कुमार आज़ाद   (कुमार आज़ाद)
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Joined 3 May 2018


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सब धरती कागद करूं,
लेखनी सब वनराय।
सात समुद्र की मसि (स्याही) करूं,
गुरु गुन लिखा न जाय।।

अनुशीर्षक में...

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सात जन्म की कसमें
खाकर साथ छोड़ता है।
दिल में रहने वाला
ही दिल तोड़ता है।

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स्वाद...







अनुशीर्षक में...

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अपनी परछाई का पीछा करते हुए बचपन गुजर गया
तेरी परछाई छूने की कोशिश में जवानी गुजर रही है
सूरज की रोशनी और परछाई का ये खेल
मृत्यु के द्वार तक चलेगा और हो जाएंगे हम छाया मुक्त

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अपनी परछाई का पीछा करते हुए बचपन गुजर गया
तेरी परछाई छूने की कोशिश में जवानी गुजर रही है
सूरज की रोशनी और परछाई का ये खेल
मृत्यु के द्वार तक चलेगा और हो जाएंगे हम छाया मुक्त

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देवनागरी के वर्णों के
प्रयत्न विवेक....

अनुशीर्षक में...

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तारों चंदा की बारात
हुई एक मुलाकात
याद आई तेरी बात
आंसुओं में भीगी रात

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तन खिला फूल सा जो मन मुस्कान जगी,
मह-मह महकती जैसे मधुमास पी।
केश काले घटाओं से घने घन-घन करें,
गुलाबों सी लाल लाली लबों की ही आस पी।
नटखट नयन नशीले नहीं जीने देते,
नज़रों को नज़रों की कैसी लगी प्यास पी।
चंचल चाँदनी हो चाँद की सी चंद्रमुखी,
पर मन हुआ तेरी सादगी का दास पी।।

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भूल नहीं पाए वो यादें।

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रात सुहानी कहे कहानी
एक था राजा एक थी रानी
थी दोनों की गुड़िया रानी
गुड़िया रानी बड़ी सयानी
खाती इमली पीती पानी
समझाती थी उसको नानी
शाला जाकर पढ़ो सयानी
करना ना इसमें मनमानी
पढ़कर बनना स्वाभिमानी
पढ़ती लिखती गुड़िया रानी
और बन गई डॉक्टर जानी

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