सोचता हूँ किताबों से हटकर कभी तो
तुम मेरे पास हो, कभी तो तुम मेरे साथ हो,
कभी तो हम दोनों साथ हो ।
किताबों के पन्नों की खुशबू से निकलकर
तुम्हारी खुशबू से अपनी देह को घेर लूँ ।
सोचता हूँ ये इंतेज़ार के जाल काश जल्द कट जाएं
हमारी परछाइयाँ मिलें, मिलके एक हो जाएं ।
मैं तुम्हारे पास बहुत पास बैठूँ
तुम्हारी हथेलियों पे अपनी हथेली रख दूँ ।
तुम्हारे बालों के सुंदरवन में
अपनी उँगलियों के हिरन दौड़ाऊँ ।
सोचता हूँ कभी मिलो
मैं सुनता रहूँ तुम कुछ भी बोलो ।
अपनी ज्ञानेन्द्रियों का इस्तेमाल करूँ
तुमको तंग करने में, तुमको हँसाने में,
तुमको अपने करीब लाने में
और फिर धीरे से पीछे से
तुम्हारे कंधे पर अपनी ठोड़ी टिका दूँ
और तुम्हारे कानों के जरिए तुम्हारे हृदय में
उतर जाऊँ ये कहते हुए कि -
"हम तुम्हें बहुत चाहते हैं,
हमें तुम बहुत अच्छी लगती हो,
हमें बहुत प्रेम है तुमसे
और तुम हमेशा मेरे पास रहना..."
-- Saurabh R Rajpoot
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