कोई नहीं तेरा सुन ओ गुड़िया

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बिखर जाते हैं सपने
जब आँखों में नमी देकर
गुम हो जाते हैं अपने
बोझिल हो जाते दिन
करवटें बदलती रातें
सच जानता है मन कि
अब न होंगी यह मुलाकातें

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