jaanvi gupta  
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Joined 27 May 2019


Joined 27 May 2019
15 APR AT 15:59

मोहब्बत का तो पता नहीं
तूने बेइज़्ज़त बहुत किया हमें

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13 APR AT 20:15

घर से बेघर हो गई,करवटे नसीब की
दूर कितनी हो गई,मंजिलें करीब की
रफ़्ता रफ़्ता हो गयी,दिल में कितनी दूरियां
कल मोहब्बत थी, जहां आज हैं मजबूरियां
तमन्ना थी की,गुलशन में बहार देखेंगे
अपनी ही आँखों से अपने
हमसफर का प्यार देखेंगे
मुझे नहीं मालूम था
ऐ- मेरे मलिक....
की अपने ही घर में,अपना मज़ार देखेंगे......

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28 MAR AT 23:38

छोड़ो अब जानें भी दो मैंने मान लिया
तुम गंगा जल और ज़हर हैं हम !!!!!!

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20 MAR AT 14:43



याद करने की हमने हद कर दी,
लेकिन,
भूल जानें में तुम भी कमाल
करते हो......!!!!

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20 MAR AT 14:39

जब कभी मैं,
आऊँ तुम्हारे पास,
अपने कंधे से
दूसरे बोझ हटा देना .....

देना अपने कंधे का सहारा,
मेरा सुकून में आशियाना बना देना,
कुछ पूछना नहीं, ना कुछ बताना,
उन खामोश लम्हों को,
कर बंद आँखें बिताना ..

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11 MAR AT 14:56

मन के अंदर अचानक दरक गया कुछ बिखरा तो नहीं पर‌ टूट गया कुछ...
समझ नहीं आया ख़्वाब था कि सच ..पर मुट्ठी से अचानक सरक गया कुछ..

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3 MAR AT 20:35


शब्द...मन... और जज्बात,

एक एक कर के सब ख़ामोश हो गए...!!

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29 FEB AT 22:02

कुछ बातें कहना मुश्किल हैं,
तुम चेहरे को पढ़ लिया करो!!!❤️❤️

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27 FEB AT 22:22

मैं इक राज़ हूँ, मुझे राज़ ही ... रहने दो,
छेड़ो न इन लबों को, ख़ामौश ... रहने दो |

ख़ुली ज़ुबां जो, तो ख़ंजर भी धार खो देंगे,
ज़हर बुझे तीर भी, ज़हर अपना खो देंगे |
मेरी चुप्पी की झूठी मिठास, यूँही बनी रहने दो,
छेड़ो न इन लबों को ख़ामौशी ही ... रहने दो |

जो ख़ुला राज़ तो, सब नंगे हो जाएंगे,
अपनों के ही बीच, फिर दंगे हो जाएंगे |
पड़ा है जो ये पर्दा, तो यूँ ही पड़ा रहने दो,
मैं इक राज़ हूँ, मुझे राज़ ही बना ... रहने दो |

मत सुलझाऔ इस पहेली को, पहेली ही ... रहने दो,
मेरी तनहाई जो अकेली है, तो अकेली ही ... रहने दो |
मैं इक राज़ हूँ, मुझे राज़ ही बना ... रहने दो,
छेड़ो न इन लबों को, ख़ामौश ही ... रहने दो |

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27 FEB AT 22:18

"मुझे भी सिखा दो वादों से मुकर जाना,
बहुत थक गयी हूँ निभाते निभाते".......!!

बड़े सलीके से बिखरते हैं रिश्तें
तोड़ने वालें पढ़ें लिखें जो होते हैं!!!

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