Purnendu Kant   (पूर्णेन्दु)
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Joined 19 January 2019


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Joined 19 January 2019
3 SEP AT 22:58

जीवन कितना क्षणभंगुर है,
हम अक्सर देखा करते हैं;
पर भूल जाते अगले पल ही,
फिर से ख़ुद पर इठलाते हैं!

जीते जी की भले कद्र नहीं,
जाने पे बड़ाई करते हैं,
है समझ नहीं क्योंकर हमको,
जीवित ही ज़िंदादिल रहते हैं!

हे ईश्वर तुम इतना तो करो,
लोगों में करुणा-भाव भरो;
कोई दिल न दुखाए किसी का भी,
हर बात में कमियों की खोज न हो!

न हो लफ़्ज़ों का छिद्रान्वेषण;
सब ही दूजों की कद्र करें,
मतभेद हो पर मनभेद न हो,
सब मिलज़ुल खड़े समाज में हों!

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23 AUG AT 22:55

इस मंद किरण को, तम इसने हर डाला,
जैसे मेरे दिल पर तूने जादू हो कर डाला;
अब तो अंधियारी रातें भी नहीं बुरी लगती हैं,
तेरी प्रीत की मद्धिम ज्योति अंतस् करे उजाला!

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13 AUG AT 19:47

जो पढ़ लेती मेरी आँखों को,
और सुन लेती दिल की आवाज,
बन जाती जो मेरी हमराज़,
जिसे है मेरी हर पल परवाह!

जो करती है नख़रे जी भर,
पर रखती सबपर पूर्ण नज़र,
जिसके होने से घर है घर,
हर बात की रहती जिसे ख़बर!

उस परम-प्रिय प्राणेश्वरी का,
था हुआ धरती-अवतरण आज,
ख़ुद ख़ुश रहकर दूँ ख़ुशी उसे,
है आख़िर जन्मदिन उसका आज!

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27 JUL AT 23:22

मैं तुझे समर्पित करूँ तो क्या,
तू जान रहा मेरी हस्ती क्या,
सर्वस्व समर्पित है तुझपर,
पर ये तो बता तेरे दिल में है क्या?

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27 JUL AT 19:57

दिल ग़र जो आ जाए किसी पे,
हो उसे भी तुझसे प्यार,
मत सोचो कि पहल हो किसकी, कर दो ख़ुद इज़हार।

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28 JUN AT 16:05

क्यों बोझ लिए फिरते हो,
मन में पश्चाताप की ग्रंथि,
यूँ ही बँधी रखते हो?

उठो और संवाद करो,
कह डालो जो कहना हो;
हुई गलती तो माफ़ी मांगो,
क्यों इससे डरते हो?

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22 JUN AT 22:41

मुझको, फिर भी मैं कह रही हूँ,
तन्हाइयों से मैं तो दिन-रात लड़ रही हूँ;
दिल में तुम्ही बसे हो, रहूँ भीड़ में अकेली,
आओगे तुम कभी तो, फिर मैं भी ख़ुश हो लूँगी!

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20 JUN AT 12:36

मत जाओ पहनावे पे,
नहीं दिखता असली रूप;
सोने की होती परख,
देख अंदर क्या है स्वरूप!

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10 JUN AT 21:54

जग के इस जंजाल में,
जीवन मेरा हुआ खुर्द-बुर्द;
अब तो मैंने हार मान ली,
किया मैंने ख़ुद को तेरे सुपुर्द!

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7 JUN AT 23:52

नई-नई अमीरी है,
भूलो न तुम भी हो जातक;
करो ज़्यादा नहीं नाटक,
समय की मार है घातक!

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