आज समाज का पतन कुछ हुआ इस कदर,
माफ़िया धूर्त अपराधियों की हो रही है कदर।
यूँ बड़े से बड़ा अपराध भी धर्म से छुप जाता,
धर्म के चक्कर में मानवता की मिट रही डगर।
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आँख से आँख न मिला, ऐ दिल तू कहीं,
जिसने भी मिलायी, कहाँ फ़िर वो बचा कहीं,-
वैसे नफ़रत फैलाना भी है एक कारोबार,
जिससे बहुतों का जिंदा रहता है परिवार।
और बड़ी कमाल की चीज है ये नफ़रत,
इस हुनर से लोग मंत्री भी बने कई बार।-
धड़कन ने धड़कन से कहा कि धड़क तो ज़रा,
तेरी धड़कन से ही तो धड़कता है ये दिल मेरा,
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दोस्तों नफ़रत का भी अजीब सा मसलाह है,
जो करे वो फ़िर कहाँ आबाद होने वाला है,-
बहुतों की रोजी-रोटी का है रोजगार,
नफ़रत फैलाना भी है एक कारोबार,
खादी में इस कदर छुपे शेर भगर्रा बाज,
इसी नफ़रत से मंत्री तक बने है कई बार,
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जब भक्त हो अंधभक्त और बाबा हो धूर्त,
दोस्तों फ़िर इसमें किसी का नहीं है कसूर,
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यह बात पते की, मैं कहता हूँ सही,
यूँ ज़िन्दगी का सफ़र, मुश्किल नहीं,
यह बात पते की...............
पहले ख़ुद से प्यार, करना सीखो ज़रा,
किसी से कमतर कभी, न समझो ज़रा,
तुम जैसे भी हो, वैसे बिल्कुल हो सही,
यह बात पते की...............
करो ख़ुशी से कबूल, ज़िन्दगी ने जो दिया,
कभी शिकवा न करना, जो नहीं है मिला,
जितना है उसी में, ख़ुश रहना है सही
यह बात पते की...............
अपने दिल में नफ़रत, कभी रखना नहीं,
धर्म की कट्टरता, दिल में रखना नहीं,
एक प्रेम का रिश्ता, सब से रखना सही,
यह बात पते की...............
ज्ञान से बड़ा जग में, कुछ और न समझो,
जितना हो सके, सदा ज्ञान अर्जित करो,
ज्ञान ही है जो, हर कमी करे पूरा सही,
यह बात पते की...............
-अदंभ-
यारों मुलाक़ात अभी बाक़ी है
आँखों ही आँखों में इशारे हुए,
चाहत इतनी भरी कि शर्माने लगे,
उतरते गये दिल की गहराई में,
लब हिले पर कुछ कह न सके,
डूबे है यूँ ख़्यालों में, एक कशिश बाक़ी है,
यारों मुलाक़ात अभी बांकी है।
दिल-ए-यार की तलब है इस कदर,
दीदार-ए-यार को तड़पे इधर उधर,
लुट जाते है दिन ख़ाक होती है रात,
हर पल हर घड़ी बेख़ुदी सा असर,
डूबे है यूँ ख़्यालों में, एक कशिश बाक़ी है,
यारों मुलाक़ात अभी बांकी है।
उल्फ़त में ख्वाहिशें यूँ कम न होती,
काबू में नहीं जज़्बात बेचैनी सी बढ़ती,
चाहत पे जोर किसका कब चलता है,
बस एक मुलाक़ात की चाह सी रहती,
डूबे है यूँ ख़्यालों में, एक कशिश बाक़ी है,
यारों मुलाक़ात अभी बांकी है।
-अदंभ-
बड़ा ही इख़्तियार था आपको अपनी खानदानी तहज़ीब पर,
हमनें सच क्या कहा आप तो आ गये अपनी औक़ात पर,
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