जो तुम्हारी आँखों से बयान होते हैं
वो लफ्ज शायरी में कहाँ होते हैं,
तुम्हारी इन झील सी नीली आखों में
डूब जाने की हसरत हैं,
कहदो इन नज़रों से मुझे तुमको
निहारने की चाहत है...-
विरह की अग्नि में जल तपस्या मैं कर रही
तो अनवरत प्रतिक्षा में तुम भी तो होंगे
पा कर तुम्हें सप्तपदी वचनों से, फिर खोया
अधूरी हूँ यहाँ, तो पूर्ण तो तुम भी तो नहीं होंगे
कुम्हलायी ,निस्तेज, निर्जीव सी ढोती हूँ काया
फूल सा तन, सुरभि-सा मन तुम्हारा भी तो ना होगा
चेहरे की फीकी हँसी से ढकती हूँ उदासी की लकीरें
हँसी उजली वो नीली चमक तेरे चेहरे पर भी ना होगी
सुवास रहित निर्जन पथ पर एकाकी सफर पर हूँ मैं
महकती ,चमकती चाँदनी यामिनी में तुम भी तो ना होगे
आँखोंं से बहते हैं अविरल अश्रुजल की धारायें
तेरी आँखों से खुशियो के अक्षुनीर तो ना झरते होगे
अनजानी नियति से बँधी हैं जो सारी दिशाएँ हमारी
ये सत्य है,ना मैने चाहा था इसे ना ही तुम चाहते होगे
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मृत्यु की देवी को
शायद पसंद न आयी
ये नीली बिंदी।
लगी है कब से इसे लाल करने।-
तेरी स्मृतियों के आसमान को बांधा है
मैंने नीली साड़ी के आँचल में
तेरी प्यार का दीप्तिमय सूरज को
साधा है मैंने अपने माथे पे
तेरी आँखो से उठती प्रेम तरंगों को
समा लिया मैंने आँखों के काजल में-
तुम्हारे बग़ैर कुछ इस तरह त्यौहार मना लेतीं हूँ ,
तेरे नाम की चूड़ी , बिंदी - सिंदूर लगा लेतीं हूँ ।
तेरी पसंद की नीली साड़ी बदन से लिपटा लेतीं हूँ ,
ऐसे तेरे एहसास से स्पर्श की कमी मिटा देतीं हूँ ।
पकवान बना तस्वीर तुझे व्हाट्सअप कर देतीं हूँ ,
तुम्हारे बग़ैर कुछ इस तरह त्यौहार मना लेतीं हूँ ।
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यकीनन वो नूर सितमगर निकला है नहाके नमकीन समंदर की गहराइयों से...,
के ,तभी उसकी नग्मा निगार आंखों का नीला रंग,समंदर से बेहद मिलता जुलता है।।-
मालूम है तुम्हे क्यूँ बाँया पन्ना खाली रखती हूँ मैं..
अपनी नीली किताब का..
तुमसे हुई बातें लिखती हूँ दायें पर और तुम्हारी
मेरी कल्पना से हुई बात उसे भी तो जगह चाहिए ना..
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नीली मधम रोशनी में,
पहरा समंदर का है,
छूना है नीला गगन तुझे,
तेरा अरमानो का सजा सेहरा है,
निकल जाना पार इस जहान के,
नीली रोशनी के बाद एक मधुर सवेरा है।।
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कुछ इसलिए भी नहीं पहनता मैं नीली कमीज़ अपनी,
लोग पूछेंगे मुझसे राज खुशबुओं का तो मैं शर्माऊंगा कैसे।-