मर्द समाज इतना डरपोक है कि वो एक के औरत कुलच्छन सहजता से स्वीकार कर सकता है। लेकिन किसी सहज, समर्पित, निर्भीक, विचारवान औरत को ज़्यादा से ज़्यादा वो सम्मान दे पाता है, सहज स्वीकार नहीं।
चौंकी और जागरण में बस आत्मविश्वास का फ़र्क़ है। जिन्हें अपनी भक्ति पर ज़्यादा विश्वास है वो तीन घण्टे की चौंकी में भगवान को मना लेते हैं। जिन्हें अपनी भक्ति पर विश्वास कम होता उन्हें जागरण करने की ज़रूरत पड़ती है।
दौलत आए, लाए रुतबा सेहत आए, लाए दबदबा अक़्ल आए, लाए नाम लेकिन ये सब आ कर जाने वाले प्रेम आए तो लाए न जाने वाला राम सब वो 'प्रेम-धन' पाऐं जिसमें न हो खुशियों को विश्राम!
मकड़ी! जिस जाल में शिकार फँसाती है, अपने उसी जाल को समझ बैठती है वो कुल दुनिया, और फिर अपनी समझ के जाल में उलझी अपने जाल में फँस के मर जाती है नज़र आने वाले जालों से ज़्यादा ख़तरनाक होते हैं समझ के जाल!