भले रहो नजरों से दूर हो मगर
कभी हिफाजतें कम नहीं होती
हर एक गज़ल में सजा कर भी
उनकी नज़ाकते खत्म नही होती
लाख छुपा लो इस महोब्बत को
छुपाने से कभी दफन नही होती
महसूस करो धड़कनों के इशारे
इनकी ये आवाज़े कम नही होती
थोड़ा सा मिज़ाज अलग रखते है
उनकी ये शराफ़त कम नही होती
कितना भी जहन में बसा ले हम
ये इबादत है कभी भ्रम नही होती
निगाहें सब कुछ बँया कर देती है
छुपाने से हकीकत कम नही होती-
मुझे कोई देखें ना इतनी हिफाजत रखती हो
मोहतरमा तुम क्यों इतनी सराफत रखती हो
और क्या कहा मैं थक जाती हूँ, सांस लेने से
उफ्फ तुम भी ना ये केसी नजाकत रखती हो-
बेहिसाब ख्वाहिशे का आलम हमसे ना पूछिये,
कैसे हो मुकम्मल, लेकिन रिश्ते की नजाकत है!
कहना चाहता हूँ बेशुमार बातें जो कह नहीं पाता,
वो समझती है सबकुछ, ये उसकी लियाक़त हैं!
छू लूँ उसको, लगा लूँ गले, भर के बांहों में उसे,
सोच लेता हूँ मैं कभी कभी, ये मेरी हिमाकत है!
छुपाती है, चुप रहती है, कहती है कुछ हुआ नहीं,
हाल-ए-दिल जाहिर है, आँसुओं की सदाक़त हैं!
है हम आधे अधूरे एक दूसरे के बिन हर शय में,
हर खुशी हर गम में, एक दूजे की शराकत हैं!
ख़्वाबों में भी जुदाई बरदास्त नही होती उससे,
वजह साफ है, वो मेरी साँसों की रफाकत है!-
है आरजु गर, जी भर के देख लो मुझे।
कल दिखूँ न दिखूँ, उसका क्या पता।।
खिला हुआ गुल हूँ मैं, सज़ा लो मुझे।
कल खिलूँ न खिलूँ, उसका क्या पता।।
लगे है घाव कई, डालो नमक थोड़ा।
कल चीखूं न चीखूं, उसका क्या पता।।
खुदाबख़्स नज़ाकत हूँ मैं, जिंदा हूँ।
कल रहूँ ना रहूँ, उसका क्या पता।।-
हमारी मोहब्बत पर इतनी इनायत हो,
मेरे दिल के कैदखाने की तू क़ैदी हो,
और ना ही कभी तेरी जमानत हो...-
मुलाक़ातो के वक्त थोड़ी-सी नज़ाकत रखिए,
बेवफ़ा से भी मिलिए तो थोड़ी-सी वफ़ा रखिए।-
नजाकत लफ्जों में और हया आँखों में छुपी बैठी है,
और लोग सोचते हैं कि ये शायर कमाल लिखता है !-
जिसके ख़्याल भर से बेइंतहा मोहब्बत हैं हमें जब वो हकीकत में सामने आएगी तो बस क़यामत होगी...
सोच रहा हूँ जिनका शर्माना इतना कातिलाना हैं जरा सोचों कितनी बाकमाल सी उनकी नजाकत होगी...-
नजाकत इतना की मन को भा जाए
मोहब्बत इतना की रूह में समा जाए
करीब इतना रहो की फिर दूर न जाए
साथ इतना देना कि ताउम्र साथ निभाए.!!-