दफ़न हो गई थी
गुबार-ए-ज़िंदगी में
सांसें भी न रही बाक़ी
तपिश अल्फ़ाज़ की
दे गयी कुछ हवा
क़लम की स्याही
फिर तर हो गई-
लेखन मेरा शौक, लेखन मेरी पूजा
यूँ तो अभी लिखना शु... read more
लहरों के हाथों से आज़ाद हुआ
जो सपना आसमां की तलहटी
पर बनाता आशियां छू जाता उन
लहरों को फिर एक बार करता
शुक्रिया बार बार
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हौसलों का फूल चुरा लेता
है लगा हुआ ज़ंग जो सदियों
से जमा था उन बेड़ियों पर घर
समझ कर अपना क्योंकि तुम बैठ
गये थे हार के डर से बांधकर वो
बेड़ियां समय की-
बरसात सी सराबोर
कर देती हैं पंखुड़ियां
तेरे यादों के गुलाब की
और मैं फिर भी रह जाती
हूं सूखी पाखी जैसे तुम्हारे
इंतज़ार की धूप में न जाने
कब फिर आ जाए वो प्रेम
भरी ब्यार तुम्हारी ओर से-
सुकून तलाशते हुए
भटकता रहा
दर ब दर न रहा दर
अब न ही मिला
सुकून ही पर कुछ देर
बैठकर हुआ ख़ुद से
रूबरू सुकून मिला वहीं-
नज़र दुनिया को आओ
तुम उतार अच्छाई का
चोला थोड़ा सा बुरा बन
जाओ तुम रास नहीं है
दुनिया को सच्चाई दिल
की ज़हन की बुराई से
थोड़ा सा चमक जाओ तुम-
काजल सजाती हो
आंखों में या आंखों ने
तुम्हें सजाया है काजल
सी काली साड़ी में रूप
निखर आया है या काला
पहन तुमने ख़ुद को हर
बुरी नज़र से बचाया है-
जब से तुम चले गये
छोड़ कर हाथ मेरा
बस अब है सहारा
इनका धड़कता है
इनमें दिल हमारा-