दोस्ती बस उनसे कीजिये, जो हर-दफा जा-बजा मिलते हैं।
ढूंढो तो दिल में है, वर्ना कब खुदा दैर-ओ-हरम में मिलते हैं।-
हर दौर में अधूरी है !
तमाशा दौर-ए-अना का,
कभी
दैर-ओ-हरम के झगड़े !
~दीपा गेरा
-
कहीं डूबी ,कहीं प्यासी, कहीं पर ग़ुम हस्ती,
इश्क़ में दरिया क्या,सेहरा क्या,बियाबान क्या है?
मार देती है मुहब्बत एश-ए-दुनिया सभी,
ये चमन ,फूल, ये तितली ,ये गुलिस्तान क्या है?
ये आंखे बस लहू बहाएंगी , उलझा रहेगा,
सोचता जाएगा कि इश्क़ में आसान क्या है?
याद न होगा ख़ुदा,दैर-ओ-हरम,काबा तुझे,
किसी काफ़िर सा पूछेगा कि ये अज़ान क्या है?
ये तुझे सोचना था इश्क़ में गिरने के पहले,
नदामत अब क्या करे अब तू परेशान क्या है?-
रहता सदा है वो घर बना मासूम-ओ-मज़लूमों में
खामख्वाह ढूंढते रहते हो उसे तुम दैर-ओ-हरम-
दैरो हरम से नही ताल्लुक मेरा
जिंदगी इश्क़ के दयार ले आई
घर से निकले थे सू ए मयकदा
यादें मगर कू ए यार ले आई-
सुकूत-ए-दिल की तलाश में निकल गया था मैं अपने घर से...
पर दैर-ओ-हरम की लगी जंग से मजबूर हो एक कदम भी आगे न चल सका...-
दैर-ओ-हरम के झगड़े मे खुदा बहुत मिले........
इस लड़ाई में मगर लगता है इंसान खो गया;
लड़ती रही सियासत अंदर मंदिर-ओ-मस्जिद पर,
ओढ़ कर अखबार वो बच्चा बाहर सो गया।-
ऐतबार हो तकदीर पर जिनको बाजुओं से बढ़कर
वो फरियादी दैर ओ हरम घूम कर के लौट जाते हैं-
दैर-ओ-हरम के नाम पर कुछ ज़ाहिलों ने जलवा दिया हमारा घर...
जो उसके बाद चैन न मिला तो बाँट दिया कुछ को नए घर...-