Mohd. Anees   (अनीस 'राही')
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Joined 9 August 2018


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14 JUL AT 7:07

सुबह का है वक्त — आओ अरदास करें
ईश्वर करेगा सबका भला — विश्वास करें

हुईं जो भी भूल हमसे — सब माफ़ होगी
प्रायश्चित करके — मन अपना साफ़ करें

घिरें जो उलझनों में — न हों कभी उदास
भरोसा रखें — मन को न निराश करें

हर दिन को समझें एक वरदान ईश का
आभार जताएं — शुक्र अदा, हर साँस करें

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13 JUL AT 14:40

अब भुलाना कठिन है, याद आते रहेंगे
चैन से रहेंगे खुद और हमें सताते रहेंगे

हर घड़ी दिल में तेरी आहटें सुनेंगे हम
तू कहीं और होगा, हम तुझे बुलाते रहेंगे

"राही" का हाल कोई क्या समझ पाएगा
दर्द हम लिखते रहेंगे, तुम गुनगुनाते रहेंगे

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12 JUL AT 11:04


(2122 2122 2122 212)

जिस्म जल चुका है वो राख कुरेदने आए
दिल तो न मिलेगा रूह तो तस्कीन पाए

ख़ुद को खो चुके हैं अब और क्या बचाएँ
कुछ चराग़ बुझते हैं कुछ धुएँ बताएँ

शहर में फ़रेबों की धूप इस क़दर है
सच कहें तो जलें, झूठ ओढ़ें तो छाएँ

तेरे बाद खुद से भी डर सा लगने लगा है
आईने से नज़रे अब कैसे मिलाएँ

बात थी मोहब्बत की, दर्द की बनी है
कौन से फ़साने अब और हम सुनाएँ

‘राही’ अब तसव्वुर भी दर्द सा लगे है
कभी उस गली से क्या फिर से लौट जाएँ?

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9 JUL AT 14:35

आँखों से मेरी आँखें मिला दो

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9 JUL AT 14:28

कभी जो दिल ने मांगा था वही अब सज़ा है
ये इश्क़ क्या है, एक ख़्वाब है या ख़ता है

बात तो सच है कि हुस्न बे वफ़ा है
हसीनों की अदाओं में ये इक अदा है

इश्क़ पर गर तुम्हें है नाज़ ओ गुरूर
फ़ना हो जाइए दिल जहां पर फ़िदा है

उसे पाने की हसरत में जिए जा रहे हैं
वो जिसके पास हर लम्हा कोई नया है

'राही' की जुबां पर है फिर इक दास्तां
वो जो दिल से गया, अब हर्फ़-ए-दुआ है

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7 JUL AT 22:07


क्या आप भी आंखों में बात कर नहीं सकते
ज़माने की निगाहों से क्या डर नहीं सकते

जो दिल में है वो लब तक क्यों नहीं आता,
कभी खुल के मोहब्बत भी तो कर नहीं सकते

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15 JUN AT 5:47

शहर अपने में खोया रहता है, हर शख़्स यहाँ तन्हा रहता है।
दिल चुपचाप किसी कोने में बहता है, भीड़ों का शोर मगर चलता रहता है।
बस्तियाँ जगमग तो करती हैं,पर अंधेरों से रिश्ता गहरा रहता है।
चाय की दुकानों पर बातें हैं पुरानी,पर आँखों में एक किस्सा अधूरा रहता है
हर मोड़ पर एक चौराहा मिलता है,पर मंज़िल का पता अब धुंधला रहता है
ख़्वाब तो सब आँखों में सजते हैं, पर हक़ीक़त से एक पर्दा सा रहता है।
"राही" ये शहर अजीब किताब है,हर पन्ना खुला, पर उलझा सा रहता है।

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14 JUN AT 20:32

कभी हां करे वो कभी ना करे
ऐसी सुरत में कैसे निबाह करे
आरज़ूओं का कचूमर निकला
हसरतों को मेरी वो तबाह करे

न सुन रहा है कुछ न ही कह रहा है
ऐसा यार न हो किसी का ख़ुदा करे
इबादत हो चुकी है तौबा फिर होगी
चल राही मयख़ाने कोई गुनाह करे

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14 JUN AT 9:48

जब भी लगे कि सब कुछ छूट रहा है,
कि अपना ही साया हमसे रूठ रहा है।
जब दुनिया के शोर में
तुम्हारी ख़ामोशी दब जाए —
ख़ुद को नज़र अंदाज़ मत करो।

तुम ज़रूरी हो,
तुम काफ़ी हो,
तुम सुंदर हो —
जैसे हो, वैसे हो।
ख़ुद को नज़र अंदाज़ मत करो।

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9 JUN AT 8:28


वक़्त की आँधियाँ रुक नहीं पाएंगी,
हम अगर खुद से ही जंग कर जाएंगे।
हर अँधेरे में रौशन है एक रास्ता,
दिल के दीपक को बस थामते जाइए।
ज़ख़्म गहरे हैं तो क्या, मुस्कुराइए,
दर्द की तर्ज़ पे गीत भी गाइए।
ठोकरें कहती हैं — गिर के मत हारिए,
हर शिकस्त में इक राह पाईए।
जो झुके नहीं, वही असल में हैं 'वो',
अपने सर को न हरगिज़ झुकाइए।
हर सवेरा पुकारेगा नाम आपका,
रात से भी अगर जंग लड़ पाइए।
राही कहे — तू फ़क़त खुद में यक़ीन रख,
मज़बूत बने रह, यही जीत की राह है।

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