अनुराधा चौहान'सुधी'   (©®अनुराधा चौहान)
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दर्द के आँसू लिखती हूँ खुशी के गीत लिखती हूँ यह बस अहसास हैं दिल के अहसास लिखती हूँ
Joined 4 October 2018


दर्द के आँसू लिखती हूँ खुशी के गीत लिखती हूँ यह बस अहसास हैं दिल के अहसास लिखती हूँ
Joined 4 October 2018

युगों युगों तक तरसी जनता
राम धाम के दर्शन को।
त्याग तपस्या का फल मिलता
देख बने अब मंदिर को।
विधना के भी खेल निराले
राम लला का घर छूटा।
देख पीर श्री राम लला की
जन-मन का हृदय टूटा।
विराम हुआ संघर्ष देख अब
राम नाम का कीर्तन हो।युगों युगों....
स्वर्ण द्वार सुंदर नक्काशी
रामभवन यह भव्य बना।
सुंदरता कुछ कही न जाय
सरजू तट शुभ भवन तना।
देव देखकर हर्षाते सब
श्री राम चले अपने घर को। युगों युगों....
मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु के
धीरज का कोई अंत नहीं।
माया तज श्री राम को पूजे
कोई भरत सा संत नहीं।
पहन आभूषण राम चले घर
थाम धनुष सुदर्शन को। युगों युगों..

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जाते समय
खट्टी-मीठी यादों की
पोटली थमा जाती है
और आती हुई हर साल
मन में एक नयी
उम्मीद जगाती है
इस आने-जाने के सफर में
खुशियों को बटोरते
यह उम्र यूँ ही गुजर जाती है

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उन उजालों का
जिन्हें हम पीछे छोड़
रात के अँधेरे में खो जाते हैं
हो नयी सुबह सुख से भरी
बस यही मन में मनाते हैं

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अच्छाई जला देते हैं
मिट जाती फिर प्रीत भी
सच्चाई मिटा देते हैं

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हमारी शान है हिन्दी हमारा मान है हिन्दी।
बनी सदियों यही मुखिया सदा सम्मान है हिन्दी॥

सहज ही हिन्द की बोली सदा सबको लुभाती है।
यही आधार है संगीत जीवनदान है हिन्दी॥

चलो हठ छोड़कर सारे बनाए सिर मुकुट इसको।
हमारे भाल की बिन्दी हमारी आन है हिन्दी॥

बसी सबके हृदय कोमल पुरानी प्रीत सी बनकर।
सदा यह देव की वाणी सुरीली तान है हिन्दी॥

बड़े ही प्रेम से जोड़े पुराने टूटते नाते।
हमें है गर्व हिन्दी पर हमारी शान है हिन्दी॥

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सब जग जाने
शिव ही सत्य है यह सब माने
सत्य सनातन शिव ही सुन्दर
शिव से धरती शिव से अम्बर
शिव ही आदि है शिव ही अंत
महिमा शिव की फैली अनंत

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चलो उम्र भर
टूट जाएं न देखो कड़ी श्वास की
साँझ छुपती सदा रैन को देखकर
रैन छुपती फिरे फिर खिली भोर से
धूप के ताप से प्रीत की आँच यह
कम न होगी कभी साथ तेरा रहे

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दंभ छोड़ो सभी छोड़ दो कामना,
लालसा लीलती प्रेम की रीति को।
भोर होती नहीं लोभ की देख लो,
कालिमा ही सदा घेरती प्रीति को।
खोल दो बंधनों की लगी गाँठ भी,
खेलने दो सदा प्रीत की नीति को
हो उजाले अंधेरे मिटा द्वेष के,
द्वार जो खोल दो भूल के भीति को।

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काली अँधियारी निशा,खुलते कारागार।
गोदी में वसुदेव की,किलके तारणहार।

प्रभु की इच्छा से चले,करने यमुना पार
स्वागत में प्रभु की खुले,नंद भवन के द्वार।

हाथी घोड़ा पालकी,सजते वंदन वार।
नंद यशोदा के यहाँ,प्रगटे कृष्ण मुरार।

लीलाधर लीला करें,नाचे गोकुल गाँव।
यशुमति की गोदी हँसें,बैठ कदम की छाँव।

भोली सूरत साँवली,चंचल माखनचोर।
माखन की चोरी करे, नटखट नंद किशोर।

पद पंकज पर बैठ के,यमुना करे विहार।
छवि सुंदर घनश्याम की,गोपी रहीं निहार।

मैया का है लाडला,नटखट नंद कुमार।
नीलवर्ण छवि मोहिनी,बाल रूप सुकुमार।

राधा मोहन गोपियाँ,महा रास की रात।
सकल सृष्टि भी झूमती,तरु फूल संग पात।

कालिंदी के घाट पर,खेले नंदकिशोर।छुप-छुप देखें गोपियों,मोहक माखन चोर॥

मोहक मुरली मोहती,मोहे माधव रूप।मनमोहन घन श्याम के, मनमोहक स्वरूप॥

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किसी के
सपने मत तोड़ना
सच्चे मन से कर्म करना
तुम्हारे
सपने भी साकार होंगे
मेहनत से
उन्नति के द्वार खुलेंगे

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