जग के इस जंजाल में,
जीवन मेरा हुआ खुर्द-बुर्द;
अब तो मैंने हार मान ली,
किया मैंने ख़ुद को तेरे सुपुर्द!-
नई-नई अमीरी है,
भूलो न तुम भी हो जातक;
करो ज़्यादा नहीं नाटक,
समय की मार है घातक!-
दिल की धड़कन भी तेज़ चलती है;
फ़िज़ा में ज्यूँ बहार हो छाई,
चिलचिलाती धूप भी चाँदनी लगती है!-
आज दिखावे की दुनिया में, दिखता जो, सच में है नहीं,
भले फेसबुक पर प्यार लुटाते, आपस में बनती है नहीं।
डीपी का तो खेल निराला, हर कोई धर्मेंदर-मधुबाला;
अगर कभी वो सामने आए, पहचान सके उसे कोई नहीं!
झूठ का जलवा सिर चढ़ बोले, सच बरबस लेता हिचकोले,
जाल-फरेब और धोखेबाजी, जिसने सीख ली, वही मजे ले।
आख़िर झूठ जब ज़ाहिर होता, भले ही बंदा इज़्ज़त खोता,
लेकिन उसकी परवाह किसे है, वो विषयांतर-पारंगत होता!
अंदर से हो मैल भरा दिल, पहन शराफ़त का एक चोला,
देते धोखा दुनिया भर को, उनका कभी ज़मीर न डोला!
मिहनत से तो वो घबराते, बैठ के ख़्याली-पुलाव पकाते,
सफ़ल लोगों की देख के दौलत, चाहें सबको ही हथियाते!
रहना होगा इन सबसे बचकर, आँखें मूँद विश्वास नहीं कर,
नहीं किसी पर करो भरोसा, तहक़ीक़ात बिन किए ठहरकर;
सबका असली चेहरा देखो, ऊपर की परतें ख़ुद खोलो,
ठोक-बजाकर जाँच-परखकर, राजे-हक़ीक़त रूबरू हो लो!-
रब की हो दुआ कुछ ऐसा हो,
तुम मेरी हमगम बन जाओ;
मैं तेरे प्यार में डूबा रहूँ,
सिरहाना तेरी गोद बने!-
मैं सब से लोहा ले लेती,
गर रोकती भी सारी दुनिया,
मैं दुनिया छोड़ के जी लेती!-
नज़र पर लग गई तुम्हारी,
करने में पीछा मृगमरीचिका,
तूने मिटा ही दुनिया हमारी!-
रातें लम्बी हैं नफ़ा बड़ा;
उम्मीद बनी रहे दिन में अगर,
सपनें सच कर दिखला दें हम!-
कितनी भी दौलत रहे,
बिन इज़्ज़त सब सून;
पानी का भंडार है जलधि,
पीने को नहीं बूँद!-