QUOTES ON #प्रेमचन्द

#प्रेमचन्द quotes

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9 APR 2021 AT 12:45

रुदन में कितना उल्लास, कितनी शांति, कितना बल है। जो कभी एकांत में बैठकर, किसी की स्मृति में, किसी के वियोग में, सिसक-सिसक और बिलख-बिलख नहीं रोया, वह जीवन के ऐसे सुख से वंचित है, जिस पर सैकड़ों हँसिया न्योछावर हैं। उस मीठी वेदना का आनंद उन्हीं से पूछो, जिन्होंने यह सौभाग्य प्राप्त किया है।

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2 MAY 2021 AT 8:53

:--स्तुति

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31 JUL 2020 AT 11:20

हिन्दी साहित्य में बृहत् योगदान
ऐसे लेखकों की संख्या है चन्द ,
और जो हैं इनके शिरोमणि
जगत पुकारे है उन्हें प्रेमचन्द ।


#अनुशीर्षक

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31 JUL 2018 AT 17:21

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26 APR 2019 AT 11:42

फ़ूलो की तरह
जीना सीखिए
छोटी मगर
यादगार सुगंध दीजिए,
प्रेमचन्द,दुष्यन्त,भारतेन्दु को देख लीजिए,
रात को आए सुबह गले का हार बन गए...

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मैं एक मजदूर हूँ,
जिस दिन कुछ लिख न लूँ,
उस दिन मुझे रोटी खाने का कोई हक नहीं।

-मुंशी प्रेमचन्द्र

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28 NOV 2020 AT 13:34

गोदान

भाग 3

अनुशीर्षके

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27 NOV 2020 AT 10:10

गोदान

भाग २

अनुशीर्षके

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1 AUG 2019 AT 10:31

प्रेमचंद ने लिखा जो था,
ताने-बाने में यथार्थ बुना;
कहानियां उनकी जो भी थी,
बिल्कुल समाज का दर्पण थीं।
पा कथाकार उनके जैसा,
हिंदी भाषा समृद्ध हुई,
प्रतिभा उनकी कुछ ऐसी थी,
लेखिनी भी उनकी धन्य हुई।
गर कथा की उन घटनाओं को,
हम ध्यान से खुद स्मरण करें,
इस दौर में भी उन्हें पाएंगे,
किरदार भले बदले हुए हों।

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19 OCT 2021 AT 23:24

जानवरों में गधा सबसे ज्यादा बुद्धिहीन समझा जाता है। हम जब किसी आदमी को पहले दर्जे का बेवकूफ कहना चाहते हैं तो उसे गधा कहते हैं। गधा सचमुच बेवकूफ है या उसके सीधे पर उसकी निरापद सहिष्णुता ने उसे यह पदवी दे दी है; इसका निश्चय नहीं किया जा सकता। गाय सींग मारती है, ब्याही हुई गाय तो अनायास ही सिंहनी का रूप धारण कर लेती है। कुत्ता भी बहुत गरीब जानवर है, लेकिन कभी-कभी उसे भी क्रोध आ ही जाता है; किंतु गधे को कभी क्रोध करते हुए नहीं सुना, ना देखा। जितना चाहे गरीब को मारो, चाहे जैसी ख़राब सड़ी हुई घास उसके सामने डाल दो। उसके चेहरे पर कभी असंतोष की छाया ना दिखाई देगी। वैशाख में चाहे एक आध बार कुलेल कर लेता हो, पर हमने तो उसे कभी खुश होते नहीं देखा। उसके चेहरे पर एक विषाद स्थाई रूप से छाया रहता है। सुख-दुख, लाभ-हानि किसी भी दशा में उसे बदलते नहीं देखा। ऋषि मुनियों के जितने गुण हैं वे सभी उसमें पराकाष्ठा को पहुंच गए। पर आदमी उसे बेवकूफ कहता है। सद्गुणों का इतना अनादर कहीं नहीं देखा। कदाचित सीधापन संसार के लिए उपयुक्त नहीं है।

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