जब 'दीवाली' में 'अली' और
'रमजान' में 'राम' बसते है,
तो जातिवाद के नाम पर भला
हम क्यों लढते रहते है...?-
धर्म
वह धर्म धर्म नहीं जो बन न सके सेतु,
योग न सके कर तो है फ़िर किस हेतु।
विभाजन, वाद-विवाद का बने कारण,
नहीं कर पाए समस्याओं का निवारण।
बैर बढ़ाए एवं आपसी फूट करे जनित,
घृत बन वैमनस्यताग्नि करे प्रज्वलित।
दूसरों की नकल में भेड़ चाल चलाए,
अंधानुकरण कराए मार्ग न दिखलाए।
दूसरे को कहें दोयम अपना धर्म श्रेष्ठ,
शिष्टाचार सिखाते दूजा है सदा ज्येष्ठ।
सहिष्णुता धर्मनिरपेक्षता को सर्वोपरि,
रखें उर में, सभी मित्र हैं न कोई अरि।
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तिरंगा हूँ मैं!
खुद मेरे ही दो रंगो की
नफ़रत से जन्मा दंगा हूँ मैं,
हाँ, वही तिरंगा हूँ मैं।
एक होड़ लगी है दोनों में
कैसे अपनी हद फैलाए,
जो श्वेत शांत है रंग यहाँ
दोनों मिलकर इसको खाए।
अब यह श्वेत, श्वेत सा रहा नहीं
कई दाग मिलेंगे अब इसमें,
तुम देखो जरा गौर से तो
कुछ रंग दिखेंगे अब इसमें।
सिंदूर, रक्त और काजल में
रंगकर के रंग-बिरंगा हूँ,
जो आग लगी मुझमें उसमें
खोकर लिबास मैं नंगा हूँ।
नफ़रत से जन्मा मैं दंगा हूँ,
हाँ, मैं वही तिरंगा हूँ।-
"दुःख या दुर्भाग्य?"
(✝☪卐ॐ)
है दुःख धरा का आज ये
क्यूँ बंट रहा समाज ये??
-(अनुशीर्षक में)-
हमारा संविधान,
धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार
प्रत्येक भारतीय को देता है।
फिर, अपने धर्म को सम्मान देना,
मिथ्या धर्मनिरपेक्षता कैसे हुई?-
खाना देने वाले का भी धर्म देखता है
वानर से मनुष बना भ्रमित नादान इन्सान
इन्सान ही इंसानियत की कब्र देखता है
ऐ मगरूर भटके हुये इन्सान रुपी शौतां
देख ले तू कब तक खुदा का सब्र देखता है
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ग़र है राम पर भरोसा, तो फिर ख़ुदा पर भी होना चाहिए।
जब दोनों हैं रब, तो फिर तेरा मेरा भी कहाँ होना चाहिए।
प्यार और नफ़रत ही तो, हर अच्छाई बुराई की जड़ है,
प्यार है तो पराया भी अपना, नफ़रत में तो भाई भी दुश्मन पाइए।
जन्म एक सा मरना एक सा, भूख प्यास सब हँसी एक सी,
फिर क्यों इस कदर हो बसर, के सबकुछ सिर्फ़ अपने धर्म में चाहिए।
धर्म कोई अपनाने की वस्तु नहीं, और न ही दिखावे की चीज है।
ग़र यह आस्था की बात है, तो फिर धर्म को साधना भी चाहिए।
लोग अक्सर कहा करतें हैं, के धरम आपस में जोड़ा करतें हैं ।
ये सच है लेकिन एक शर्त है, के धरम में कट्टरता नहीं होनी चाहिए।
-अदंभ
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धर्म ज्ञानेन बिद्या बलेन्न सर्व पुज्यित मंगलम
यानी यानी सः कार्य सम्पूर्ण करिष्यते
धर्म ज्ञान है विद्या बल है जो सब जगह पूजा जाता है
और मेहनत से किया गया काम सब जगह यश दिलाता है
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फिरोज का हृदय जान सके,
सबमें उतनी बात नहीं।
वो भरत वंशज नहीं,
जो फिरोज के साथ नहीं।।
#धर्मनिरपेक्ष_भारत
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