Purnendu Kant   (पूर्णेन्दु)
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Joined 19 January 2019


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Joined 19 January 2019
1 MAY AT 16:48

सब बैठे हैं पी भंग,
ज़्यादा समझाने चलो,
तो कर देंगे हुड़दंग!

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28 APR AT 23:03

रातें लम्बी हैं नफ़ा बड़ा;
उम्मीद बनी रहे दिन में अगर,
सपनें सच कर दिखला दें हम!

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23 APR AT 13:09

कितनी भी दौलत रहे,
बिन इज़्ज़त सब सून;
पानी का भंडार है जलधि,
पीने को नहीं बूँद!

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22 APR AT 22:30

ही
करना दुश्मन पर प्रहार;
जल्दीबाज़ी में कहीं,
ख़ुद ही तुम्हीं न जाओ हार!

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20 APR AT 16:41

सब कुछ तो पैसा नहीं, पर होता तो है कुछ,
बचत बराबर कीजिए आख़िर होगा सुख।

औरों को मत देखिए, ख़ुद की करें पहचान,
जो हों चंद ज़रूरतें, करें उनका ही समाधान।

आमदनी को देखकर, सदा कीजिए ख़र्च,
भूल गए इसको यदि, तो बढ़ सकता है कर्ज़।

इच्छा तो होती अनंत, नहीं इसकी कोई सीमा,
जिसको ये न ज्ञान हो, उसका व्यर्थ है जीना।

सिर पे ऋण का बोझ ले, बनें नहीं साहख़र्च,
चिंता इसी उधार की, दे सकती दिल का मर्ज़।

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19 APR AT 22:41

नहीं सताओगी तुम मुझको;
आने वाले हैं मेरे साजन,
जगी रहने दो भी मुझको!

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16 APR AT 17:20

किस बात का गुरूर….

हर आपदा ने दिखलाया कितना वो बलवान है,
जीवन का हर एक दिन बस उसका ही अहसान है।
भगवान के ही हाथ में हर पल का इंतज़ाम है,
फिर इतना गुरूर करता क्यों आज भी इंसान है?

धन-दौलत और ये शोहरतें रहतीं ही किसके पास हैं,
परलोक के सफ़र में सद्कर्मों से ही आस है।
है आख़िरी सफ़र ये फिर कष्टों से निज़ात है,
चले मिलने परमपिता से, परिवार क्यों उदास है?

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13 APR AT 21:39

, झूठा था तेरा प्रेम,
देख कर थोड़ी ही बाधा, फिर गए जो तेरे नैन!

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13 APR AT 21:21

वरना है दिल बेचैन,
तेरी याद सताती है बहुत दिवस हो या रैन;
जीवन तेरे बिन अधूरा, तेरा ही है इंतज़ार,
जल बिन मछली सी तड़प है, आ जाओ पाऊँ चैन!

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7 APR AT 23:07

कभी भी हो सकता वो ढेर,
लेकिन जिसकी जड़ें हों फैली,
नहीं जल्द हो सकता ढेर!

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