ऐसा शदीद दर्द था उस अलविदा के वक्त
किसीने नस काट ली किसी के कॉल कटते ही-
सांसे तो रोक लूं अपनी, यह तो मेरे बस में हैं..
यादें कैसे रोकूं तेरी, तू मेरी नस नस में है।-
वाज़िब बस सांसें है वो भी उधार की
नब्ज़ ताउम्र टटोलें नस कट चुके प्यार की-
देखा था तुझे बस एक नज़र भर के ,
क्या पता था की नस-नस में समा जाओगे ।-
हो इजाज़त तो मांग लूं
तुझे रब से मैं....
सुना है सावन में मांगी
दुआ बेकार नहीं जाती..!!!
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एक अजब मोड़ पर दिल ठहेर गया है
कोई मुझसे हि मुझमे डर गया है।
ये कैसा खिंचाव मेरी नसों में है
ये कौन है जो मुझमें मर गया है-
सांस तो रोक लु अपनी, ये तो मेरे वश में है....
यादें कैसे रोकू तेरी, तू तो मेरी नस-नस में है।।-
गर इश्क हो जाये तो हमारी नसों में खून से ज्यादा साहित्य बहने लगता है, जो दुनिया की कोई पद्धति ऐसा कृत्य नहीं कर सकती । काश कि सबको इश्क हो जाये ।
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हाय! आपकी वो नशीली बातें!
कुछ नशीली सी हैं दिन रातें!
नस नस में बस घुलती जा रहीं,
आपसे ख़्वाबों में वो मुलाक़ातें!
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रोकने से तो ..रुकते...नही ...
देखा है कही ऐसा खुदगर्झ तुमने पहेले कहा ..?
ख्वाब ही नस नस मे बस गया ...
वो किसीके आगे जुकते नही
वंदना परमार-