Akshunya   (अक्षुण्णया)
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Joined 6 December 2017


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19 SEP 2024 AT 12:42

दफ़न हो गई थी
गुबार-ए-ज़िंदगी में
सांसें भी न रही बाक़ी
तपिश अल्फ़ाज़ की
दे गयी कुछ हवा
क़लम की स्याही
फिर तर हो गई

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25 JUL 2024 AT 17:32

लहरों के हाथों से आज़ाद हुआ
जो सपना आसमां की तलहटी
पर बनाता आशियां छू जाता उन
लहरों को फिर एक बार करता
शुक्रिया बार बार

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25 JUL 2024 AT 17:27

हौसलों का फूल चुरा लेता
है लगा हुआ ज़ंग जो सदियों
से जमा था उन बेड़ियों पर घर
समझ कर अपना क्योंकि तुम बैठ
गये थे हार के डर से बांधकर वो
बेड़ियां समय की

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24 JUL 2024 AT 19:19

बरसात सी सराबोर
कर देती हैं पंखुड़ियां
तेरे यादों के गुलाब की
और मैं फिर भी रह जाती
हूं सूखी पाखी जैसे तुम्हारे
इंतज़ार की धूप में न जाने
कब फिर आ जाए वो प्रेम
भरी ब्यार तुम्हारी ओर से

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15 JUN 2024 AT 16:22

Dhanvisha

धनविषा

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3 JUN 2024 AT 22:14

सुकून तलाशते हुए
भटकता रहा
दर ब दर न रहा दर
अब न ही मिला
सुकून ही पर कुछ देर
बैठकर हुआ ख़ुद से
रूबरू सुकून मिला वहीं

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28 MAY 2024 AT 12:22

राहें बदलतीं रहीं
मंज़िलें भी
पर न बदला
सफ़र न मैं ही

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16 MAY 2024 AT 21:36

नज़र दुनिया को आओ
तुम उतार अच्छाई का
चोला थोड़ा सा बुरा बन
जाओ तुम रास नहीं है
दुनिया को सच्चाई दिल
की ज़हन की बुराई से
थोड़ा सा चमक जाओ तुम

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16 MAY 2024 AT 21:11

काजल सजाती हो
आंखों में या आंखों ने
तुम्हें सजाया है काजल
सी काली साड़ी में रूप
निखर आया है या काला
पहन तुमने ख़ुद को हर
बुरी नज़र से बचाया है

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8 MAY 2024 AT 22:26

जब से तुम चले गये
छोड़ कर हाथ मेरा
बस अब है सहारा
इनका धड़कता है
इनमें दिल हमारा

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