मैंनें
प्रेम के अलावा कुछ जाना ही नहीं ।
असमय बत्ती के गुल हो जाने में भी प्रेम दिखता है,
हो सकता किसी दीपक से मिलने
गयी हो ।
सूरज के न निकलने में भी
प्रेम दिखता है,
हो सकता किसी छाया से मिलने गया हो ।
- Saurabh R Rajpoot-
कहना होता है हौशियाये शब्दों को
सुनना रहता है आदती सन्नाटे को
जब याद तुम ऐसे आती हो
बुनना रहता है बिखरी मुस्कानों को
जुड़ा समूचा दिखता, हूँ तृणवत कभी कभी, हे तृप्ति
क्यूँ समय मयूरे संग कभी कभी थेई थेई नहीं कर पाता हूँ?
क्यूँ वक्त की ढाल पे चलते चलते हौसला कभी छिल जाता है?
हूँ विश्वस्त तुम संग नित हो,
देखो क्या कुछ लेकिन नहीं छूटा है ?
संजोऊँ मैं, ओदी काँक्षाओं को सेकूँ मैं
क्षणिक रहा प्रतिमान तुम्हारा
तनिक दिखा आयाम तुम्हारा
कुंज हिय के रईस हुए यूँ
विंध्य भावनाओं के खड़े हुए यूँ
सरदार हो गया ये सौरभ
कोहिनूर कस्तूरी क्या दुर्लभ अब,
लेकिन अंतस की अंजुरी क्यूँ आज अधूरी खाली है?
बाग भर दिया फूलों से क्यूँ हाथ माली के खाली है?
देके तुमने खुदको ऐ प्रियवर क्या मेरा स्व नही लूटा है ?-
यात्रा तो लंबी होनी है
तुम्हारे सपनों की लंबी नोट जो है मेरे पास
कई बार लगता है कोई और सपने देखूँ
सपनों की ओट बदल लूँ
लेकिन जो सनी है तुम्हारी मादकता से
वो कैसे?
सपनों की नोट बदल दूँ।
प्रश्न करता हूँ खुद से
कोई और दिशा भी गुलाबी है क्या
कोई और आवाज भी इतनी रूमानी है क्या
जवाब मिलता है,
जो है सब उसी से है
जो है सब उसी का है।
मैं प्रश्न करता हूँ स्व से
क्या एक भी सपना छुट्टा नही है
इसी ओर जाना है,
क्या कोई राह उल्टा नही है?
संतुष्टि के शीर्ष के अग्रदूत बनी
सपनों की नोट तुम्हारे रक्तोत्पल स्वरूप में एकात्म्य
होने का ऐलान करती है,
राहें, दिशाएं, विमायें तुमको उद्गम
स्वीकार कर तुम्हारी अध्येता
बने रहने का अभिमान करती है।
अंततः देखो मैं रह गया तुममें
मैं बह चला हममें !!!
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मैं तो मस्तिष्क के रजिस्टर में स्तंभित यादों की सूची में आपकी उपस्थिति मात्र से ही १०० फीसदी खुश हूँ, क्योंकि - आप आती हो तो लगता है जैसे महीनों से तपते लातूर को मधुर बारिश की मृदुल फुहार मिल गयी हो, जैसे जम्मू में हफ़्तों से लगे कर्फ्यू के हट जाने से स्वछन्द बयार को कसके गले लगाने की आज़ादी मिल गयी हो, जैसे उदास आँखों को चमकते रहने के लिए लालिमामय ज्वलंत ज्योति मिल गयी हो, और न जाने क्या क्या अच्छा महसूस होता है जी को।
आप हमेशा मेरे लिए विशिष्ट रही हो और हमेशा रहोगी !!!-
अरण्य के
एकांत में,
ऊर्जित आशाओं के
प्रसाद में,
तुम मूर्तवान हो
गर्भित शब्दों के हर संवाद में ।
श्वेत मौन की
श्याम अभिव्यंजना में,
निस्सीम सपनों की
बुनियादी अवसंरचना में,
तुम विद्यमान हो
अभीप्सित हिय की परिकल्पना में ।
तुम आनंदप्रवाहिका
खिल जाओ,
हे अभिसारिका!!!
-
तुम
स्वास्थ्य वर्धक प्रदूषण हो
तुम शोर हो कर्णप्रिय
डेसिबल का,
तुम हो तो मेरे
जीवन तंत्र में
स्थायित्व है ।
तुम तरंग हो
नवीनता की
तुममें नवलता है
धुले आसमां सी।
तुम मनचाहा पर्यावरण हो
मैं एक रंग, मैं एक ऋतु, तुम
जैव विविधता का परिवर्धित आवरण हो।
तुम क्रियाविधि हो
मेरे अंतस की पारिस्थिकी को
संतुलित बनाये रखने की ।
तुम न्यूरॉन हो
ख़ुशी देने वाले हार्मोन हो,
तुम इंसान नही केवल
एक फलीभूत अनुसन्धान हो ।
तुम पहली बारिश हो
जिसमे अम्लीयता है
मेरी क्षारीयता को सोख लेने की!!!-
जानता हूँ
जो देख रहा, वो है नहीं शायद
फिर भी देखूँगा उसे,
उसमें तुमको
मुझमें तुमको
सबमें तुमको
तुममें तुमको,
तुम्हारे, वहाँ से निकल आने तक
तुम्हारे,मुझमें पल्लवित हो जाने तक !!!-
मैं शुरू के सुर से शुरू होऊँ और सुरों का ताँता लगा दूँ । सुरों की आवृतियों के आनंद में डूबे तुम्हारे मन से मेरा मन जुड़ जाए एक सरगम बनकर ।
- Saurabh R Rajpoot-
प्रेम 'कब', 'क्यों', 'कैसे' जैसे सवालों के जवाबों के बिना एक विज्ञान है। प्रेम किसी निश्चित सूत्र और प्रमेय से रहित एक गणित है ।
- Saurabh R Rajpoot
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मैं ठहरा नहीं हूँ, लेकिन नदी भी नहीं हूँ ।
सोने में जागता हूँ, जागने में सोता हूँ । अक्सर मैं जान नहीं पाता कौन सामने से निकल गया, अक्सर मैं सुन नहीं पाता बगल वाले इंसान ने क्या कहा । मैं आँखों को समंदर मानता हूँ । मैं पलकों के साहिल पर खड़ा होके समंदर की जवानी देखना चाहता हूँ । मैं सोने के बाद सपनों के जहाज में बैठकर आँखों के समंदर का उतार चढ़ाव देखना चाहता हूँ । समंदर के ना कहने पर मैं उससे कहूँगा मैं नदी हूँ । मैं तुम्हारे सूर्य की एक बहुत महीन रोशनी हूँ । मुझे मिला लो खुद में । ठीक वैसे ही जैसे बंदर एक छत से दूसरी छत पर कूदने से पहले अपने बच्चे को चिपका लेता है पेट से और उन कुछ पलों के लिए दोनों के शरीरांतरों का विलोप हो जाता है ।
तुम कितने भी पूर्ण क्यूँ न हो मेरे अंश भर की रोशनी के बिना अपूर्ण ही रहोगे । तब शायद समंदर पलकों के साहिल को मोर बनने को कहेगा और सपनों को पानी के फलदार बादल। तब वह और गहराएगा और अपनी मोम की सी कोमल, कपूर की सी महकती लहरों से मेरी इलायची सी लहरों को चूम लेगा । और मेरे सोते हुए होंठो पर मछलियों की परियाँ तैर उठेंगी ।
- Saurabh R Rajpoot
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