आइने की हैसियत कहां वो अक्स उतार लाये
चेहरे की आड़ में जो चेहरा हैं हम छुपाये।
मुद्दत हुई मुलाकातों के मौसम हुए पराये
चाहा था खुद से मिलना अरसों से मिल न पाये।
प्रीति-
देखते है वो दोहरी नज़र से,
कहते हैं प्यार किया था मुझसे,
करते हो सौदा रातों का मुझसे,
और सुबह होते ही दूर भागते हो मुझसे,
बना रखा हैं महबूब जमाने में मुझे,
पर बंद कमरे में रखैल बना रखते हो...!-
स्त्री का प्रिय किरदार है ,
दूसरों की आंखों में किरकिरी बनके रहना ।-
हाल-ए-दिल कुछ ऐसा है हमारा ना पूछो दोस्तो ,
जैसे धड़कन बिना ही दोहरी ज़िंदगी जिये जा रहे है हम ।-
स्त्री के चरित्रहीन होने में ,
पुरुष की बराबर की भूमिका होती है।-
दोहरी जिंदगी जीते हैं हम सब
एक ख्वाहिशों की दिखाकर
दूजी सुकूँ की छुपा कर ।-
कितनी बदल गई हूं मैं,
खुद को खो चुकी हूं मैं,
दुनिया ने दिखा दिया है अपना रंग,
इस लिए दोहरी ज़िन्दगी जीते हैं हम।-
।।दोहरी ज़िन्दगी।।
लबों पे हंसी है, दिल में है गम।
दोहरी ज़िन्दगी जी रहे हैं हम।।
अपने तो बहुत हैं यहाँ,
' अपना ' मगर कोई नही।
खुशियों में सब शामिल हैं,
पर गम में कोई नही।
लबों पे हंसी है.........
रब से कोई शिकवा नहीं,
न किसी से शिकायत है।
जो कुछ भी मिला है हमें
वो बस रब की इनायत है।
लबों पे हंसी है..........
इसी उम्मीद में खुश रहते हैं
अपना भी वक़्त आएगा।
वो दिन बहुत दूर नहीं है
अपना मुक्कदर भी जगमगाएगा।
लबों पे हंसी है..........-