कि आसमान कहाँ तक है
मेरी उड़ान वहाँ तक है ये जहान जहाँ तक है।-
कि आने वाला तूफ़ान है
इसीलिए घोंसलों में सिमटा हर इंसान है-
निकल पड़ा हूं तलाश में, मेरी मंज़िल नहीं आसान है ।
परिंदे ढूंडने निकल पड़ा हूं, मतलबी दुनिया जब साथ है ।।-
परिंदे भी इंसानों के पास आने से डरते है
क्यों की इंसान इंसान से बहुत जलते है-
ना जाने क्या सोचकर खुदा ने रिहाई दे दी,
उड़ते हुए परिंदे को जमाने ने तन्हाई दे दी।-
वक्त वक्त की बात है,
देखो कुदरत का खेल....
'बंदी' सारे आजाद हो गए,
'जेलर' को हो गई जेल.....!!-
कहते है कि मोहब्बत के परिंदे किसी से कोई बैर नही रखतें है,
जहाँ नफ़रतें हो दिल मे हमारे लिए हम भी वहाँ पैर नही रखते है।-
जब तक अल्फाज मेरे महसूस ना होंगे ,
मोहब्बत के परिंदे रूह कैसे छूं पाएंगे ।-
कई बार टूट कर बिखरी है जिंदगी
और हौसले से गूँथी गई है कई बार
कई बार पतझड़ ने छीने हैं पेड़ों से पत्ते
और हर बार ही नई कोपलें फूटी हैं।
कई बार मायाजाल ने भटकाया है मन
और बिंदु बिंदु विचार किया है कई बार
कई बार शरीर दग्ध हुआ ईर्ष्या के ज्वालामुखी से
और उसी राख मे उत्साह के रत्न मिले हैं कई बार।
अनगिनत बार परिस्थितियाँ प्रतिकूल रही हैं
पीड़ित रहा है मन, मिली हैं कितनी ही क्षणिक हार
पर हठी मन लड़ने को उद्यत हर बार,
कई बार इस उमंग ने विश्वविजय किया है
स्वयं पर विजय पायी है,कई बार कई बार कई बार।
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किस तरह होगी परिन्दे तेरी बसर यहाँ
ना घरोंदा तिनकों का ना ही कोई शज़र यहाँ
उम्मीद फ़िज़ूल है कि होगा कोई तेरे ग़म में शरीक
शहर है ये नहीं रखता कोई किसी की ख़बर यहाँ
इश्क़ में जिंदगी हारने वालों देखो नन्हें मजदूरों को
कीमत जिंदगी की बतायेंगे होतीहै कैसे गुज़र यहाँ
होगे जितने बदज़ुबान उतने ही पूछे जाओगे
कुछ मुंहजोर बनो नहीं होती शरीफ़ों की कद्र यहाँ
बेटियाँ ये कहकर भी सतायी जातीं हैं अक्सर
ससुराल है यह नहीं तुम्हारी माँ का घर यहाँ
मंजिल का पता ही नहीं और रास्ते अन्जान
किस तरह होगा 'शालीन ' तन्हा सफ़र यहाँ
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