sanjay sahai   ("अदंभ")
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Joined 9 August 2018


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27 APR AT 21:05

जब भक्त हो अंधभक्त और बाबा हो धूर्त,
दोस्तों फ़िर इसमें किसी का नहीं है कसूर,

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17 APR AT 17:44

यह बात पते की, मैं कहता हूँ सही,
यूँ ज़िन्दगी का सफ़र, मुश्किल नहीं,
यह बात पते की...............

पहले ख़ुद से प्यार, करना सीखो ज़रा,
किसी से कमतर कभी, न समझो ज़रा,
तुम जैसे भी हो, वैसे बिल्कुल हो सही,
यह बात पते की...............

करो ख़ुशी से कबूल, ज़िन्दगी ने जो दिया,
कभी शिकवा न करना, जो नहीं है मिला,
जितना है उसी में, ख़ुश रहना है सही
यह बात पते की...............

अपने दिल में नफ़रत, कभी रखना नहीं,
धर्म की कट्टरता, दिल में रखना नहीं,
एक प्रेम का रिश्ता, सब से रखना सही,
यह बात पते की...............

ज्ञान से बड़ा जग में, कुछ और न समझो,
जितना हो सके, सदा ज्ञान अर्जित करो,
ज्ञान ही है जो, हर कमी करे पूरा सही,
यह बात पते की...............
-अदंभ

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16 APR AT 19:51

यारों मुलाक़ात अभी बाक़ी है

आँखों ही आँखों में इशारे हुए,
चाहत इतनी भरी कि शर्माने लगे,
उतरते गये दिल की गहराई में,
लब हिले पर कुछ कह न सके,
डूबे है यूँ ख़्यालों में, एक कशिश बाक़ी है,
यारों मुलाक़ात अभी बांकी है।

दिल-ए-यार की तलब है इस कदर,
दीदार-ए-यार को तड़पे इधर उधर,
लुट जाते है दिन ख़ाक होती है रात,
हर पल हर घड़ी बेख़ुदी सा असर,
डूबे है यूँ ख़्यालों में, एक कशिश बाक़ी है,
यारों मुलाक़ात अभी बांकी है।

उल्फ़त में ख्वाहिशें यूँ कम न होती,
काबू में नहीं जज़्बात बेचैनी सी बढ़ती,
चाहत पे जोर किसका कब चलता है,
बस एक मुलाक़ात की चाह सी रहती,
डूबे है यूँ ख़्यालों में, एक कशिश बाक़ी है,
यारों मुलाक़ात अभी बांकी है।
-अदंभ

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15 APR AT 18:25

बड़ा ही इख़्तियार था आपको अपनी खानदानी तहज़ीब पर,
हमनें सच क्या कहा आप तो आ गये अपनी औक़ात पर,

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15 APR AT 17:14

इस बेनाम रिश्ते पे इतनी इनायत करना,
जब भी रहो तन्हा तो मुझे याद करना,

जब सफ़र में किसी का साथ न पाओ,
जब मुश्किलों में कभी तुम घिर जाओ,
दूर-दूर तक जब कोई नज़र नहीं आये,
इस बेनाम रिश्ते पे इतनी इनायत करना,
जब भी रहो तन्हा तो मुझे याद करना,

न है कोई ठिकाना न मंज़िल है कोई,
माना कि इस रिश्ते का नाम नहीं कोई,
कुछ तो है हमारे दरमियां जो अदृश्य है,
इस बेनाम रिश्ते पे इतनी इनायत करना,
जब भी रहो तन्हा तो मुझे याद करना,

बेनाम सा रिश्ता है अनोखा किस्सा,
लगता है जैसे मैं हूँ कोई तेरा ही हिस्सा,
हर पल हर घड़ी तेरी फिक्र करता हूँ,
इस बेनाम रिश्ते पे इतनी इनायत करना,
जब भी रहो तन्हा तो मुझे याद करना,
-अदंभ

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13 APR AT 21:19

ज़िन्दगी से इत्तिफ़ाक़ तू रखना मेरे यार,
सुख हो या दुख हो ख़ुद से करना प्यार,

तुझे जो भी मिले कर खुशी से कबूल,
जो न मिला कर ले वो भी कबूल,
ज़िन्दगी का छुपा है इसमें ही सार,
सुख हो या दुख हो ख़ुद से करना प्यार,
ज़िन्दगी से इत्तिफ़ाक़..........

हम जिस काबिल है ज़िन्दगी देती वही,
ज़िन्दगी कभी भेदभाव करती नहीं,
ज़िन्दगी का छुपा है इसमें ही सार,
सुख हो या दुख हो ख़ुद से करना प्यार,
ज़िन्दगी से इत्तिफ़ाक़..........

ज़िन्दगी एक बार मिलती बार-बार नहीं,
इसे जी भर कर जी दुबारा मिलेगी नही,
ज़िन्दगी का छुपा है इसमें ही सार,
सुख हो या दुख हो ख़ुद से करना प्यार,
ज़िन्दगी से इत्तिफ़ाक़..........
-अदंभ

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12 APR AT 22:15

कुछ तुम कहो कुछ हम, ये प्यार न कभी हो कम,

पाया है जब से साथ तेरा,
मुक़म्मल हुआ जीवन मेरा।
रेत सी थी ज़िन्दगी ये मेरी,
खिल ये उठी प्रेम पाके तेरा।
ये सिलसिला यूहीं चलता रहे, कुछ तुम चलो कुछ हम,
ये प्यार न कभी हो कम............

एक पल जीना मुश्क़िल भी,
अब तेरे बिन कुछ भी नहीं।
मेरे दिल की हर धड़कन में,
सिर्फ़ तू है और कुछ भी नहीं।
ये सिलसिला यूहीं चलता रहे, कुछ तुम चलो कुछ हम,
ये प्यार न कभी हो कम............

तुम कहती रहो मैं सुनता रहूँ,
प्यार का गीत गुनगुनाता रहूँ।
मैं दीपक तेरा तुम बाती मेरी,
सारा जीवन यूही जलता रहूँ।
ये सिलसिला यूहीं चलता रहे, कुछ तुम चलो कुछ हम,
ये प्यार न कभी हो कम............
-अदंभ

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11 APR AT 21:27

करके मुझसे बेवफ़ाई ऊपर से बदनाम भी करते हो,
बड़े बेमुरव्वत हो मेरे ज़ख़्मों पर नमक छिड़कते हो,

शरीफों का चोला पहन के मासूमों को बर्बाद न करो,
ज़रा ख़ुदा से तो डरो गुनाह पे गुनाह किये जाते हो,

ये मत भूलो हर सितमगर की बस इतनी है औक़ात,
आज वो है तो कल उसका भी है कोई न कोई बाप,

ज़माने का दस्तूर है कि कमजोर पर जलता है जोर,
मजा तो तब है अपने बराबर से हो टकराव का दौर,

बेमुरव्वतों का शौक है ज़ख़्म पर नमक छिड़कना,
ये ठहरे नाली के कीड़े इनका और क्या है बिगड़ना,
-अदंभ

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11 APR AT 18:40

ये शिकवे शिकायत सबको भुला दें,
आओ ईद मिलें और नफ़रत मिटा दें,

चलो जग को दे दें मोहब्बत का पैग़ाम,
चाहे अल्लाह कहो चाहे कहो राम,

नफ़रत है जो हर पापा की है जननी,
अपनी ही रूह को सिर्फ़ करती छलनी,

चलो नामोनिशान इसका यूँ मिटा दें,
मोहब्बत करके आओ इसको हरा दें,

आज पाक है दिन ईद का ये सुहाना,
खुशियां ही खुशियां सबको लुटाना,

सच्चा धर्म है मानवता के पथ पे चलना,
हर धर्म का रास्ता यही आके है मिलना,

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10 APR AT 20:10

जब भी कोई गुज़रे ज़माने सा हो जाता है,
दोस्तों कसम से वो बहुत ही याद आता है,

वो पुराने दिन और यादें, वो गुज़री बातें,
अच्छी-बुरी यादें अच्छे-बुरे पल दे जाता है,

लगता है जैसे कि कल की ही बात हो,
कभी हँसाने तो कभी रूलाने आ जाता है,

वो बीते सुनहरे दिन वो उम्र थी कमसिन,
आज भी वो ही पल यादों में बसा जाता है,

भूल के भी नहीं भूलते ऐसे होते हैं वो पल,
इस भागमभाग जिंदगी में सुकूं दे जाता है,

फ़क़त वो पुराने दिन और वो पुरानी यादें,
अनमोल है ये खजाना जो संजोय जाता है,

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