हम तारीख से दीवार पर टंगे रह गए
और इश्क़ परवान चढ़ता गया,
हम ढूंढते रह गए दिन महीनों में उसको
वो सांसों में बसकर जान बनता गया ,
अहसास नादान थे हकीकत भूल बैठे
मान दे दी उसे वो नादान बनता गया,
तन्हाइयों के मारे रहे हैं हम कब से
जानकर भी वो अंजान बनता गया,
हम शीशा हो गए वो पत्थर ही रहा
वो चोट देकर भी हैरान बनता गया !
- दीप शिखा
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नादान हूं नासमझ नहीं
जो छल और निश्छल
के भेद को ना भाँप सकूं
चुप हूं मगर बेबस नहीं
जो इल्ज़ामों की दीवार
को न लाँघ सकूं
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हम थोडे पागल थे
जो अपना ही दिल तोड बैठें
वो बडे नादान थे
नादानी मे इशक ठुकरा बैठें-
थोड़ी नटखट "थोड़ी शैतान है वो
थोड़ी "पागल" तो थोड़ी "नादान" है वो..
आज भी बचपना है उसमें
तभी तो थोड़ी "बदमाश" है वो
लड़ने झगड़ने में थोड़ी "बवाल" है वो..
मुश्क़िल वक्त में "समझदार" है वो
मेरे चेहरे की हंसी "मुस्कान" है वो..
अपने हरकतों से "अनजान" है वो
पर जो भी हो "मेरी जान है वो"..!-
नादान है दिल
समझाती हूं तो समझ जाता है,
नादां है दिल बहुत मचलता है।
अब इसकी गुस्ताखियो पर
सिर्फ मुस्कुरा देती हूं
मेरा कहा भी अब ये कहां मानता है
नादां है तुमको तुमसे ही तो मांगता है
समझाती हूं तो समझ जाता है
नादां है दिल बहुत मचलता है
अब तो गुम है सिर्फ लिखावटों में
अहसासो में तुमको उभारता है।
नादां है लफ़्ज़ों में तुमको जीना चाहता है
समझाती हूं तो समझ जाता है
नादां है दिल बहुत मचलता है
इसकी बदहवासी से अब मन डरता नहीं है
अब तो बेचैनी में भी करार आ आता है
नादां है तुम्हारा साथ ही तो मांगता है
समझाती हूं तो समझ जाता है
नादां है दिल बहुत मचलता है।
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ऐ दिल तेरे शौक़े'अज़ीयत से परेशान हो चला हूँ
लाश ढ़ोता आरमनों का कैसा इंसान हो चला हूँ।
इस उम्र-ए-दौरा में भी जीने का सलीका न आया
मेरे ख़ालिक, देख ये सब मैं अब हैरान हो चला हूँ।
ग़मो से लिपट के रोती रहती हैं अक़्सर आंहे मेरी
तज़ादे'पैहम से उलझा ग़मज़दा हैवान हो चला हूँ।
ख़याल-ए-सूद-ओ-जियाँ में उलझी उलझन मेरी
गोया मैं झोलीदा बनिये का सामान हो चला हूँ।
कौन निभाता हैं साथ भला गर्दिश-ए-अय्याम में
तकाज़ा-ए-वक़्त से महरूम वो नदान हो चला हूँ।
तस्बीह कर के चश्म-ए-तर करती रही दुआ मेरी
नालिश करता हुआ मैं कितना अनजान हो चला हूँ।-
जिस शहर में इंसा आस्तीन में छुरी छिपा मुलाक़ात करता है,
उस शहर में इक नादां गैरों से दिल की बात करता है।-
ओ दिल-ए-नादान मुश़्किल में रहा कर
जिसमें नहीं जान उस दिल में रहा कर
अकेला देख तुझे कोई चुरा न ले कभी
ज़िन्दा रहने के लिए महफ़िल में रहा कर
जब तक तू चलेगा तभी तक ज़िन्दगी है
पैर के छालों को भुला मंज़िल में रहा कर
हर तरफ़ यहाँ बस झूठ का बोल बाला है
ख़ुश होकर तू भी अब बात़िल में रहा कर
लोग आयेंगे और तुझे तोड़कर चले जायेंगे
बेझिझक तू अपने मुस्तकबिल में रहा कर
मिलना बिछड़ना तो सब क़िस्मत का खेल है
सबसे मिलने की ख़ातिर तू साहिल में रहा कर
कोई जाकर भी कहाँ जा पाता है इस दिल से
तू अब ख़ंज़र मारने वाले क़ातिल में रहा कर
इश़्क करना कोई गुनाह नहीं यहाँ "आरिफ़"
अपनी महबूबा के होंठों के तिल में रहा कर
जिसने बनाया उसके लिए सब "कोरा काग़ज़" हैं
तू अपने अल्फाज़ों के साथ श़ामिल में रहा कर-
लगाकर उसके मन को ठेस,
मैंन पूछा नाराज़ हो क्या..!
उसने प्यार से बोला,
आप इतने नादान हो क्या..!!-