नज़रो में रखकर , मुझे नज़र-अंदाज़ करना
लबों को खामोश रखना,निगाहों से आवाज़ करना
मुझी से मोहब्बत उसको नफ़रत भी मुझी से
तौहीन भी करना मिरी और मुझी पर नाज़ करना
तन्हा हो जाती हैं फूल सी मुरझा जाती हैं मुझ बिन
फिर भी रह शाम है उसने मुझे नाराज़ करना
मैं तो यही सोच कर सो जाता हूँ हर रात जल्दी
"मुनीष" सुबह फिर उसको मनाने का है आगाज़ करना-
फ़ुरसत में तो हम इतने है,
की उनको माफ़ कर, अक्सर,
ख़ुद से नाराज़ हो जाया करते है।
-
जिंदगी खुशी से ज्यादा गम देती है
ऊपर से तकलीफ न कम देती है
होती है कुछ मुसिबते इस कदर
जिंदगी से नाराज कर देती है-
उसको भी कहनी थी एक बात हमसे
कुछ खलल से बस वो राज रह गई है,
याद भी आएंगे तो वो बस रो पाऐगी
नशा मुसलसल से वो नाराज रह गई है।-
नजरअंदाज मत करना
उन्हें नाराज़ मत करना
की थी कल जो गलतियाँ
फिर से आज मत करना-
नाराज होकर भी हम * तुमसे * नाराज नही रहते
क्योंकि बेपनाह इश्क़ जो करते है * तुमसे *
-
वो तेरा पहली नजर का नज़राना
नजरों को मिलाकर ,अधरों का मुस्कराना।
नाराज़ हो क्या हमसे??
या बदलें है नज़ारें या नज़राना पुराना ।।
-
क्यों ख़फ़ा-ख़फ़ा से, रहते हैं हम सब
रहना हैं यहीं, 'यहीं नहीं रहते' हैं हम सब
कभी इससे नाराज़, कभी उससे नाराज़
'ख़ुद से ही', क्यों नाराज़ रहते हैं हम सब
कौन दिल दुखायेगा, कौन क्या ले जायेगा
अकेले आये थे, अकेले ही जायेंगे हम सब
कल के ज़ख्म को, आँसुओं से सींचते हैं
आज की हँसी को, क्यों 'तरसाते' हैं हम सब
यह होगा वो होगा, यह ना होगा वो ना होगा
हर पल सिर्फ़ 'खौफ़' ही क्यों खाते हैं हम सब
आओ याद करें, बचपन की वो बेबाक़ हँसी
ख़ुद को याद कर, ख़ुद को हँसाते हैं हम सब
आओ! जीवन में कुछ पल, यहीं रुक जाते हैं
रंज-ओ-गम भूल, कुछ गुनगुनाते हैं हम सब
ग़म मेरे कुछ ज़्यादा, तुम्हारे कुछ कम हैं
चलो! अब एक-दूसरे को, हँसाते हैं हम सब
ख़ुद ही ख़ुद पर, आज एक 'अहसान' कर दें
आओ! अपने होने का, जश्न मनाते हैं हम सब
- साकेत गर्ग-