राष्ट्रप्रेम के नवचेतन की, जो अविरत आँधी लाए।
जब भोर भई ना घोर तिमिर की, तब सूरज बन गाँधी आए।।
वह निकल पड़े सैलाबों में, सत्य, अहिंसा की पतवार लिए।
लाठी थामे साधारण व्यक्ति, एक सेना सा अवतार लिए।।
ना जाने शस्त्रों की भाषा, ना आती कोई जटिल कुनीति।
भजते चले नाम ईश्वर का, चाहते विश्व में केवल प्रीति।।
कुछ कदम बढ़े पश्चिम की ओर, हित देश के थे पीछे छूटे।
वो बुनते रहे भारती माँ का आँचल, ना धागे खादी के टूटे।।
एक-एक मोती भारत का, पिरो लिया एक अखंड माल में।
सर्वस्व न्योछावर करने को, भेंट किए मुख सजा थाल में।।
दिखा दिया बापू ने जग को, धारण करके स्वभाव सरल।
पुष्प अहिंसा के कैसे, कर सकते हैं, सब शस्त्र विफल।।
हे राष्ट्र पिता!
तेरी सीख की डोर ना छोड़ें, कभी ना मुख इस राह से मोड़े।
हमको ऐसा आशीष दो बापू, कभी ना नाता सच से तोड़े।।
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