कुछ तो मुस्कान बचाकर रखिए
कुछ तो अरमान बचाकर रखिए
भुला देते हैं वक्त बदलते, अपने
कुछ तो पहचान बचाकर रखिए
जब तक साहस हैं, सुनते रहिए
कहने को बयान बचाकर रखिए
लूट लेते हैं इज्ज़त अपना बनके
केसै भी तो मान बचाकर रखिए
बेवफाओं पे मत जान लुटा देना
अपना बलिदान बचाकर रखिए
चकाचौंध देख मत घबरा जाना
अरे अपना ईमान बचाकर रखिए-
अपनों के दिये दर्द से घायल हूँ
इसिलिए कविताओं में शब्द कम आँसू ज्य... read more
गर फब्तियां नजर अंदाज़ कर, चलना आ गया
समझ लीजिए तुम्हें हर हाल में ढलना आ गया
सही हो या गलत हो किसी को क्या फर्क पड़ेगा
गर पगडंडियों पे भी तुमको, सम्हलना आ गया
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वो इंतजार ही क्या जो ख़त्म हो जाए
वो मोहब्बत ही क्या जो कम हो जाए
कोई बातें सामने करे या पीठ के पीछे ,
वो रिश्ता ही क्या जिसमे वहम हो जाए-
जिंदगी की किताब कब पुरानी हो गई पता न चला
पढ़ते-पढ़ते कब गहरी नींद आ गई पता न चला-
इल्ज़ाम भी सह गए रिश्ते बचाने में
वे वजह मुस्कराए महफ़िल सजाने में
न नींद न मौत से कभी सामना हुआ
यूं ही लेट जाते थे बस रातें बिताने में
हकीकतों से तो रोज़ सामना होता था
दिन तो गुज़र गए झूठों को मनाने में
एक आह एक कराह कभी सुना न सके
जिंदगी निकल गई खुदी को बरगलाने में
गैर थे , जाने कब अपने बन कर रह गए
जिंदगी तमाम हुई अपनों को अपना बनाने में-
भावनाएं किसी की आहत न करो
नजरंदाज किसी की चाहत न करो
रह जाओगे अकेले इस दुनियां में
वे वजह किसी से अदावत न करो-