राष्ट्रप्रेम के नवचेतन की, जो अविरत आँधी लाए।
जब भोर भई ना घोर तिमिर की, तब सूरज बन गाँधी आए।।
वह निकल पड़े सैलाबों में, सत्य, अहिंसा की पतवार लिए।
लाठी थामे साधारण व्यक्ति, एक सेना सा अवतार लिए।।
ना जाने शस्त्रों की भाषा, ना आती कोई जटिल कुनीति।
भजते चले नाम ईश्वर का, चाहते विश्व में केवल प्रीति।।
कुछ कदम बढ़े पश्चिम की ओर, हित देश के थे पीछे छूटे।
वो बुनते रहे भारती माँ का आँचल, ना धागे खादी के टूटे।।
एक-एक मोती भारत का, पिरो लिया एक अखंड माल में।
सर्वस्व न्योछावर करने को, भेंट किए मुख सजा थाल में।।
दिखा दिया बापू ने जग को, धारण करके स्वभाव सरल।
पुष्प अहिंसा के कैसे, कर सकते हैं, सब शस्त्र विफल।।
हे राष्ट्र पिता!
तेरी सीख की डोर ना छोड़ें, कभी ना मुख इस राह से मोड़े।
हमको ऐसा आशीष दो बापू, कभी ना नाता सच से तोड़े।।-
नहीं दूर आसमां उस से,
उड़ने की फिर चाह जिसे है।
गिरकर उठने का हो जज़्बा,
गिरने की परवाह किसे है??-
बिन नारी कैसे जन्में नर,
बिन अर्धांगिनी यज्ञ अधूरे हैं।
बिन शक्ति के शिव भी हैं शव,
बिन राधा श्याम कहाँ पूरे हैं??-
हो जुनूं निरंतर जलने का,
बन जाती, सूर्य चिंगारी है।
हो जुनूं निरंतर चलने का,
नहीं चाँद पकड़ना भारी है।।-
करना क्या गिला ज़माने से,
वो कहाँ कहर सह सकते हैं।
नीलकंठ, महाकालेश्वर,
महादेव ज़हर सह सकते हैं।।-
कब ठहरा है पतझार सदा,
कब आया नहीं वसंत बता?
भले ज्वार विभिषक आया है,
चिरकाल कौन टिक पाया है??-
हो दीप्त प्रचंड ज्वाल सी, अंधकार तभी अस्त होंगे।
तेरे ही आत्मविश्वास से, पस्त कष्ट समस्त होंगे।।
अटल है तो अजय है तू, दृढ़ है तो विजय है तू।
तू सैलाब बन तरंगिणी, तभी बाँध सब ध्वस्त होंगे।।-
देख तू बता ज़रा, निर्बल तू किस प्रकार है।
आरंभ है निर्माण का, जीवन का तू आधार है।।
प्रतीक है प्रकृति की, प्रतिबिंब है तू शक्ति की।
ईश्वर के ही समरूप कुछ, ईश्वर का तू उपहार है।।-
नाज़ करे मेरी खूबी पर,
कमियों के मेरे साथ चले।
खुशी का मौसम या गम का,
हर वक्त में थामे हाथ चले।।-