हर वक़्त बोझ रहता है पर झुकता नहीं है जो,
हां वही पिता का कंधा।
हर वक़्त जिम्मेदारी होती है पर शान से निभाता है जो,
हां वही पिता का कंधा।
हर वक़्त तपती धूप में तपता है बच्चो के भविष्य के ख़ातिर, हां वही पिता का कंधा।
हर वक़्त राह में परेशानियों का सामना करता है
पर कभी डगमगाता नहीं,हां वही पिता का कंधा।
हर वक़्त नारियल की भाँति कठोर होता है
पर अंदर से फूल से भी कोमल,हां वही पिता का कंधा।
(Caption)👇-
संसार का सबसे भारी
शब्द कौन-सा है ?
वह है जिम्मेदारी
अगर यह शब्द जीवित हो जाए
तो कैसा दिखेगा ?
पिता जैसा
Happy fathers day-
रिश्तों मे अब पहले जैसी बात नहीं
धरती पर पहले जैसी बरसात नहीं
अब स्कूलों में पहले जैसी मार नहीं
नदियों में भी पहले जैसी धार नहीं
सुदामा जी जैसे अब कोई मित्र नहीं
नंद बाबा जैसे अब कोई पितृ नहीं
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युवा शायर अज्ञेय ✍️
आप दोस्त भी है पिता भी क्या लिखूं आपके लिए
जीवन में गिरकर उठना, हाथ छोड़कर चलाना सिखाया आपने
और क्या सीखूं सामने के लिए
सारी खुशियां न्योछावर कर इबादत में मांगा है आपको
ख़ुदा से इल्तज़ा किया हैं इस जहां में दिखूं तो आपके लिए-
यूं जो अपनी दिल की बात
जुबां पर लाते लाते दबा लेते हो,
सच में मां की नज़रों में
अपनी इज़्ज़त और कमा लेते हो...!!
पिता पुत्र का रिश्ता भी बहुत अजीब होता है…
साथ होते समय कुछ बोल नहीं पाते हो
न होने पर बहुत कुछ कहने को शेष हो जाता है…!!
जीवन की हर परीक्षाओं में तुम्हें अकेला पाता हूं…
माना टूटे हो;
जब भी पिता की कमी खलती है
खुद को हीं खुद से गले लगा लेते हो…!!
इतनी हिम्मत तुम कहां से लाते हो....?
तुम्हारा जवाब भी बहुत खूब था....!
परेशानियों में ऐसे कैसे बिखर जाऊंगा…
अक्स तो उन्हीं का हूं
दबाव बढ़ने के बाद तो मैं और निखर जाऊंगा…!
माना पिता खो कर बहुत कुछ खोया हूं…
पर नहीं खोया हूं उनका दिया संस्कार,
उनके दिए संस्कार में हीं उन्हीं को ढूंढ लेता हूं…!!
बेटा हूं जो उनका…
मां के सामने मुस्कुरा
खुद को मजबूत बना,
अपनी सारी गमों को छुपा लेता हूं…!!
पिता के लिए बेटियां जान होती है
पर हम बेटों के लिए पिता दोस्त समान होते हैं
और ये बात सभी को मालूम है
एक दोस्त.. दो जिस्म एक जान होतें हैं…!!-
पितृ स्मरण मंत्र
ॐ देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च।
नमः स्वधायै स्वाहायै नित्यमेव नमोऽस्तुते।।-
"एक पिता द्वारा पुत्र पर उछाला गया डांट
हमारे उन गलतियों के लिए संजीवनी हैं
जिसे हम अपनाकर अपने जीवन के मार्ग अवरुद्ध कर लेते"
०८:५२am-
हमारे पूर्वज
नहीं भूलते आपको हम
आपसे ही अस्तित्व हमारा
हमारे वृत ,कथाओं ,पूजा ,पाठ
सब मे हो शामिल आप।
हमारे संस्कार ,संस्कृति ,और प्रथाएं
सब मे रहे हमेशा साथ।
सोलह दिन *महालय* के
आप उतरो धरती पर
स्वागत को आतुर है आंखे पूजन
करूँ जी भर कर।
न आ पाओ तो कागा भेजना ,सन्देशा
अपना और मेरा लेना देना
हम आपके वरद हस्त के इक्छुक
आशीष सदा बनाए रखना
रहो इस आंगन किसी भी भेष में
कृपा दृष्टि दिव्य प्रकाशित करना।-
पितरों का जिस घर में संमान नहीं होता है
संस्कारों का उस परिवार में श्रृंगार नहीं होता है।
टुटने पर ही स्तंभों का सत्कार क्यो होता है
मौत आने पर ही पितृपक्ष का संमान क्यो होता है।
सुखों को अपने त्याग कर वो बाप भूखा सोता है
सब भूल आज का बेटा बापू को पागल कहता है।
ये कैसी मानश कि रीति है जो परिजनों कि निंदा करता है
चंद रुपयों के मोह में बेटा मां बाप साया को खोता है।
आज कि यही कहानी है जो 'शाह' अभी सुनाता है
वृद्ध आश्रम में मरता है वो पालनहार जो ताकत खोता है।-
श्रीराम चरित मानस का प्रथम शब्द - वन्दना
वन्दउ गुरु पद पदुम परागा....
अंतिम शब्द मानवा।।
गुरु पितरौ को वन्दना, क्षमा करें सब भूल।
दीक्षा दो प्रभु प्रेम की, हरो वाक् के शूल।।-