दूरियों ने मारा है मुझे,
नजदीकियां जिंदा रखती थी।
पास होते तो मर जाता,
दूरियों ने इश्क जिंदा रखा है।-
अमृत दूं मैं इस जग को, स्वयं करूँ विषपान।। कुमारः
वागर्थाव... read more
श्रीगुरवे नमः
नित्यं ध्यायामि ध्येयं हि
जीवनोत्साहवर्धकम्।
जीवितं सार्थकं येन
ध्येयो मे परमो गुरुः।।
जीवन के उत्साह को बढ़ाने वाले
ध्येय का नित्य ध्यान करता हूँ।
जिसके कारण जीवन सार्थकता
को प्राप्त होता है, वह परम गुरु ध्येय है।-
कड़ी धूप में श्रमजीवी कब रोते हैं।
स्वेद बिन्दु पाषाणों में नित बोते हैं।।
श्रान्त तनु हो तप्तवात में सोते हैं।
पुष्पों की आशा में जीवन खोते हैं।।-
मर्यादा अबला हुई,
निष्फल निष्ठा भक्ति।
सत्ता पद सुख भोगती,
पद लेहन की शक्ति।।-
भाषा को माँ मानते,
करते माँ की भक्ति।
भक्ति से वरदान मिला,
हुई जागृत शक्ति।।-
सद् शिक्षा से ही मिले,
मोती रत्न अपार।
विद्या विनय विवेक गुण,
मानव के शृंगार।।-
प्रेम में हृदय जब जुड़ जाता है।
मन तपस्या की ओर मुड़ जाता है।
प्रार्थना प्रिय कल्याण की केवल,
मोह वासना का प्रेत उड़ जाता है।।-
ज्ञानी पल्लव सींचते,
जड़ को जड़मति सींच।
प्रेषित करने सब जगह,
चित्र सुहाने खींच।।
ज्ञानी तो उन हरे पत्तों को सींचता है जो वृक्ष के ऊपर की शोभा बढ़ाते हैं। हे जड़मति मूरख तू जड़ को सींच। क्योंकि शोभा युक्त चित्र हर जगह प्रेषित करना है अतः सुन्दर पत्तों संग चित्र खींचने हेतु पत्तों को सींचना बुद्धिमत्ता कही जाती है।-
बड़ी-बड़ी बातें करें,
जग में भाषणवीर।
करनी कथनी एक हो,
मिले न सन्त फकीर।।-