जीवन कितना क्षणभंगुर है,
हम अक्सर देखा करते हैं;
पर भूल जाते अगले पल ही,
फिर से ख़ुद पर इठलाते हैं!
जीते जी की भले कद्र नहीं,
जाने पे बड़ाई करते हैं,
है समझ नहीं क्योंकर हमको,
जीवित ही ज़िंदादिल रहते हैं!
हे ईश्वर तुम इतना तो करो,
लोगों में करुणा-भाव भरो;
कोई दिल न दुखाए किसी का भी,
हर बात में कमियों की खोज न हो!
न हो लफ़्ज़ों का छिद्रान्वेषण;
सब ही दूजों की कद्र करें,
मतभेद हो पर मनभेद न हो,
सब मिलज़ुल खड़े समाज में हों!-
इस मंद किरण को, तम इसने हर डाला,
जैसे मेरे दिल पर तूने जादू हो कर डाला;
अब तो अंधियारी रातें भी नहीं बुरी लगती हैं,
तेरी प्रीत की मद्धिम ज्योति अंतस् करे उजाला!-
जो पढ़ लेती मेरी आँखों को,
और सुन लेती दिल की आवाज,
बन जाती जो मेरी हमराज़,
जिसे है मेरी हर पल परवाह!
जो करती है नख़रे जी भर,
पर रखती सबपर पूर्ण नज़र,
जिसके होने से घर है घर,
हर बात की रहती जिसे ख़बर!
उस परम-प्रिय प्राणेश्वरी का,
था हुआ धरती-अवतरण आज,
ख़ुद ख़ुश रहकर दूँ ख़ुशी उसे,
है आख़िर जन्मदिन उसका आज!-
मैं तुझे समर्पित करूँ तो क्या,
तू जान रहा मेरी हस्ती क्या,
सर्वस्व समर्पित है तुझपर,
पर ये तो बता तेरे दिल में है क्या?-
दिल ग़र जो आ जाए किसी पे,
हो उसे भी तुझसे प्यार,
मत सोचो कि पहल हो किसकी, कर दो ख़ुद इज़हार।-
क्यों बोझ लिए फिरते हो,
मन में पश्चाताप की ग्रंथि,
यूँ ही बँधी रखते हो?
उठो और संवाद करो,
कह डालो जो कहना हो;
हुई गलती तो माफ़ी मांगो,
क्यों इससे डरते हो?-
मुझको, फिर भी मैं कह रही हूँ,
तन्हाइयों से मैं तो दिन-रात लड़ रही हूँ;
दिल में तुम्ही बसे हो, रहूँ भीड़ में अकेली,
आओगे तुम कभी तो, फिर मैं भी ख़ुश हो लूँगी!
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मत जाओ पहनावे पे,
नहीं दिखता असली रूप;
सोने की होती परख,
देख अंदर क्या है स्वरूप!-
जग के इस जंजाल में,
जीवन मेरा हुआ खुर्द-बुर्द;
अब तो मैंने हार मान ली,
किया मैंने ख़ुद को तेरे सुपुर्द!-
नई-नई अमीरी है,
भूलो न तुम भी हो जातक;
करो ज़्यादा नहीं नाटक,
समय की मार है घातक!-