Akshunya   (अक्षुण्णया)
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Joined 6 December 2017


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23 HOURS AGO

ज़िन्दगी ने कर दिया इशारा
तुम बनो मैं बनूं तेरा सहारा
रात हो या दिन हो हमारा
साया हो एक दूसरे का जहां
तुम थामों हाथ मेरा और मैं
समा जाऊं बाहों में तुम्हारी बन
जाऊं तुम्हारी नदी का किनारा

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27 APR AT 21:44

सादगी की चुनर लबों पर
मुस्कान की सुर्खी आंखों
में सपनों का काजल
स्वाभिमान का चोला है
श्रृंगार तेरा ख़ूबसूरती का

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27 APR AT 21:39

जो दिया है तुमने
कहकर कि है तुम्हें
भी इश्क़ पर गर है
यह सही तो अश्क़ों
का हुआ मसला कैसे

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26 APR AT 22:38

करते उजालों का दामन
छूट गया अश्क़ बने साथी
अब मुस्कुराना भूल गया
साथी बनाकर सायों को मन
का दिया जलाना छूट गया

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26 APR AT 21:31

पलट कर ज़िन्दगी नये
सिरे हुई शुरुआत मेरी
आंखों में सजाती थी
काजल की जगह अश्क़
अब हसीं सपनों के हैं रंग
क्षितिज तक फैलाकर बांहें
आशा की किरण का करती
हूं आलिंगन यही है पुनर्जन्म

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25 APR AT 23:08

तुम न आए बिरह के
सर्प बार बार नोच खाएं
गरल उतर कर भीतर अग्न
जलाए न जीये न ही प्राण
निकल पाएं आ जाओ कि
अब सहा न जाए

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25 APR AT 21:58

करती है इंतज़ार तुम्हारा
चलती है कि तुम आकर
दे दो ऊर्जा अपने स्पर्श से
फिर हो सके पोषित एक
नया सुनहरा आने वाला कल

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25 APR AT 21:05

चेहरा देख लेती हूं आसमां में
जब तुम नहीं होते पास पर
शीतलता भी बरसाती है अग्न
विरह की साथ तुम्हारे होने की
आस एहसास कुछ होता है ऐसा
ही जब चांद आता है फ़लक़ पर

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24 APR AT 21:48

दर-ओ-दिवार करते हैं इंतज़ार उन
ख़ामोश किलकारियों का वो खिलखिलाती
हंसी की चहक को तलाशतीं हैं बंद खिड़कियां बेसब्री से छत पर लटकता झूमर तरसता है
घुटनों चलते कदमों की आहट के लिए पर वो किलकारी, वो आहट, वो हंसी अब हो गये
हैं पंछी ऊंची उड़ान लिए खाली नशेमन को छोड़

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24 APR AT 20:46

मुस्कान सजाकर
फिज़ाओं को
महका कर तुम और
मैं जीते हैं पल प्रेम
भरे एक दूसरे के
पहलू में रखकर सर
जोड़ लेते हैं तक़दीर
अपनी मुलाकात कहते
हैं शायद इस पल को

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