किसी रोज शहर को नीला आकाश
छोडकर चला जायेगा !
पर शहर तो,फिर भी रहेगा
उन्माद में
शहर का मन तो रमा रहेगा
पतंगों में
हत्याओं में ...
फिर शहर को छोड जायेंगी वनस्पतियाँ...
कोई पौधा,रक्त पर भला क्यूँ उगना चाहेगा ?
एक परित्यक्त शहर दूर से और पास से भी बहुत
कुरूप दिखाई देगा
लोग जो चाँद के कौर को
अब बारी-बारी से उठाकर रख देते हैं ;
देखना तुम..!
उनके हिस्से का अँधेरा रोज उगने लगेगा !!
-
आज एक पतंग है मेरे हाथों में
लगता है उमंग है मेरे हाथों में
ले तो रहा हूँ ऊँची उड़ानें इससे
कुछ पंछी अपंग हैं मेरे हाथों में
आसमान इनका ही था शुरू से
फिर क्यों ये तरंग है मेरे हाथों में
वतन के धागे ही अच्छे "आरिफ़"
लगता है कि मलंग है मेरे हाथों में
"कोरे काग़ज़" जैसा आसमान है
पंछियों का हर रंग है मेरे हाथों में-
"ज़िन्दगी.. यूँ तो है उड़ती पतंग
पऱ सीने गाँठ बंधी है.. डोरी सी,
मेरी लंबी-लंबी साँसें हैं
औऱ हिस्से में हवा है थोड़ी सी"-
पतंगें सोचती हैं...🤔
कि उन्हें मिलवाया जा रहा है..☺
जबकि पतंगें ये नहीं जानती,😒
कि उन्हें लड़वाया जा रहा है!!-
पतंग उड़ाए हुए,
ज़माना हुआ
साइकिल चलाए हुए,
ज़माना हुआ
लुकाछिपी खेले हुए,
ज़माना हुआ
दूरदर्शन देखे हुए,
ज़माना हुआ
कंचे खेले हुए,
ज़माना हुआ
गिल्ली- डंडा खेले हुए,
ज़माना हुआ
कागज़ का नाव बनाए हुए!
-
पतंग सी उड़ी तो हैं मेरी ख्वाहिशें
मगर ना जानें कट कर किसके छत
पर जा गिरी हैं!-
ख़्वाबों के परिंदे आसमान छूने निकले थे अनजानों की पनाह में,
अपनों के ईर्ष्या के पतंग पंख काटने ना आते तो क्या वो अपने कहलाते।
-
कहा भयौ, जौ बीछुरे, मो मन तोमन-साथ।
उड़ी जाउ कित हूँ, तऊ गुड़ी उड़ाइक हाथ।।-
सुनो,….
मैंने.. अपने वक्त की ..
एक.. पतंग बनाई है,..
क्या.. अपने बातों के
माझे से काट.. सकते हो
तुम इसे..!!-